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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 81

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 81/ मन्त्र 2
    सूक्त - पुरुहन्मा देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-८१

    आ प॑प्राथ महि॒ना वृष्ण्या॑ वृष॒न्विश्वा॑ शविष्ठ॒ शव॑सा। अ॒स्माँ अव॑ मघव॒न्गोम॑ति व्र॒जे वज्रिं॑ चि॒त्राभि॑रू॒तिभिः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । प॒प्रा॒थ॒ । म॒हि॒ना । वृष्ण्या॑ । वृ॒ष॒न् । विश्वा॑ । श॒वि॒ष्ठ॒ । शव॑सा ॥ अ॒स्मान् । अ॒व॒ । म॒घ॒ऽव॒न् । गोऽम॑ति । व्र॒जे । वज्रि॑न् । चि॒त्राभि॑: । ऊ॒त्ऽभि॑: ॥८१.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ पप्राथ महिना वृष्ण्या वृषन्विश्वा शविष्ठ शवसा। अस्माँ अव मघवन्गोमति व्रजे वज्रिं चित्राभिरूतिभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । पप्राथ । महिना । वृष्ण्या । वृषन् । विश्वा । शविष्ठ । शवसा ॥ अस्मान् । अव । मघऽवन् । गोऽमति । व्रजे । वज्रिन् । चित्राभि: । ऊत्ऽभि: ॥८१.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 81; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (वृषन्) हे शूर ! (शविष्ठ) हे अत्यन्त बली ! [परमात्मन्] (महिना) अपने बड़े (शवसा) बल से (विश्वा) सब (वृष्ण्या) शूर के योग्य बलों को (आ) सब ओर से (पप्राथ) तूने भर दिया है। (मघवन्) हे महाधनी ! (वज्रिन्) हे दण्डधारी ! [शासक परमेश्वर] (गोमति) उत्तम विद्यावाले (वज्रे) मार्ग में (चित्राभिः) विचित्र (ऊतिभिः) रक्षाओं से (अस्मान्) हमें (अव) बचा ॥२॥

    भावार्थ - मनुष्यों को चाहिये कि परमात्मा से प्रार्थना करके संसार के सब पदार्थों से उपकार लेकर यथावत् पालन करें ॥२॥

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