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अथर्ववेद > काण्ड 3 > सूक्त 17

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  • अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 17/ मन्त्र 9
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - सीता छन्दः - निचृदनुष्टुप् सूक्तम् - कृषि

    घृ॒तेन॒ सीता॒ मधु॑ना॒ सम॑क्ता॒ विश्वै॑र्दे॒वैरनु॑मता म॒रुद्भिः॑। सा नः॑ सीते॒ पय॑सा॒भ्याव॑वृ॒त्स्वोर्ज॑स्वती घृ॒तव॒त्पिन्व॑माना ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    घृतेन॑ । सीता॑ । मधु॑ना । सम्ऽअ॑क्ता । विश्वै॑: । दे॒वै: । अनु॑ऽमता । म॒रुत्ऽभि॑: । सा । न॒: । सी॒ते॒ । पय॑सा । अ॒भि॒ऽआव॑वृत्स्व । ऊर्ज॑स्वती । घृ॒तऽव॑त् । पिन्व॑माना ॥१७.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    घृतेन सीता मधुना समक्ता विश्वैर्देवैरनुमता मरुद्भिः। सा नः सीते पयसाभ्याववृत्स्वोर्जस्वती घृतवत्पिन्वमाना ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    घृतेन । सीता । मधुना । सम्ऽअक्ता । विश्वै: । देवै: । अनुऽमता । मरुत्ऽभि: । सा । न: । सीते । पयसा । अभिऽआववृत्स्व । ऊर्जस्वती । घृतऽवत् । पिन्वमाना ॥१७.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 17; मन्त्र » 9

    पदार्थ -
    (घृतेन) घी से और (मधुना) मधु [शहद] से (समक्ता) यथाविधि सानी हुई (सीता) जुती धरती (विश्वैः) सब (देवैः) व्यवहारकुशल (मरुद्भिः) विद्वान् देवताओं करके (अनुमता) अङ्गीकृत है। (सीते) हे जुती धरती ! (सा) सो (ऊर्जस्वती) बलवती और (घृतवत्) घृतयुक्त [अन्न आदि] से (पिन्वमाना) सींचती हुई तू (पयसा) दूध के साथ (नः) हमारे (अभ्याववृत्स्व) सब ओर से सन्मुख वर्तमान हो ॥९॥

    भावार्थ - चतुर किसान युक्ति से बीज में वा धरती में घी और मधु आदि मिलाकर धान्य आदि को पुष्ट और मधुर बनावें, जैसे क्रिया विशेष से, माली लोग आम, दाख, केसर, फूल आदि को उत्तम बनाते और मनुष्य उत्तम सन्तान उत्पन्न करते हैं ॥९॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद अ० १२ म० ७० में है ॥

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