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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 121

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 121/ मन्त्र 3
    सूक्त - कौशिक देवता - तारके छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सुकृतलोकप्राप्ति सूक्त

    उद॑गातां॒ भग॑वती वि॒चृतौ॒ नाम॒ तार॑के। प्रेहामृत॑स्य यच्छतां॒ प्रैतु॑ बद्धक॒मोच॑नम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । अ॒गा॒ता॒म् । भग॑वती॒ इति॒ भग॑ऽवती । वि॒ऽचृतौ॑ । नाम॑ । तार॑के॒‍ इति॑ । प्र । इ॒ह । अ॒मृत॑स्य । य॒च्छ॒ता॒म् । प्र । ए॒तु॒ । ब॒ध्द॒क॒ऽमोच॑नम् ॥१२१.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उदगातां भगवती विचृतौ नाम तारके। प्रेहामृतस्य यच्छतां प्रैतु बद्धकमोचनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । अगाताम् । भगवती इति भगऽवती । विऽचृतौ । नाम । तारके‍ इति । प्र । इह । अमृतस्य । यच्छताम् । प्र । एतु । बध्दकऽमोचनम् ॥१२१.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 121; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (भगवती=०−त्यौ) दो ऐश्वर्यवाले (विचृतौ) [अन्धकार से] छुड़ानेहारे (नाम) प्रसिद्ध (तारके) तारे [सूर्य और चन्द्रमा] (उदगाताम्) उदय हुए हैं। वे दोनों (इह) यहाँ पर (अमृतस्य) मरण से बचाव [पुरुषार्थ] का (प्रयच्छताम्) दान करें, [तब] (बद्धकमोचनम्) बँधुवे [आत्मा] की मुक्ति (प्र एतु) हो जावे ॥३॥

    भावार्थ - जिस प्रकार सूर्य और चन्द्रमा नियम पर चलकर जगत् का उपकार करते हैं, इसी प्रकार पुरुषार्थी मनुष्य ईश्वर आज्ञा पालन करके आप दुःख से छूटते और औरों को छुड़ाते हैं ॥३॥ इस मन्त्र का पूर्वार्द्ध पहिले आ चुका है−अ० २।८।१ ॥

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