Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 74

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 74/ मन्त्र 3
    सूक्त - अथर्वा देवता - सामंनस्यम्, नाना देवताः, त्रिणामा छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सांमनस्य सूक्त

    यथा॑दि॒त्या वसु॑भिः सम्बभू॒वुर्म॒रुद्भि॑रु॒ग्रा अहृ॑णीयमानाः। ए॒वा त्रि॑णाम॒न्नहृ॑णीयमान इ॒माञ्जना॒न्त्संम॑नसस्कृधी॒ह ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ । आ॒दि॒त्या: । वसु॑ऽभि: । स॒म्ऽब॒भू॒वु: । म॒रुत्ऽभि॑: । उ॒ग्रा: । अहृ॑णीयमाना: । ए॒व । त्रि॒ऽना॒म॒न् । अहृ॑णीयमान: । इ॒मान् । जना॑न् । सम्ऽम॑नस: । कृ॒धि॒ । इ॒ह ॥७४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथादित्या वसुभिः सम्बभूवुर्मरुद्भिरुग्रा अहृणीयमानाः। एवा त्रिणामन्नहृणीयमान इमाञ्जनान्त्संमनसस्कृधीह ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा । आदित्या: । वसुऽभि: । सम्ऽबभूवु: । मरुत्ऽभि: । उग्रा: । अहृणीयमाना: । एव । त्रिऽनामन् । अहृणीयमान: । इमान् । जनान् । सम्ऽमनस: । कृधि । इह ॥७४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 74; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (यथा) जिस प्रकार से (उग्राः) तेजस्वी (आदित्याः) प्रकाशमान विद्वान् [अथवा अदीन देव माता अदिति, पृथ्वी वा वेदवाणी के पुत्र समान मान करनेवाले] पुरुष (अहृणीयमानाः) सङ्कोच न करते हुए (वसुभिः) उत्तम गुणों और (मरुद्भिः) शत्रुनाशक वीरों के साथ (संबभूवुः) पराक्रमी हुए हैं। (एव) वैसे ही (त्रिणामन्) हे तीनों कालों और तीनों लोकों को झुकानेवाले परमेश्वर ! (अहृणीयमानः) क्रोध न करता हुआ तू (इमानि) इन सब (जनान्) जनों को (इह) यहाँ पर (संमनसः) एकमन (कृधि) कर दे ॥३॥

    भावार्थ - जिस प्रकार से पूर्वज महात्मा विद्वानों से शिक्षा पाकर उपकारक हुए हैं, इसी प्रकार मनुष्य त्रिलोकीनाथ परमात्मा की भक्ति के साथ एकचित्त होकर परोपकार करें ॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top