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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 94

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 94/ मन्त्र 2
    सूक्त - अथर्वाङ्गिरा देवता - सरस्वती छन्दः - विराड्जगती सूक्तम् - सांमनस्य सूक्त

    अ॒हं गृ॑भ्णामि॒ मन॑सा॒ मनां॑सि॒ मम॑ चि॒त्तमनु॑ चि॒त्तेभि॒रेत॑। मम॒ वशे॑षु॒ हृद॑यानि वः कृणोमि॒ मम॑ या॒तमनु॑वर्त्मान॒ एत॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒हम् । गृ॒भ्णा॒मि॒ । मन॑सा । मनां॑सि । मम॑ । चि॒त्तम् । अनु॑ । चि॒त्तेभि॑: । आ । इ॒त । मम॑ । वशे॑षु । हृद॑यानि। व॒: । कृ॒णो॒मि॒ । मम॑ । या॒तम् । अनु॑ऽवर्त्मान: । आ । इ॒त॒ ॥९४.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अहं गृभ्णामि मनसा मनांसि मम चित्तमनु चित्तेभिरेत। मम वशेषु हृदयानि वः कृणोमि मम यातमनुवर्त्मान एत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अहम् । गृभ्णामि । मनसा । मनांसि । मम । चित्तम् । अनु । चित्तेभि: । आ । इत । मम । वशेषु । हृदयानि। व: । कृणोमि । मम । यातम् । अनुऽवर्त्मान: । आ । इत ॥९४.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 94; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (अहम्) मैं (मनसा) अपने मन से (मनांसि) तुम्हारे मनों को (गृभ्णामि=गृह्णामि) थामता हूँ (मम) मेरे (चित्तम् अनु) चित्त के पीछे-पीछे (चित्तेभि=चित्तैः) अपने चित्तों से (आ इत) आओ। (मम वशेषु) अपने वश में (वः हृदयानि) तुम्हारे हृदयों को (कृणोमि) मैं करता हूँ, (मम यातम्) मेरी चाल पर (अनुवर्त्मानः) मार्ग चलते हुए (आ इत) यहाँ आओ ॥२॥

    भावार्थ - प्रधान पुरुष अपने शुभ विचार और साहस से सब सभासदों और प्रजागणों को धर्मपथ पर चलाकर परस्पर मेल के साथ साहसी और उत्साही बनावें ॥२॥ यह मन्त्र आ चुका है−अ० ३।८।६ ॥

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