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अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 25

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  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 25/ मन्त्र 1
    सूक्त - मेधातिथिः देवता - विष्णुः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - विष्णु सूक्त

    ययो॒रोज॑सा स्कभि॒ता रजां॑सि॒ यौ वी॒र्यैर्वी॒रत॑मा॒ शवि॑ष्ठा। यौ पत्ये॑ते॒ अप्र॑तीतौ॒ सहो॑भि॒र्विष्णु॑मग॒न्वरु॑णं पू॒र्वहू॑तिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ययो॑: । ओज॑सा । स्क॒भि॒ता । रजां॑सि । यौ । वी॒र्यै᳡: । वी॒रऽत॑मा । शवि॑ष्ठा । यौ । पत्ये॑ते॒ इति॑ । अप्र॑तिऽइतौ । सह॑:ऽभि: । विष्णु॑म् । अ॒ग॒न् । वरु॑णम् । पू॒र्वऽहू॑ति: ॥२६.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ययोरोजसा स्कभिता रजांसि यौ वीर्यैर्वीरतमा शविष्ठा। यौ पत्येते अप्रतीतौ सहोभिर्विष्णुमगन्वरुणं पूर्वहूतिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ययो: । ओजसा । स्कभिता । रजांसि । यौ । वीर्यै: । वीरऽतमा । शविष्ठा । यौ । पत्येते इति । अप्रतिऽइतौ । सह:ऽभि: । विष्णुम् । अगन् । वरुणम् । पूर्वऽहूति: ॥२६.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 25; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (ययोः) जिन दोनों के (ओजसा) बल से (रजांसि) लोक-लोकान्तर (स्कभिता) थमे हुए हैं, (यौ) जो दोनों (वीर्यैः) अपने पराक्रमों से (वीरतमा) अत्यन्त वीर और (शविष्ठा) महाबली हैं, (यौ) जो दोनों (सहोभिः) अपने बलों से (अप्रतीतौ) न रुकनेवाले होकर (पत्येते) ऐश्वर्यवान् हैं, [उन दोनों] (विष्णुम्) व्यापनशील [वा सूर्यसमान प्रतापी] राजा और (वरुणम्) श्रेष्ठ [वा जलसमान उपकारी] मन्त्री को (पूर्वहूतिः) सब लोगों का आवाहन (अगन्) पहुँचा है ॥१॥

    भावार्थ - जहाँ पर राजा और मन्त्री बलवान् और धार्मिक होते हैं, वहाँ प्रजागण उनका सदा सन्मान करते हैं ॥१॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है। अ० ८।५९।

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