Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 25

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 25/ मन्त्र 2
    सूक्त - मेधातिथिः देवता - विष्णुः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - विष्णु सूक्त

    यस्ये॒दं प्र॒दिशि॒ यद्वि॒रोच॑ते॒ प्र चान॑ति॒ वि च॒ चष्टे॒ शची॑भिः। पु॒रा दे॒वस्य॒ धर्म॑णा॒ सहो॑भि॒र्विष्णु॑मग॒न्वरु॑णं पू॒र्वहू॑तिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यस्य॑ । इ॒दम् । प्र॒ऽदिशि॑ । यत् । वि॒ऽरोच॑ते । प्र । च॒ । अन॑ति । वि । च॒ । चष्टे॑ । शची॑भि: । पु॒रा । दे॒वस्य॑ । धर्म॑णा । सह॑:ऽभ‍ि: । विष्णु॑म् । अ॒ग॒न् । वरु॑णम् । पू॒र्वऽहू॑ति: ॥२६.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्येदं प्रदिशि यद्विरोचते प्र चानति वि च चष्टे शचीभिः। पुरा देवस्य धर्मणा सहोभिर्विष्णुमगन्वरुणं पूर्वहूतिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यस्य । इदम् । प्रऽदिशि । यत् । विऽरोचते । प्र । च । अनति । वि । च । चष्टे । शचीभि: । पुरा । देवस्य । धर्मणा । सह:ऽभ‍ि: । विष्णुम् । अगन् । वरुणम् । पूर्वऽहूति: ॥२६.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 25; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (यस्य) जिन (देवस्य) व्यवहारकुशल [राजा और मन्त्री] के (प्रदिशि) अच्छे शासन में (धर्म्मणा) उनके धर्म अर्थात् नीति और (सहोभिः) पराक्रम से (इदम्) यह [राज्य] है, (यत्) जो कुछ (पुरा) हमारे सन्मुख (शचीभिः) अपने कर्मों से (विरोचते) जगमगाता है, (च) और (प्र अनति) श्वास लेता है (च) और (वि चष्टे) निहारता है, [उन दोनों] (विष्णुम्) व्यापनशील राजा और (वरुणम्) श्रेष्ठ मन्त्री को (पूर्वहूतिः) सबका आवाहन (अगन्) पहुँचा है ॥२॥

    भावार्थ - जहाँ राजा और मन्त्री के सुप्रबन्ध से प्रजा के सब स्थावर और जङ्गम पदार्थ सुरक्षित रहते हैं, वहाँ सब लोग प्रसन्न रह कर उस राज्य की प्रशंसा करते हैं ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top