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अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 34/ मन्त्र 17
यः सोम॑कामो॒ हर्य॑श्वः सू॒रिर्यस्मा॒द्रेज॑न्ते॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑। यो ज॒घान॒ शम्ब॑रं॒ यश्च॒ शुष्णं॒ य ए॑कवी॒रः स ज॑नास॒ इन्द्रः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठय: । सोम॑ऽकाम॒: । हरि॑ऽअश्व: । सू॒रि: । यस्मा॑त् । रेज॑न्ते । भुव॑नानि । विश्वा॑ ॥ य: । ज॒घान॑ । शम्ब॑रम् । य: । च॒ । शुष्ण॑म् । य: । ए॒क॒ऽवी॒र: । स: । ज॒ना॒स॒: । इन्द्र॑: ॥३४.१७॥
स्वर रहित मन्त्र
यः सोमकामो हर्यश्वः सूरिर्यस्माद्रेजन्ते भुवनानि विश्वा। यो जघान शम्बरं यश्च शुष्णं य एकवीरः स जनास इन्द्रः ॥
स्वर रहित पद पाठय: । सोमऽकाम: । हरिऽअश्व: । सूरि: । यस्मात् । रेजन्ते । भुवनानि । विश्वा ॥ य: । जघान । शम्बरम् । य: । च । शुष्णम् । य: । एकऽवीर: । स: । जनास: । इन्द्र: ॥३४.१७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 34; मन्त्र » 17
पदार्थ -
शब्दार्थ = ( यः ) = जो परमेश्वर ( सोमकाम: ) = सोम-ब्रह्मानन्द रस की कामना करनेवाले योगिजनों के अति प्रिय ( हर्यश्वः ) = मनुष्यों में व्यापक ( सूरि: ) = प्रेरक विद्वान् है ( यस्मात् ) = जिस परमात्मा से ( विश्वा ) = सब ( भुवनानि ) = लोक ( रेजन्ते ) = कांपते हैं ( यः ) = जो ( शम्बरम् ) = बादल में ( च ) = और ( य: ) = जो ( शुष्णम् ) = सूर्य में ( जघान ) = व्याप रहा है ( यः एकवीरः ) = जो अकेला शूरवीर है ( जनासः ) = हे मनुष्यो ! ( सः इन्द्रः ) = वह बड़े ऐश्वर्यवाला परमेश्वर है ।
भावार्थ -
भावार्थ = जो परमेश्वर सर्वव्यापक सर्वज्ञ परमैश्वर्यवान् सब ऐश्वर्य का उत्पादक, ऐश्वर्य का दाता है और जो प्रभु आप एकवीर होकर सारे संसार को अपने नियम में चला रहा है, उस महासमर्थ जगत्पिता की कृपा से ही पुरुष ऐश्वर्य और सुख को प्राप्त हो सकता है ।
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