ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 75/ मन्त्र 8
अ॒स्मिन्य॒ज्ञे अ॑दाभ्या जरि॒तारं॑ शुभस्पती। अ॒व॒स्युम॑श्विना यु॒वं गृ॒णन्त॒मुप॑ भूषथो॒ माध्वी॒ मम॑ श्रुतं॒ हव॑म् ॥८॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्मिन् । य॒ज्ञे । अ॒दा॒भ्या॒ । ज॒रि॒तार॑म् । शु॒भः॒ । प॒ती॒ इति॑ । अ॒व॒स्युम् । अ॒श्वि॒ना॒ । यु॒वम् । गृ॒णन्त॑म् । उप॑ । भू॒ष॒थः॒ । माध्वी॒ इति॑ । मम॑ । श्रुत॑म् । हव॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्मिन्यज्ञे अदाभ्या जरितारं शुभस्पती। अवस्युमश्विना युवं गृणन्तमुप भूषथो माध्वी मम श्रुतं हवम् ॥८॥
स्वर रहित पद पाठअस्मिन्। यज्ञे। अदाभ्या। जरितारम्। शुभः। पती इति। अवस्युम्। अश्विना। युवम्। गृणन्तम्। उप। भूषथः। माध्वी इति। मम। श्रुतम्। हवम् ॥८॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 75; मन्त्र » 8
अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 16; मन्त्र » 3
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अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 16; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स्त्रीपुरुषौ किं कुर्य्यातामित्याह ॥
अन्वयः
हे अदाभ्या माध्वी शुभस्पती अश्विना ! युवस्मिन् यज्ञे जरितारमवस्युं गृणन्तं जनमुपभूषथो मम हवं च श्रुतम् ॥८॥
पदार्थः
(अस्मिन्) गृहाश्रमाख्ये (यज्ञे) सम्यग्गन्तव्ये (अदाभ्या) अहिंसनीयौ (जरितारम्) स्तोतारम् (शुभः, पती) कल्याणकरव्यवहारस्य पालकौ (अवस्युम्) आत्मनोऽवं रक्षणमिच्छुं कामयमानं वा (अश्विना) ब्रह्मचर्य्येण प्राप्तविद्यौ स्त्रीपुरुषौ (युवम्) युवाम् (गृणन्तम्) स्तुवन्तम् (उप) (भूषथः) (माध्वी) (मम) (श्रुतम्) (हवम्) ॥८॥
भावार्थः
ये स्त्रीपुरुषा गृहाश्रमे वर्त्तमानाः शुभाचरणाः स्तुतिभिः स्तावका गृहकृत्यान्यलङ्कुर्वन्ति। अध्यापनपरीक्षाभ्यां विद्यां चोन्नयन्ति त एवेह प्रशंसिता भवन्ति ॥८॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर स्त्रीपुरुष क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (अदाभ्या) नहीं हिंसा करने योग्य (माध्वी) मधुर स्वभाववाले (शुभः, पती) कल्याणकारक व्यवहार के पालन करनेवाले (अश्विना) ब्रह्मचर्य्य से प्राप्त हुई विद्या जिनको ऐसे स्त्री पुरुषो ! (युवम्) आप दोनों (अस्मिन्) इस गृहाश्रम नामक (यज्ञे) उत्तम प्रकार प्राप्त होने योग्य यज्ञ में (जरितारम्) स्तुति करने और (अवस्युम्) अपने कल्याण की इच्छा वा कामना करनेवाले (गृणन्तम्) स्तुति करते हुए जन को (उप, भूषथः) शोभित करते हो (मम) मेरे (हवम्) आह्वान को भी (श्रुतम्) सुनिये ॥८॥
भावार्थ
जो स्त्री पुरुष गृहाश्रम में वर्त्तमान उत्तम आचरणवाले स्तुतियों से स्तुति करनेवाले गृह के कृत्यों को शोभित करते हैं तथा अध्यापन और परीक्षा से विद्या का उन्नति करते हैं, वे ही इस जगत् में प्रशंसित होते हैं ॥८॥
विषय
दो अश्वी । विद्वान् जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
भा०-हे (शुभस्पती अश्विना) कल्याणकारी व्यवहार के पालन करने वाले जितेन्द्रिय, उत्तम अश्व रथ के स्वामी स्त्री पुरुषो ! ( अस्मिन् यज्ञे ) इस परस्पर संगति द्वारा करने योग्य यज्ञ में ( अदाभ्या ) कभी पीड़ित न होकर (युवं ) तुम दोनों ( जरितारं ) उत्तम उपदेष्टा ( अवस्युं ) ज्ञान और रक्षा करने वाले ( गृणन्तं ) उपदेश करते हुए विद्वान् के ( उप ) समीप ( भूषथः ) प्राप्त होवो । ( माध्वी मम श्रुतं हवम् ) मधुवत् अन्न और ज्ञान के संग्रही होकर मेरे वचन श्रवण करो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अवस्युरात्रेय ऋषि: ।। अश्विनौ देवते ॥ छन्द: – १, ३ पंक्ति: । २, ४, ६, ७, ८ निचृत्पंक्तिः । ५ स्वराट् पंक्तिः । ९ विराट् पंक्तिः ।। नवर्चं सुक्तम् ।।
विषय
शुभस्पती
पदार्थ
[१] (अस्मिन् यज्ञे) = इस जीवनयज्ञ में (अदाभ्या) = न हिंसित होनेवाले (अश्विना) = प्राणापानो ! (युवम्) = आप (जरितारम्) = स्तोता को (अवस्युम्) = रक्षण की कामनावाले को तथा (गृणन्तम्) = ज्ञान की वाणियों का उच्चारण करनेवाले को (उप भूषथः) = समीपता से प्राप्त होते हो। आप (शुभस्पती) = [ शुभस् beauty, radiance, happiness, victory, water, a brilliant chariot] शरीर के सौन्दर्य का कारण बनते हो, ज्ञान की दीप्ति को प्राप्त कराते हो, जीवन को आनन्दमय बनाते हो, रोगों व वासनाओं पर हमें विजय प्राप्त कराते हो । रेत: कण रूप जलों के रक्षक होते हो, शरीर-रथ को तेजस्विता से दीप्त करते । आपके द्वारा ही प्रभु स्तवन की वृत्ति, रोगों से रक्षण तथा ज्ञानरुचि प्राप्त होती है [जरितारं, अवस्युं, गृणन्तम्] [२] इस प्रकार (माध्वी) = जीवन को अत्यन्त मधुर बनानेवाले आप (मम हवं श्रुतम्) = मेरी पुकार को सुनो। मैं सदा आपकी आराधना में प्रवृत्त होऊँ ।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणापान हमारे जीवन में 'शुभस्पती' हैं। ये सब शुभों को हमें प्राप्त कराते हैं । इनको प्राप्त कराके वे हमारे जीवन को मधुर बनाते हैं।
मराठी (1)
भावार्थ
जे स्त्री-पुरुष गृहस्थाश्रमात उत्तम आचरण करतात. प्रशंसनीय गृहकृत्ये करतात. अध्यापन करून परीक्षेने विद्येची उन्नती करतात तेच या जगात प्रशंसनीय ठरतात. ॥ ८ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
In this yajna of creation, invention and production for social good, O masters, indomitable Ashvins, twin protectors and promoters of creative people and noble works, come and grace the celebrant, supplicant with songs of homage for protection and patronage. O creators and givers of showers of honey sweets, listen to my prayer.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should men and women do is taught further.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O inviolable men and women of sweet temperament ! you have acquired knowledge by observing Brahmacharya. Protectors of the beneficial conduct, you decorate (shine. Ed.) in this Yajna in your household life (and dealings. Ed.) Decorate (honor) and admire virtues of those who praise you and desire their happiness. Listen to my this call.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Only those husbands and wives are admired by all, who are of good conduct in the domestic life, praise noble persons with admiration, and decorate (discharge well) their domestic duties and advance the cause of knowledge by teaching and (periodical. Ed.) examination.
Foot Notes
(अस्मिन् यज्ञे ) गृहाश्रमाख्ये । = In this Yajna which is to be approached well and unified. (Performed and coordinated well. Ed.) (अश्विन:) ब्रह्मचर्येण प्राप्तविद्यो स्त्रीषुरुषौ । यज्ञ देवपूजा- सङ्गतिकरणदानेषु । अत्र सङ्गतिरकणार्थ: गृहस्थाश्रमे सर्वपरिवार सदस्याना सङ्गतिकरणम् इति सोऽपि यज्ञः । अशूङ्-व्याप्तौ अत्र प्राप्तविद्यौ | = Who have received education with the observance of Brahmacharya (continence). Highly pervading in the knowledge-scholars.
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