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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 75 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 75/ मन्त्र 4
    ऋषिः - कविः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    अद्रि॑भिः सु॒तो म॒तिभि॒श्चनो॑हितः प्ररो॒चय॒न्रोद॑सी मा॒तरा॒ शुचि॑: । रोमा॒ण्यव्या॑ स॒मया॒ वि धा॑वति॒ मधो॒र्धारा॒ पिन्व॑माना दि॒वेदि॑वे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अद्रि॑ऽभिः । सु॒तः । म॒तिऽभिः । चनः॑ऽहितः । प्र॒ऽरो॒चय॑न् । रोद॑सी॒ इति॑ । मा॒तरा॑ । शुचिः॑ । रोमा॑णि । अव्या॑ । स॒मया॑ । वि । धा॒व॒ति॒ । मधोः॑ । धारा॑ । पिन्व॑माना । दि॒वेऽदि॑वे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अद्रिभिः सुतो मतिभिश्चनोहितः प्ररोचयन्रोदसी मातरा शुचि: । रोमाण्यव्या समया वि धावति मधोर्धारा पिन्वमाना दिवेदिवे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अद्रिऽभिः । सुतः । मतिऽभिः । चनःऽहितः । प्रऽरोचयन् । रोदसी इति । मातरा । शुचिः । रोमाणि । अव्या । समया । वि । धावति । मधोः । धारा । पिन्वमाना । दिवेऽदिवे ॥ ९.७५.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 75; मन्त्र » 4
    अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 33; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (रोदसी मातरा) अस्य संसारस्य मातृवत् पितृवत् वर्तमानौ द्युलोक-भूलोकौ तौ (प्ररोचयन्) प्रकाशयन् (च) अथ च (मतिभिः अद्रिभिः) ज्ञानरूपचित्तवृत्तिभिः (सुतः) संस्कृतस्तथा (चनोहितः) सर्वहितकारी (शुचिः) शुद्धस्वरूपः परमेश्वरः (समया) सर्वतः (रोमाण्यव्या) निखिलपदार्थान् रक्षयन् (विधावति) विशेषरूपेण गच्छति। (दिवेदिवे) अहरहः (मधोः धारा) अमृतवर्षणेन (पिन्वमाना) पुष्णाति ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (रोदसी मातरा) इस संसार के मातापितावत् वर्त्तमान जो द्युलोक और पृथिवीलोक हैं, उनको (प्ररोचयन्) प्रकाश करता हुआ (च) और (मतिभिः अद्रिभिः) ज्ञानरूपी चित्तवृत्तियों से (सुतः) संस्कृत और (चनोहितः) सबका हितकारी (शुचिः) शुद्धस्वरूप परमात्मा (समया) सब ओर से (रोमाण्यव्या) सब पदार्थों की रक्षा करता हुआ (विधावति) विशेषरूप से गति करता है। (दिवेदिवे) प्रतिदिन (मधोः धारा) अमृतवृष्टि से (पिन्वमाना) पुष्ट करता है ॥४॥

    भावार्थ

    द्युलोक और पृथिव्यादि लोक-लोकान्तरों का प्रकाशक परमात्मा अपनी सुधामयी-वृष्टि से सदैव पवित्र करता है ॥४॥

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    विषय

    उसकी सर्वप्रियता।

    भावार्थ

    वह विद्वान् तेजस्वी, (अद्रिभिः) न भय खाने वाले, मेघवत् उदार और जलधारा छोड़ने वाले वा शस्त्रास्त्रधारी सैन्याध्यक्षों द्वारा (सुतः) अभिषिक्त, (मतिभिः) ज्ञानवान्, पुरुषों द्वारा (चनः-हितः) पूज्य पद पर स्थित, (शुचिः) शुद्ध, चरित्रवान् धार्मिक होकर (रोदसी प्ररोचयन्) भूमि और आकाश दोनों को खूब प्रकाशित करता हुआ सूर्य के तुल्य और (मातरा प्ररोचयन्) माता पिताओं को प्रसन्न करते हुए, पुत्र के तुल्य राजा प्रजा वर्गों को अच्छा लगता है। वह (समया) सब ओर से (अव्या रोमाणि) भेड़ के रोमों के बने पवित्र वस्त्रों को (वि धावति) विशेष रूप से धारण करता है। और (दिवे दिवे) दिनों दिन उसके (मधोः धारा) उत्तम शब्दमय वेद की वाणी और शत्रुओं को संतापित करने वाले सत्य बल की धारणा शक्ति (पिन्वमाना) बढ़ती रहती है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कविर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, ३, ४ निचृज्जगती। २ पादनिचृज्जगती। ५ विराड् जगती॥

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    विषय

    मतिभिः अद्रिभिः सुतः

    पदार्थ

    [१] (मतिभिः) = मननशील (अद्रिभिः) = उपासकों से [adore] (सुत:) = अपने अन्दर उत्पन्न किया गया (चनो हितः) = हितकर सोम्य अन्नवाला यह सोम (मातरा) = हमारे माता-पिता के समान (रोदसी) = द्यावापृथिवी को, मस्तिष्क व शरीर को (प्ररोचयन्) दीप्त करता हुआ यह सोम है। (शुचिः) = यह पवित्र हैं, हमारे जीवन को पवित्र करनेवाला है। [२] यह (अव्या) = रक्षण में उत्तम (रोमाणि समया) = [रु शब्दे] स्तुति शब्दों के समीप होता हुआ (विधावति) = हमारा विशेषरूप से शोधन करता है। हमें स्तुति की प्रवृत्तिवाला बनाता है और इस प्रकार हमारे जीवन को शुद्ध करता है । इस सोमरक्षण से हमारे जीवन में (दिवे दिवे) = दिन व दिन (मधोः धारः) = माधुर्य की धारा (पिन्वमाना) = वृद्धि को प्राप्त होती है। यह सोम जीवन को अधिकाधिक मधुर बनाता चलता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण के लिये साधन हैं, [क] मननपूर्वक प्रभु स्तवन व [ख] सोम्य अन्नों का सेवन । सुरक्षित सोम के लाभ हैं, [क] मस्तिष्क व शरीर की पवित्रता, [ख] दिन व दिन माधुर्य की वृद्धि ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Distilled in essence and presence in the heart, realised in bliss by veteran wise, pure, immaculate and brilliant, illuminating mother earth and mother heavens of life and existence, Soma radiates, blessing sacred hearts in communion and augmenting systemic unions of existence all round flowing in streams of honey joy.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    द्युलोक व पृथ्वी इत्यादी लोकलोकांतरांचा प्रकाशक परमात्मा आपल्या अमृतमयी वृष्टीने सदैव पवित्र करतो. ॥४॥

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