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अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 26 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 26/ मन्त्र 2
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - सविता, भग इन्द्रः छन्दः - एकावसाना त्रिपदा साम्नी त्रिष्टुप् सूक्तम् - सुख प्राप्ति सूक्त
    1

    सखा॒साव॒स्मभ्य॑मस्तु रा॒तिः सखेन्द्रो॒ भगः॑। स॑वि॒ता चि॒त्ररा॑धाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सखा॑ । अ॒सौ । अ॒स्मभ्य॑म् । अ॒स्तु॒ । रा॒ति: । सखा॑ । इन्द्र॑: । भग॑: । स॒वि॒ता । चि॒त्रऽरा॑धा: ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सखासावस्मभ्यमस्तु रातिः सखेन्द्रो भगः। सविता चित्रराधाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सखा । असौ । अस्मभ्यम् । अस्तु । राति: । सखा । इन्द्र: । भग: । सविता । चित्रऽराधा: ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 26; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    युद्ध का प्रकरण।

    पदार्थ

    (असौ) वह (रातिः) दानशील राजा (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (सखा) मित्र (अस्तु) होवे, (भगः) सबका सेवनीय, (सविता) लोकों को चलानेवाले सूर्य के समान प्रतापी, (चित्रराधाः) अद्भुत धनयुक्त (इन्द्रः) बड़े ऐश्वर्यवाला (सखा) मित्र (अस्तु) होवे ॥२॥

    भावार्थ

    राजा अपनी प्रजा, सेना और कर्मचारियों पर सदा उदारचित्त रहे और सूर्य के समान महाप्रतापी और ऐश्वर्यशाली और महाधनी होकर सबका हितकारी बने और सबकी उन्नति से अपनी उन्नति करे ॥२॥

    टिप्पणी

    २−सखा। १।२०।४। सुहृत्, मित्रम्। रातिः। क्तिच्क्तौ च संज्ञायाम्। पा० ३।३।१७४। इति रा दाने-क्तिच्। चितः। पा० ६।१।१६३। इति अन्तोदात्तः। उदारः, दाता राजा। इन्द्रः। १।२।३। परमैश्वर्यवान्। भगः। १।१४।१। भज सेवायाम्-घ। घत्वम्। सर्वैर्भजनीयः, सर्वैः सेवनीयः। सविता। १।१८।२। सर्वप्रेरकः। सर्ववशी, सूर्यवत् प्रतापी। त्रिचराधाः। चित्र+राध संसिद्धौ-असुन्। राध इति धननाम राध्नुवन्त्यनेनेति यास्कः−निरु० ४।४। विचित्रधनयुक्तः, अद्भुतधनः ॥

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    विषय

    दिव्य भावों के साथ मित्रता

    पदार्थ

    १. (अस्मभ्यम्) = हमारे लिए (असौ) = वह (राति:) = दान देने की भावना (सखा अस्तु)-मित्र हो। अदानशीलता ही सबसे बड़ा शत्रु है, यही देव-विपरीत भाव है। देव देते हैं, असुर हड़प कर जाते हैं। दान यज्ञ की चरम सीमा है। यह लोभ के मूल पर कुठाराघात करता है और इसप्रकार व्यसन-वृक्ष को उखाड़ फेंकता है। २. (इन्द्रः सखा) = वह परमैश्वर्यशाली प्रभु हमारा सखा हो। इन्द्र शब्द जितेन्द्रियता की सूचना देता है। जितेन्द्रियता ही परमेश्वर्यता का कारण बनती है। जितेन्द्रियता ही वस्तुतः उस वृत्त का केन्द्र है, जिसकी परिधि सब सद्गुणों से बनी हुई है। ३. (भग:) = भजनीय धन हमारा मित्र हो। वही धन भजनीय है जो औरों के साथ बाँटकर खाया जाता है। केवल अपने लिए विनियुक्त होनेवाला धन निधन का कारण बनता है। यही भाव 'यज्ञशेष को अमृत' नाम देकर व्यक्त किया गया है। ४. (सविता) = यह निर्माण की देवता है। जगदुत्पादक प्रभु 'सविता' हैं। मैं भी निर्माण की वृत्तिवाला बनकर आधिदैविक कष्टों से ऊपर उत्। जिस राष्ट्र में निर्माणरुचि जनता का बाहुल्य होता है, वह आधिदैविक कष्टों से बचा रहता है। ५. (चित्रराधा:) = ज्ञानरूप अद्भुत सम्पत्तिवाला प्रभु हमारा मित्र हो। ज्ञान को ही वास्तविक सम्पत्ति समझने पर हमारी वृत्ति उत्कृष्ट होगी और हम आधिदैविक कष्टों के शिकार न होंगे।

    भावार्थ

    'दानवृत्ति, जितेन्द्रियता, मिलकर सेवनीय धन, निर्माणरुचिता, जान को ही सम्पत्ति समझना'-ये बातें राष्ट्र को आधिदैविक कष्टों से बचाती हैं।

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    भाषार्थ

    (असौ) वह (रातिः) दाता परमेश्वर (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (सखा) मित्र (अस्तु) हो (इन्द्रः) परमेश्वर्यवान् परमेश्वर (भगः) भजनीय परमेश्वर, (सविता) सर्वोत्पादक परमेश्वर तथा (चित्रराधा:) चित्र-विचित्र धनवाला परमेश्वर (सखा अस्तु ) हमारे लिये सखा हो।

    टिप्पणी

    [रातिः आदि परमेश्वर के नाम हैं। परमेश्वर और जीवात्मा परस्पर सखा हैं, "द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते" (९।१४।२०)। समानवृक्ष है संसार। ये दोनों परस्पर सखा हैं- इस सत्य का ही कथन मन्त्र में हुआ है। चित्रराधाः= राधः धननाम (निघं० २।१०)। परमेश्वर के धन चित्र-विचित्र हैं, नानाविध हैं। यह समग्र संसार उसका धन है, जोकि नानाविध वस्तुओं से भरपूर है।]

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    विषय

    रक्षा, सभ्यता और शान्ति।

    भावार्थ

    ( असौ ) वह ( रातिः ) सबको धन ऐश्वर्य देने वाला पुरुष, ( भगः ) ऐश्वर्यों का स्वामी, ( सविता ) सबका प्रेरक और ( चित्रराधाः ) नाना प्रकार से आराधना और साधना करने योग्य या नाना अद्भुत ऐश्वर्यों का स्वामी (इन्द्रः) राजा के समान परमेश्वर ही ( अस्मभ्यं ) हमारा (सखा) एकमात्र मित्र (अस्तु ) हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। इन्दादयो मन्त्रोक्ता बहवो देवताः। १,३ गायत्री, २ त्रिपदा साम्नी त्रिष्टुप्। ४ पादनिचृत्। २, ४ एकावसाना। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Peace and Protection

    Meaning

    May that generous man be our friend, may Indra, the ruler, Bhaga, nature’s and human spirit of prosperity be our friend. May Savita, lord of life and wondrous giver of light, be our friend.

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    Translation

    May that liberal donor, be our companion; may the resplendent Lord, the Lord of prosperity and the inspirer Lord of wonderful wealth be our friend.

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    Translation

    May that man who is munificent be our friend, may be our mighty ruler, may the person possessing wealth be our friend and may God, the creator of all be our friend.

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    Translation

    Let God, the Giver of wealth unto all the Lord of powers, the creator of all the Master of diverse, wonderful superhuman sway, be our friend.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−सखा। १।२०।४। सुहृत्, मित्रम्। रातिः। क्तिच्क्तौ च संज्ञायाम्। पा० ३।३।१७४। इति रा दाने-क्तिच्। चितः। पा० ६।१।१६३। इति अन्तोदात्तः। उदारः, दाता राजा। इन्द्रः। १।२।३। परमैश्वर्यवान्। भगः। १।१४।१। भज सेवायाम्-घ। घत्वम्। सर्वैर्भजनीयः, सर्वैः सेवनीयः। सविता। १।१८।२। सर्वप्रेरकः। सर्ववशी, सूर्यवत् प्रतापी। त्रिचराधाः। चित्र+राध संसिद्धौ-असुन्। राध इति धननाम राध्नुवन्त्यनेनेति यास्कः−निरु० ४।४। विचित्रधनयुक्तः, अद्भुतधनः ॥

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (অসৌ) সেই (রাতিঃ) দানশীল রাজা (অস্মভ্যম্) আমাদের জন্য (সখা) মিত্র (অন্তু) হউক (ভগঃ) সেবণীয় (সবিতা) সূর্য তুল্য প্রতাপী (চিত্র রাধাঃ) বহু ধনযুক্ত (ইন্দ্ৰঃ) ঐশ্বর্যশালী (সখা) মিত্র (অস্ত্র) হউক।।

    भावार्थ

    সেই দানশীল রাজা আমাদের নিকট মিত্র, সূর্যতুল্য প্রতাপবান, অদ্ভূত ধনযুক্ত ও ঐশ্বর্যশালী বন্ধুরূপে থাকুন।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    সখা সাবস্মভ্যমন্তু রাতি সখেন্দ্রো ভগঃ। সবিতা চিত্র রাধাঃ।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    ব্রহ্মা। ইন্দ্রাদয়ো মন্ত্রোক্তাঃ। ত্রিপদা সামী ত্রিষ্টুপ্ (একাবসানা)

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    मन्त्र विषय

    (যুদ্ধপ্রকরণম্) যুদ্ধের প্রকরণ

    भाषार्थ

    (অসৌ) সেই (রাতিঃ) দানশীল রাজা (অস্মভ্যম্) আমাদের জন্য (সখা) মিত্র (অস্তু) হোক, (ভগঃ) সকলের সেবনীয়, (সবিতা) লোকসমূহকে চালনাকারী সূর্যের ন্যায় প্রতাপী, (চিত্ররাধাঃ) অদ্ভুত ধনযুক্ত (ইন্দ্রঃ) বৃহৎ ঐশ্বর্যবান (সখা) মিত্র (অস্তু) হোক ॥২॥

    भावार्थ

    রাজা নিজের প্রজা, সেনা এবং কর্মচারীদের উপর সদা উদারচিত্ত থাকবেন, সূর্যের ন্যায় মহাপ্রতাপী এবং ঐশ্বর্যশালী এবং মহাধনী হয়ে সকলের হিতকারী হবেন এবং সবার উন্নতি দ্বারা নিজের উন্নতি করবেন ॥২॥

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    भाषार्थ

    (অসৌ) সেই (রাতিঃ) দাতা পরমেশ্বর (অস্মভ্যম্) আমাদের জন্য (সখা) মিত্র (অস্তু) হোক (ইন্দ্রঃ) পরমেশ্বর্যবান্, পরমেশ্বর, (ভগঃ) ভজনীয় পরমেশ্বর, (সবিতা) সর্বোৎপাদক পরমেশ্বর তথা (চিত্ররাধাঃ) চিত্র-বিচিত্র ধনাধিপতি পরমেশ্বর (সখা অস্তু) আমাদের জন্য সখা হোক।

    टिप्पणी

    [রাতিঃ আদি হলো পরমেশ্বরের নাম। পরমেশ্বর এবং জীবাত্মা পরস্পর সখা, "দ্বা সুপর্ণা সয়ুজা সখায়া সমানং বৃক্ষং পরিষস্বজাতে" (৯।১৪।২০)। সমানবৃক্ষ হলো সংসার। এই দুটি পরস্পর সখা-এই সত্যের বিবৃতি মন্ত্রে হয়েছে। চিত্ররাধাঃ =রাধঃ ধননাম (নিঘং০ ২।১০)। পরমেশ্বরের ধন চিত্র-বিচিত্র, নানাবিধ। এই সমগ্র সংসার উনার ধন, যা নানাবিধ বস্তুতে পরিপূর্ণ।]

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