अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 29/ मन्त्र 5
ऋषिः - वसिष्ठः
देवता - अभीवर्तमणिः, ब्रह्मणस्पतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - राष्ट्र अभिवर्धन सूक्त
3
उद॒सौ सूर्यो॑ अगा॒दुदि॒दं मा॑म॒कं वचः॑। यथा॒हं श॑त्रु॒हो ऽसा॑न्यसप॒त्नः स॑पत्न॒हा ॥
स्वर सहित पद पाठउत् । अ॒सौ । सूर्य॑: । अ॒गा॒त् । उत् । इ॒दम् । मा॒म॒कम् । वच॑: । यथा॑ । अ॒हम् । श॒त्रु॒ऽह: । असा॑नि । अ॒स॒प॒त्न: । स॒प॒त्न॒ऽहा ॥१.२९.५॥
स्वर रहित मन्त्र
उदसौ सूर्यो अगादुदिदं मामकं वचः। यथाहं शत्रुहो ऽसान्यसपत्नः सपत्नहा ॥
स्वर रहित पद पाठउत् । असौ । सूर्य: । अगात् । उत् । इदम् । मामकम् । वच: । यथा । अहम् । शत्रुऽह: । असानि । असपत्न: । सपत्नऽहा ॥१.२९.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजतिलकयज्ञ के लिये उपदेश।
पदार्थ
(असौ) वह (सूर्यः) लोकों का चलानेहारा सूर्य (उत् अगात्) उदय हुआ है और (इदम्) यह (मामकम्) मेरा (वचः) वचन (उत्=उत् अगात्) उदय हुआ है (यथा) जिससे कि (अहम्) मैं (शत्रुहः) शत्रुओं का मारनेवाला और (सपत्नहा) रिषु दल का नाश करनेवाला होकर (असपत्नः) शत्रुरहित (असानि) रहूँ ॥५॥
भावार्थ
राजा राजसिंहासन पर विराज कर राजघोषणा करे कि जिस प्रकार पृथिवी पर सूर्य प्रकाशित है, उसी प्रकार से यह राजघोषणा [ढंढोरा] प्रकाशित की जाती है कि राज्य में कोई उपद्रव न मचावे और न अराजकता फैलावे ॥५॥ इस मन्त्र का पूर्वार्ध ऋ० १०।१५९।१। का पूर्वार्ध है, वहाँ (वचः) के स्थान में (भगः) है ॥
टिप्पणी
५−उत्+अगात्। १।२८।१। उदितवान्। सूर्यः। १।३।५। लोकानां प्रेरकः। आदित्यः। राज्यलक्ष्मीरूपः। उत्=उत् अगात्। इदम्। वक्ष्यमाणं वचनम्। मामकम्। तस्येदम्। पा० ४।३।१२०। इति अस्मद् अण्। तवकममकावेकवचने। पा० ४।३।३। इति ममकादेशः। मदीयम्। वचः। वच कथने−असुन्। वाक्यम् वचनम्। यथा। येन कारणेन। अहम्। राजा। शत्रु-हः। आशिषि हनः। पा० ३।२।४९। इति शत्रु+हन हिंसागत्योः−ड प्रत्ययः। शत्रूणां हन्ता। असानि। अस सत्तायां−लोट्। अहं भवानि। असपत्नः। म० २। शत्रुरहितः। सपत्नहा। क्विप् च। पा० ३।२।७६। इति सपत्न+हन्−क्विप्। रिपुहन्ता ॥
विषय
अशत्रु-असपत्न
पदार्थ
१. (असौ) = वह (सूर्य:) = सूर्य (उद् अगात्) = उदय हुआ है। सूर्योदय के साथ ही (इदम्) = यह (मामकं वच:) = मेरा वचन भी (उद्) = उदित होता है-मैं भी प्रभु के आराधन में तत्पर होता हूँ (यथा) = जिससे कि (अहम्) = मैं (शत्रुहः) = काम, क्रोध, लोभ आदि शत्रुओं का हनन करनेवाला (असानि) = होऊँ। प्रभु का आराधन ही मुझे काम आदि शत्रुओं के पराभव में समर्थ बनाएगा मैं स्वयं तो काम आदि को क्या जीत पाँऊगा? इन्हें पराजित तो प्रभु को ही करना है। २. कामादि के पराभव के साथ मैं (असपत्न:) = सपत्नों से रहित होऊँ-(सपत्नहा) = इन सपत्नों का नाश करनेवाला होऊँ। रोगकृमि ही सपत्न हैं, सूर्य अपनी रश्मियों से इन रोगकृमिरूप सपत्नों को नष्ट करता है। सूर्य-किरणों में प्रभु ने क्या ही अद्भुत शक्ति रक्खी है!
भावार्थ
सूर्योदय के साथ में प्रभु का आराधन करनेवाला होऊँ। यह मुझे असपत्न व अशत्रु बनाए।
भाषार्थ
(असौ सूर्यः उद् अगात्) वह सूर्य उदित हुआ है, (मामकम् ) मेरा (इदम् वचः) यह वचन भी (उद् अगात्) उदित हुआ है, (यथा) "जिस प्रकार कि (अहम्) मैं (शत्रुहः) शत्रु का हनन करनेवाला (असानि) हो जाऊँ, (असपत्नः) शत्रुरहित हुआ (सपत्नहा) शत्रु का हनन करनेवाला हो जाऊँ।"
विषय
युद्ध सम्बन्धी अभीवर्त शक्ति का वर्णन।
भावार्थ
( असौ ) वह द्यौलोक में प्रकाशित ( सूर्यः ) सूर्य ( उत् अगात् ) उदय होता है और इसी प्रकार ( मामकं ) मेरा ( इदं ) यह ( वचः ) प्रतिज्ञा वचन भी (उत्) प्रकट होता है, ( यथा ) वह यह मैं ( शत्रुहः ) शत्रुओं का नाशक और ( सपत्नहा ) मेरे राष्ट्र पर अपने स्वामित्व को चाहने वाले विरोधियों का नाशक होकर ( असपत्नः ) शत्रुरहित, एकच्छत्र, अद्वितीय समाट्र ( असानि ) होजाऊं ।
टिप्पणी
‘उदलौ सूर्योऽगादुदयं मामको भगः। अहं तद्विंद्वला पतिमभ्यसाक्षि विषा सहिः’ इति ऋ० १०। २५९। १।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः। अभीवर्त्तमणिमुद्दिश्य ब्रह्मणस्पतिर्देवता। चन्द्रमसं राजानमभिलक्ष्य ह्वह्मणस्पतेः स्तुतिः। अनुष्टुप् छन्दः। षडृचं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (4)
Subject
Rise of the Rashtra
Meaning
As the sun there rises in heaven, so does my word of commitment arise here in the republic, so that with my word and the people’s commitment and character I may eliminate enmity, subdue adversarial rivalries and rule with freedom from fear, insecurity and the onslaughts of enemies.
Translation
Lo, the Sun has gone up high and high has gone up this word (vacas) of mine, so that I may be slayer of enemies, slayer of rivals, no rival would be spared from my side.
Translation
The Sun goes to rise, the word of mine also is mounting up. Since I am the killer of enemies therefore may I become the slayer of foes and without enemy.
Translation
Just as you Sun hath mounted up on high, so hath this proclamation of mine been announced, ‘That I shall smite my foes and slay my rivals, and be thus rivalless.’
Footnote
I and mine refer to the king.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−उत्+अगात्। १।२८।१। उदितवान्। सूर्यः। १।३।५। लोकानां प्रेरकः। आदित्यः। राज्यलक्ष्मीरूपः। उत्=उत् अगात्। इदम्। वक्ष्यमाणं वचनम्। मामकम्। तस्येदम्। पा० ४।३।१२०। इति अस्मद् अण्। तवकममकावेकवचने। पा० ४।३।३। इति ममकादेशः। मदीयम्। वचः। वच कथने−असुन्। वाक्यम् वचनम्। यथा। येन कारणेन। अहम्। राजा। शत्रु-हः। आशिषि हनः। पा० ३।२।४९। इति शत्रु+हन हिंसागत्योः−ड प्रत्ययः। शत्रूणां हन्ता। असानि। अस सत्तायां−लोट्। अहं भवानि। असपत्नः। म० २। शत्रुरहितः। सपत्नहा। क्विप् च। पा० ३।२।७६। इति सपत्न+हन्−क्विप्। रिपुहन्ता ॥
बंगाली (3)
पदार्थ
(অসৌ) সেই (সূৰ্য্যঃ) লোক চালক সূর্য (উৎ অগাৎ) উদয় হইয়াছে, (ইদম্) এই (মামকং) আমার (বচঃ) বচন (উৎ) উদয় হইয়াছে (য়থা) যাহা দ্বারা (অহং) আমি (শত্রুহঃ) শত্রু নাশক, (সপত্নহা) রিপু নাশক, (অসপত্নঃ ) শত্রু রহিত (অসানি) থাকিব।।
भावार्थ
সূর্য যেমন উদিত হইল, রাজ্যের ঘোষণা বাণীও সেইরূপ উদিত হইল। আমি শত্রু নাশকও অপ্রত্যক্ষ বৈরীর বিনাশকর্তা, আমি শত্রু রহিত হইয়া থাকিব।।
मन्त्र (बांग्ला)
উদসৌ সূৰ্য্যা অগাদুদিদং মামকং বচঃ। য়থাহং শত্ৰুহোহ্ সান্য সপত্নঃ সপত্নহা।।
ऋषि | देवता | छन्द
বসিষ্ঠঃ। ব্রহ্মণস্পতিঃ, অভীবর্তমণিঃ। অনুষ্টুপ্
मन्त्र विषय
(রাজসূয়যজ্ঞোপদেশঃ) রাজতিলক যজ্ঞের জন্য উপদেশ।
भाषार्थ
(অসৌ) সেই (সূর্যঃ) লোকসমূহকে চালনাকারী সূর্য (উৎ অগাৎ) উদিত হয়েছে এবং (ইদম্) এই (মামকম্) আমার (বচঃ) বচন (উৎ=উৎ অগাৎ) উদয় হয়েছে (যথা) যার দ্বারা/যাতে (অহম্) আমি (শত্রুহঃ) শত্রুদের বিনাশকারী এবং (সপত্নহা) রিপু দলের বিনাশকারী হয়ে (অসপত্নঃ) শত্রুরহিত (অসানি) থাকব/থাকি ॥৫॥
भावार्थ
রাজা রাজসিংহাসনে বিরাজ করে রাজঘোষণা করবেন যে, যেভাবে পৃথিবীতে সূর্য প্রকাশিত হয়, তেমনিভাবে এই রাজঘোষণা প্রকাশিত করা হচ্ছে যে, রাজ্যে যেন কেউ উপদ্রব না সৃষ্টি করে এবং না অরাজকতা বিস্তার করে ॥৫॥ এই মন্ত্রের পূর্বার্ধ ঋ০ ১০।১৫৯।১। এর পূর্বার্ধ, সেখানে (বচঃ) এর স্থানে (ভগঃ) রয়েছে॥
भाषार्थ
(অসৌ সূর্যঃ উদ্ অগাৎ) সেই সূর্য উদিত হয়েছে, (মামকম্) আমার (ইদম্ বচঃ) এই বচনও (উদ্ অগাৎ) উদিত হয়েছে, (যথা) যাতে (অহম্) আমি (শত্রু) শত্রুর হননকারী (আসানি) হই/হয়ে যাই, (অসপত্নঃ) শত্রুরহিত হয়ে (সপত্নহা) শত্রুর হননকারী হয়ে যাই।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal