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अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मित्रम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - मूत्र मोचन सूक्त
    1

    वि॒द्मा श॒रस्य॑ पि॒तरं॑ मि॒त्रं श॒तवृ॑ष्ण्यम्। तेना॑ ते त॒न्वे॑३ शं क॑रं पृथि॒व्यां ते॑ नि॒षेच॑नं ब॒हिष्टे॑ अस्तु॒ बालिति॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒द्म । श॒रस्य॑ । पि॒तर॑म् । मि॒त्रम् । श॒तऽवृ॑ष्ण्यम् । तेन॑ । ते॒ । त॒न्वे । शम् । क॒र॒म् । पृ॒थि॒व्याम् । ते॒ । नि॒ऽसेच॑नम् । ब॒हिः । ते॒ । अ॒स्तु॒ । बाल् । इति॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विद्मा शरस्य पितरं मित्रं शतवृष्ण्यम्। तेना ते तन्वे३ शं करं पृथिव्यां ते निषेचनं बहिष्टे अस्तु बालिति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विद्म । शरस्य । पितरम् । मित्रम् । शतऽवृष्ण्यम् । तेन । ते । तन्वे । शम् । करम् । पृथिव्याम् । ते । निऽसेचनम् । बहिः । ते । अस्तु । बाल् । इति ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शान्ति के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (शरस्य) शत्रुनाशक शूर [वा बाणधारी] के (पितरम्) रक्षक पिता, (मित्रम्) सबके चलानेवाले [वा स्नेहवान्] वायुरूप (शतवृष्ण्यम्) सैकड़ों सामर्थ्यवाले [परमेश्वर] का (विद्म) हम जानते हैं। तेन उस [ज्ञान] से...... ॥२॥

    भावार्थ

    जैसे वायु सब प्राणियों के जीवन का आधार है, वैसे ही परमेश्वर वायु का भी प्राण है इत्यादि ॥२॥ सायणभाष्य में (मित्र) शब्द का अर्थ दिन का अभिमानी देवता है ॥

    टिप्पणी

    २−मित्रम्। अमिचिमिशसिभ्यः क्त्रः। उ० ४।१६४। इति डुमिञ् प्रक्षेपणे−क्त्र। मिनोति प्रेरयति वृष्टिं अन्यपदार्थान् चेति मित्रः, यद्वा मिद स्नेहे-त्र। सर्वप्रेरकः। स्नेहवान्। वायुः। वायुवत् उपकारकम्। मित्रशब्दो भगवता यास्केन मध्यस्थानदेवतासु पठितः−निरु० १०।२१-२२। अहरभिमानी देवो मित्रः−इति सायणः। वायुम्। दिनकालम्। शेषं पूर्ववद् योज्यम्, मन्त्रे १ ॥

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    विषय

    मित्र [अहन्]

    पदार्थ

    १. हम (शरस्य) = शर के (पितरम्) = जन्म देनेवाले (शतवृष्ण्यम्) = शतश: शक्तियोंवाले मित्रम्-अहन् [दिन] को [अहोरात्रौ बै मित्रावरुणौ-तां० २५।१०।१०] (मुञ्ज) = जानते हैं। दिन में सूर्य का प्रकाश इस शर में अपनी शतश: शक्तियों को स्थापित करता है। २. (तेन) = उस शर से (तन्वे) = तेरे शरीर के लिए (शंकरम्) = शान्ति करता हूँ। (ते पृथिव्याम) = तेरे पृथिवीरूप शरीर में (निषेचनम्) = इस शर से रस का निषेचन हो और (बाल इति) = क्योंकि यह शर प्राणशक्ति का सञ्चार करनेवाला है, अत: (ते) = तेरे शरीर से सब दोष (बहिः अस्तु) = बाहर निकल जाए।

    भावार्थ

    दिन में शर सूर्य-किरणों से अपने में प्राण-शक्ति लेता है और इसप्रकार हमें शतवर्षपर्यन्त शक्तिशाली बनाता है।

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    भाषार्थ

    (शतवृष्ण्यम्) सैकड़ों प्रकार से सुखों की वर्षा करनेवाले, (शरस्य पितरम्) शरीर विशिष्ट जीवात्मा के (मित्रम्) मित्रवत् हितकारी "दिन" को (विद्म) हम जानते हैं। (तेन) उस दिन द्वारा (ते तन्वे) तेरी तनू के लिये (शम्) सुख (करम् ) मैं करता हूँ, (ते) तेरा ( निषेचनम् ) मूत्रसेचन (पृथिव्याम्) पृथिवी पर हो (ते) तेरा मूत्र (बहिः) बाहर (अस्तु) हो, (बालिति) अर्थात् वारिरूप, जल अर्थात् मूत्र जल।

    टिप्पणी

    ["मैत्रं वा अहः, बारुणी१ रात्रि:२" (तै० ब्रा० १।७।२०,१-२)। दिन का प्रकाश वस्तुतः विविध सुखों की वर्षा करता है।] [१. मन्त्र २-४ में दिन-काल तथा रात्र काल का और उनके देवताओं वरुण और चन्द्र का भी वर्णन हुआ है। २. रात्री दीर्घशयन प्रदान द्वारा तनू पर सुखवर्षां करती है। ]

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    विषय

    शर और शलाका का वर्णन ( वस्तिचिकित्सा ) ।

    भावार्थ

    ( शतवृष्ण्यं ) सैकड़ों सहस्रों, अपरिमित वीर्यवान्, ( मित्रं ) सबके स्नेही एवं प्रकाशक सूर्य के समान वैद्य को ( शरस्य ) शलाका का (पितरं) पिता, पालक (विद्म) जानते हैं। ( तेन ते तन्वे शं करं ) उससे तेरे शरीर के लिये मैं कल्याण करता हूं। (पृथिव्यां ते निषेचनं) तेरा मृत्रास्त्राव पृथिवी पर ( बाल् इति बहिः ते अस्तु ) बलपूर्वक तेरे देह से बाहर होकर प्राणरक्षा का कारण हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ताः पर्जन्यमित्रादयो बहवो देवताः। १-५ पथ्यापंक्ति, ६-९ अनुष्टुभः। नवर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Health of Body and Mind

    Meaning

    We know the progenitor of Shara, Mitra, profuse pranic energy of nature of a hundredfold vigour and vitality. Thereby I bring you health of body and peace of mind. Let there be the infusion of vigour, protection of health and cleansing of the body system on earth without delay.

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    Translation

    We all know the reed as father to be the vital breath (or the friendly Lord) having hundred fold generative power. With this (reed) I shall bring weal and comfort to your body. May there be your out-pouring on the earth. May it come out of you with a splash (Mitra).

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    Translation

    We know the hydrogen gass posseing hundreds of powers which is the protector of Sarass. By using this etc.

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    Translation

    We know God, the Master of hundred powers, the Friend of all like air, as the Father of the warrior, who wields the shaft. With that knowledge, may I bring health unto thy body. May thou prosper on the Earth. May all ills in thy body be soon removed.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−मित्रम्। अमिचिमिशसिभ्यः क्त्रः। उ० ४।१६४। इति डुमिञ् प्रक्षेपणे−क्त्र। मिनोति प्रेरयति वृष्टिं अन्यपदार्थान् चेति मित्रः, यद्वा मिद स्नेहे-त्र। सर्वप्रेरकः। स्नेहवान्। वायुः। वायुवत् उपकारकम्। मित्रशब्दो भगवता यास्केन मध्यस्थानदेवतासु पठितः−निरु० १०।२१-२२। अहरभिमानी देवो मित्रः−इति सायणः। वायुम्। दिनकालम्। शेषं पूर्ववद् योज्यम्, मन्त्रे १ ॥

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (শরস্য) শত্রু নাশক বীরের (পিতরং) রক্ষক (মিত্রং) সকলের চালক বায়ু তুল্য (শত বৃষ্ণ্যম্) শত-শত সামৰ্থযুক্ত পরমেশ্বরকে (বিদ্ম) আমরা জানি (তেন) তাহা দ্বারা (তে) তোমরা (তম্বে) শরীরের জন্য (শম্) আরোগ্য (করম্) করি (পৃথিব্যাং) পৃথিবীতে (তে) তোমার (নি সেচনম্) বহু পরিমাণে সিঞ্চন হউক (তে) তোমার (বাল্) শত্রু (বহিঃ) বহির্গত (অদ্ভু) হউক। (ইতি) ইহা।।
    ‘মিত্রং’ মিনোতি প্রেরয়তি অন্য পদার্থান্ চেতি মিত্রঃ। মিদ স্নেহ-ত্র। সর্ব প্রেরকঃ। স্নেহবান্। বায়ু। বায়ুবং উপকারম্।।

    भावार्थ

    শত্রুনাশক বীরের রক্ষক ও বায়ু তুল্য বহু সামর্থযুক্ত পরমেশ্বরকে আমরা জানি। সেই জ্ঞান দ্বারা তোমার শরীরকে নীরোগ করি । পৃথিবীতে তোমার উন্নতি হউক। তোমার শত্রু অপসারিত হউক। ইতি।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    বিদ্মা শরস্য পিতরং মিত্রং শত বৃষ্ণ্যম্ । তেনা তে তন্বে ৩ শং করং পৃথিব্যাং তে নিষেচনং বহিস্টে অস্ত্ বালিতি

    ऋषि | देवता | छन्द

    অর্থবা। পর্জন্যাদয়ো মন্ত্রোক্তাঃ। পথ্যা পক্তি

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    मन्त्र विषय

    (শান্তিকরণম্) শান্তির জন্য উপদেশ।

    भाषार्थ

    (শরস্য) শত্রুনাশক শৌর্যশালীর [বা বাণধারী] (পিতরম্) রক্ষক পিতা, (মিত্রম্) সকলকে চালনাকারী [বা স্নেহবান] বায়ুরূপ (শতবৃষ্ণ্যম্) শতাধিক সামর্থ্যবান [পরমেশ্বর]কে (বিদ্ম) আমরা জানি। (তেন্) সেই [জ্ঞান] দ্বারাই/থেকেই (তে) তোমার (তন্বে) শরীরের জন্য (শম্) আরোগ্য (করম্) আমি/আমরা প্রদান করি এবং (পৃথিব্যাম্) পৃথিবীতে (তে) তোমার (নিসেচনম্) অনেক সেচন [বৃদ্ধি] হোক এবং (তে) তোমার (বাল্) শত্রু (বহিঃ) বাইরে (অস্তু) হোক, (ইতি) এটাই আকাঙ্ক্ষা ॥২॥

    भावार्थ

    যেভাবে বায়ু সমস্ত প্রাণীর জীবনের আধার, সেভাবেই পরমেশ্বর বায়ুরও প্রাণ ইত্যাদি ॥২॥ সায়ণভাষ্যে (মিত্র) শব্দের অর্থ দিন এর অভিমানী দেবতা ॥

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    भाषार्थ

    (শতবৃষ্ণ্যম্) শত প্রকারে সুখের বর্ষণকারী, (শরস্য পিতরম্) শরীর বিশিষ্ট জীবাত্মার (মিত্রম্) মিত্রবৎ হিতকারী “দিন” কে (বিদ্ম) আমরা জানি। (তেন) সেই দিন দ্বারা (তে তন্বে) তোমার তনূর জন্য (শম্) সুখ (করম্) আমি করি, (তে) তোমার (নিষেচনম্) মূত্রসেচন (পৃথিব্যাম্) পৃথিবীতে হোক (তে) তোমার মূত্র (বহিঃ) বাহির (অস্তু) হোক, (বালিতি) অর্থাৎ বারিরূপ, জল অর্থাৎ মূত্র জল।

    टिप्पणी

    [“মৈত্রং বা অহঃ, বারুণী১ রাত্রিঃ২” (তৈ০ ব্রা০ ১।৭।২০,১-২)। দিনের প্রকাশ বস্তুতঃ বিবিধ সুখের বর্ষণ করে।] [১. মন্ত্র ২-৪ এ দিন ও রাত্রির সময়ের এবং সেগুলোর দেবতাদের বরুণ এবং চন্দ্রেরও বর্ণনা হয়েছে। ২. রাত্রী দীর্ঘশয়ন প্রদান দ্বারা তনূর প্রতি সুখবর্ষণ করে।]

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