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अथर्ववेद के काण्ड - 13 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 26
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
    1

    कृ॒ष्णायाः॑ पु॒त्रो अर्जु॑नो॒ रात्र्या॑ व॒त्सोजा॑यत। स ह॒ द्यामधि॑ रोहति॒ रुहो॑ रुरोह॒ रोहि॑तः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कृ॒ष्णाया॑: । पु॒त्र: । अर्जु॑न: । रात्र्या॑: । व॒त्स: । अ॒जा॒य॒त॒ । स: । ह॒ । द्याम् । अधि॑ । रो॒ह॒ति॒ । रुह॑: । रु॒रो॒ह॒ । रोहि॑त: ॥३.२६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कृष्णायाः पुत्रो अर्जुनो रात्र्या वत्सोजायत। स ह द्यामधि रोहति रुहो रुरोह रोहितः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कृष्णाया: । पुत्र: । अर्जुन: । रात्र्या: । वत्स: । अजायत । स: । ह । द्याम् । अधि । रोहति । रुह: । रुरोह । रोहित: ॥३.२६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 3; मन्त्र » 26
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा का उपदेश।

    पदार्थ

    (कृष्णायाः) कृष्ण वर्णवाली (रात्र्याः) रात्रि से [प्रलय की रात्रि के पीछे] (पुत्रः) शुद्ध करनेवाला, (अर्जुनः) रस प्राप्त करनेवाला (वत्सः) निवास देनेवाला सूर्य [जिस परमेश्वर के नियम से] (अजायत) प्रकट हुआ है। (सः ह) वही (रोहितः) सबका उत्पन्न करनेवाला [परमेश्वर] (द्याम् अधि) उस सूर्य में (रोहति) प्रकट होता है, उस ने (रुहः) सृष्टि की सामग्रियों को (रुरोह) उत्पन्न किया है ॥२६॥

    भावार्थ

    जिस सर्वव्यापक परमेश्वर के नियम से प्रलय के पीछे सूर्य आदि लोक उत्पन्न होते हैं, मनुष्य उसकी आराधना कर के सदा सुखी रहें ॥२६॥इस मन्त्र का चौथा पाद आ चुका है-अ० —१३।१।४ ॥ इति तृतीयोऽनुवाकः ॥

    टिप्पणी

    २६−(कृष्णायाः) कृष्णवर्णायाः (पुत्रः) पुवो ह्रस्वश्च। उ० ४।१६५। पूञ् शोधने−क्त्र। शोधकः (अर्जुनः) रसानां संग्रहीता (रात्र्याः) प्रलय-रात्रिपश्चादित्यर्थः (वत्सः) वस निवासे-स प्रत्ययः। निवासहेतुः सूर्यलोकः (अजायत) प्रकटोऽभवत् (सः) (ह) एव (द्याम् अधि) सूर्यं प्रति (रोहति) प्रादुर्भवति (रुहः) अ० १३।१।४। सृष्टिसामग्रीः (रुरोह) जनयामास (रोहितः) सर्वोत्पादकः परमेश्वरः ॥

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    विषय

    'कृष्णा ' का पुत्र 'अर्जुन' [रात्रि का पुत्र सूर्य]

    पदार्थ

    १. [रात्रि कृष्णा शुक्लवत्सा, तस्या असावादित्यो वत्सः-शत० ९.२.३.३] कृष्णायाः रात्र्या:-इस कृष्ण वर्णवाली-चारों ओर अन्धकारमयी रात्रि का अर्जुनः पुत्रः श्वेत वर्ण का यह सन्तानरूप सूर्य (वत्सः) = प्रभु की महिमा का प्रतिपादन करनेवाला [बदति] (अजायत) = हुआ है। यह सूर्य सर्वत्र प्रकाश करता हुआ प्रभु की महिमा का प्रकाश कर रहा है। सूर्य प्रभु की सर्वमहति विभूति है। (सः ह) = यह सूर्य निश्चय से (द्यां अधिरोहति) = इस द्युलोक में आरोहण करता है। यह (रोहित:) = तेजस्वी सूर्य ही (रुहः सः रुरोह) = सब वनस्पतियों को प्रादुर्भूत करता है। सूर्य की किरणों के अभाव में बीज अंकुरित नहीं हो पाते। जहाँ सूर्य की किरण नहीं, वहाँ वनस्पति भी नहीं। सूर्य ही इनका प्रादुर्भाव करता हुआ इनमें प्राणदायी तत्त्वों का स्थापन करता है। यह सूर्य वस्तुतः प्रभु की अद्भुत महिमा का प्रतिपादन करता है।

    भावार्थ

    यह भी प्रभु की अद्भुत महिमा है कि एकदम कृष्णवर्ण की रात्रि का पुत्र सन्तान श्वेत सूर्य होता है। यह सूर्य सब वनस्पतियों के प्रादुर्भाव का कारण बनता है। इस सूर्य में ज्ञानी पुरुष ब्रह्म की महिमा को देखता है। अथ चतुर्थोऽनुवाकः

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    भाषार्थ

    (कृष्णायाः रात्र्यः) काली रात्रि का (वत्सः) बच्चा (रोहितः) लाल सूर्य (आजायत) पैदा हुआ है। (सः ह) वह (द्याम् अधिरोहति) द्युलोक की ओर आरोहण करता है, और (अर्जुनः) शुक्ल हो कर (रुहः) द्युलोक की ऊंचाइयों तक (रुरोह) चढ़ गया है। इसी प्रकार काली रात्रि का (अर्जुनः पुत्रः) शुक्ल पुत्र परमेश्वर प्रकट हुआ है। वह मस्तिष्क रूपी द्युलोक की ओर आरोहण करता है, और मस्तिष्क तक की ऊँचाई तक चढ़ गया है।

    टिप्पणी

    [कृष्णायाः रात्र्याः="अजायत" में जन् धातु के प्रयोग के कारण "कृष्णायाः रात्र्याः" को पञ्चम्यन्त तथा सम्बन्ध मात्र की विवक्षा में षष्ठयन्त प्रयोग भी समझा जा सकता है। सूर्य जब क्षितिज से पैदा हो रहा होता है तब वह लाल होता है, जैसे कि कवि ने कहा है कि "उदेति सविता ताम्रः ताम्र एवास्तमेति च"। ताम्र लाल होता है। इस सूर्य को वत्स मात्र कह कर इस के उदय को विशेष महत्त्व नहीं दिया। सूर्य प्रतिदिन उदित होता ही रहता है। परमेश्वर भी काली रात्रि से प्रकट होता है। रात्रि के काल में उपासना के अभ्यास से परमेश्वर प्रकट होता है। यथा "नाम नाम्ना जोहवीति पुरा सूर्यात् पुरोषसः" (अथर्व० १०।७।३१), अर्थात् "उपासक परमेश्वर के नाम को बार-बार जपता हुआ परमेश्वर का आह्वान करता है, सूर्योदय से पूर्व तथा उषा से पूर्व"। इसका अनुमोदन निरुक्तकार ने भी किया है, "पूर्वः पूर्वो यजमानो वनीयान्" (ऋ० ५।७७।२) का प्रमाण देते हुए "पूर्व-पूर्व काल के उपासक को अधिक सफल कहा है" (निरुक्त १२।३१।५); तथा “ये रात्रिमनुतिष्ठन्ति" (अथर्व० १९।४८।५) में रात्रि में अनुष्ठान का वर्णन हुआ है। अर्जुनः पुत्रः= सूर्य उदित होता हुआ लाल होता है, परन्तु परमेश्वर उदित हुआ शुल्क प्रतीत होता है। सूर्य उदित होता हुआ साधारण वत्स के सदृश है, परन्तु परमेश्वर उदित होता हुआ पुत्रसमान है, अर्थात् "बहुत रक्षा करने वाला; पालन करने वाला दुःख से या जन्ममरण की परम्परारूपी नरक से रक्षा करने वाला है। यथा “पुत्रः पुरु त्रायते, निपरणाद्वा, पुन्नरकं ततः त्रायत इति वा” (निरुक्त २।३।११)। परमेश्वर में पुत्र के ये सब गुण पाये जाते हैं। इसीलिये कहा है कि "अग्नावग्निश्चरति प्रविष्ट ऋषीणां पुत्रो अभिशस्तिपा उ" (अथर्व० ४।३९।९), अर्थात् "परमेश्वर अग्नि में अग्नि नाम वाला प्रविष्ट होकर विचरता है, यह ऋषियों का पुत्र है, उन की हिंसा से रक्षा करता है।" रोहति, रुहः रुरोह = परमेश्वर प्रथम हृदय में प्रकट होता है, तदनन्तर आज्ञा चक्र में आरोहण करता, तत्पश्चात् मस्तिष्कस्थ सहस्रार चक्र की ऊँचाई पर आरोहण करता है]।

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    विषय

    रोहित, आत्मा ज्ञानवान् राजा और परमात्मा का वर्णन।

    भावार्थ

    (कृष्णायाः पुत्रः) कृष्णा रात्रि के (पुत्रः) पुत्र (अर्जुनः) श्वेत, दिन होता है और जैसे (रात्र्याः) रात्रि का (वत्सः) आच्छादक पुत्र दिन या सूर्य (अजायत) उत्पन्न होता है। (सः) वह (द्याम्) आकाश में (अधिरोहति) ऊपर चड़ता है। वैसे (रोहितः) रोहित, लोहित, ज्ञानवान्, दीप्तिमान्, मुक्त जीव (रुहः रुरोह) समस्त उत्तम लोकों को प्राप्त करता है। इसी प्रकार राजा भी लाल वस्त्रों को धारण करता हुआ (कृष्णायाः) पृथ्वी का पुत्र होकर (रुहः) समस्त उच्च पदों को प्राप्त करता है। रात्रि कृष्णा शुक्लवत्सा तस्या असावादित्यो वत्सः। श० ९। २। ३। ३०॥ अर्जुनो ह वै नाम इन्द्रो यदस्य गुह्यं नाम। श० ५। ४। ३। ७॥ अध्यात्म में—सबको आकर्षण करने वाली परमशक्ति परमेश्वरी का पुत्र ही ‘अर्जुन’ यह जीव है। वह ‘द्यौ’ मोक्षपद को प्राप्त होता है वह (रुहो रुरोह) समस्त लोकों को प्राप्त होता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। अध्यात्मम्। रोहित आदित्य देवता। १ चतुरवसानाष्टपदा आकृतिः, २-४ त्र्यवसाना षट्पदा [ २, ३ अष्टिः, २ भुरिक् ४ अति शाक्वरगर्भा धृतिः ], ५-७ चतुरवसाना सप्तपदा [ ५, ६ शाक्वरातिशाक्वरगर्भा प्रकृतिः ७ अनुष्टुप् गर्भाति धृतिः ], ८ त्र्यवसाना षट्पदा अत्यष्ठिः, ६-१९ चतुरवसाना [ ९-१२, १५, १७ सप्तपदा भुरिग् अतिधृतिः १५ निचृत्, १७ कृति:, १३, १४, १६, १९ अष्टपदा, १३, १४ विकृतिः, १६, १८, १९ आकृतिः, १९ भुरिक् ], २०, २२ त्र्यवसाना अष्टपदा अत्यष्टिः, २१, २३-२५ चतुरवसाना अष्टपदा [ २४ सप्तपदाकृतिः, २१ आकृतिः, २३, २५ विकृतिः ]। षड्विंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    To the Sun, against Evil Doer

    Meaning

    Born of the dark night, the ruddy sun has arrived at dawn. The same, blazing with splendour, rises to the heaven, to the heights of heaven. Also: Born of the dark night of Pralaya, the self- refulgent Sun is arisen. He, saviour from darkness, rises to the heavens and, rising and still rising, creating and pervading all creations, transcends beyond the Heavens.

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    Translation

    The white son of the black (mother), the young of night, was born, he ascends upon the sky; the ruddy one ascended the -Ascents. (Sec also Rg. X.117.8)

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    Translation

    Vatash,the sun which is the white son of the night dark, is born from night that is Rohita, the red sun which indeed ascends to heavenly region and mounts to all places of height.

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    Translation

    After the dark Night of Dissolution, God creates the Sun, the Purifier, the Recipient of the essence of things, and the Afforder of shelter to mankind. The same God manifests Himself in the Sun. He has created all the materials of the world.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २६−(कृष्णायाः) कृष्णवर्णायाः (पुत्रः) पुवो ह्रस्वश्च। उ० ४।१६५। पूञ् शोधने−क्त्र। शोधकः (अर्जुनः) रसानां संग्रहीता (रात्र्याः) प्रलय-रात्रिपश्चादित्यर्थः (वत्सः) वस निवासे-स प्रत्ययः। निवासहेतुः सूर्यलोकः (अजायत) प्रकटोऽभवत् (सः) (ह) एव (द्याम् अधि) सूर्यं प्रति (रोहति) प्रादुर्भवति (रुहः) अ० १३।१।४। सृष्टिसामग्रीः (रुरोह) जनयामास (रोहितः) सर्वोत्पादकः परमेश्वरः ॥

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