अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 5
ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - पङ्क्ति
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
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ऐनं॑ श्र॒द्धाग॑च्छ॒त्यैनं॑ य॒ज्ञो ग॑च्छ॒त्यैनं॑ लो॒को ग॑च्छ॒त्यैन॒मन्नं॑ गच्छ॒त्यैन॑म॒न्नाद्यं॑गच्छति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआ । ए॒न॒म् । श्र॒ध्दा । ग॒च्छ॒ति॒ । आ । ए॒न॒म् । य॒ज्ञ: । ग॒च्छ॒ति॒ । आ । ए॒न॒म् । लो॒क: । ग॒च्छ॒ति॒ । आ । ए॒न॒म् । अन्न॑म् । ग॒च्छ॒ति॒ । आ । ए॒न॒म् । अ॒न्न॒ऽअद्य॑म् । ग॒च्छ॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥७.५॥
स्वर रहित मन्त्र
ऐनं श्रद्धागच्छत्यैनं यज्ञो गच्छत्यैनं लोको गच्छत्यैनमन्नं गच्छत्यैनमन्नाद्यंगच्छति य एवं वेद ॥
स्वर रहित पद पाठआ । एनम् । श्रध्दा । गच्छति । आ । एनम् । यज्ञ: । गच्छति । आ । एनम् । लोक: । गच्छति । आ । एनम् । अन्नम् । गच्छति । आ । एनम् । अन्नऽअद्यम् । गच्छति । य: । एवम् । वेद ॥७.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमात्माकी व्यापकता का उपदेश।
पदार्थ
(एनम्) उस [विद्वान्]पुरुष को (श्रद्धा) श्रद्धा [धर्म में प्रतीति] (आ) आकर (गच्छति) मिलती है, (एनम्) उस को (यज्ञः) सद्व्यवहार (आ) आकर (गच्छति) मिलता है, (एनम्) उसको (लोकः)समाज (आ) आकर (गच्छति) मिलता है, (एनम्) उसको (अन्नम्) अन्न [जौ चावल आदि] (आ)आकर (गच्छति) मिलता है, (एनम्) उस को (अन्नाद्यम्) अनाज [रोटी पूरी आदि बनाभोजन] (आ) आकर (गच्छति) मिलता है, (यः) जो [विद्वान्] (एवम्) ऐसे वा व्यापक [व्रात्य परमात्मा] को (वेद) जानता है ॥५॥
भावार्थ
ब्रह्मज्ञानी पुरुष हीश्रद्धालु, सत्कर्मी, सर्वहितैषी और अन्नवान् होकर संसार में प्रशंसनीय होता है॥५॥ इति प्रथमोऽनुवाकः ॥
टिप्पणी
५−(आ) आगत्य (एनम्) विद्वांसं पुरुषम् (गच्छति)प्राप्नोति। अन्यत् पूर्ववत्-म० ४ सुगमं च ॥
विषय
श्रद्धा, यज्ञ, प्रकाश तथा अन्न और अन्नाद्य
पदार्थ
१. (तम्) = उस व्रात्य को (श्रद्धा च यज्ञः च) = श्रद्धा और यज्ञ (लोक: च) = प्रकाश, (अन्नं च अन्नाचं च) = जौ, चावलादि अन्न तथा भात आदि खाने योग्य पदार्थ (भूत्वा) = [भू गती] प्राप्त होकर (अभिपर्यावर्तन्त) = अभ्युदय व निःश्रेयस [अभि] के साधक कर्मों में प्रवृत्त करते हैं। २. (यः) = जो (एवं वेद) = इसप्रकार 'श्रद्धा, यज्ञ व प्रकाश के तथा अन्न और अन्नाद्य' के महत्त्व को समझ लेता है, (एनम्) = इस व्रात्य को श्रद्धा (आगच्छति) = श्रद्धा प्राप्त होती है, (एनम्) = इसे यज्ञः (आगच्छति) = यज्ञ प्राप्त होता है, (एनम्) = इसको (लोक:) = प्रकाश (आगच्छति) = प्राप्त होता है, (एनम्) = इसे (अन्नम्) = अन्न (आगच्छति) = प्राप्त होता है। (एनम्) = इसे (अन्नाद्यं आगच्छति) = खानेयोग्य भातादि पदार्थ प्राप्त होते हैं।
भावार्थ
यह व्रात्य 'श्रद्धा, यज्ञ, प्रकाश, अन्न व अन्नाद्य' से युक्त होकर अभ्युदय व निःश्रेयस-साधक कर्मों में प्रवृत्त होता है।
भाषार्थ
(एनम्) इस योगी संन्यासी को भी (श्रद्धा) श्रद्धा (आगच्छति) प्राप्त होती है, (एनम्) इसे (यज्ञः) परमेश्वर देव की पूजा, संगति, तथा आत्मसमर्पण की भावना (आ गच्छति) प्राप्त होती है, (एनम्) इसे (लोकः) प्रजाजन (आ गच्छति) प्राप्त होता हैं, (एनम्) इसे (अन्नम्) पेय तथा लेह्य आदि अन्न (आगच्छति) प्राप्त होता है, (एनम्) इसे (अन्नाद्यम्, च) खाद्य-अन्न तथा उपर्युक्त सब कुछ (गच्छति) प्राप्त होते हैं (यः) जो व्यक्ति कि (एवम्) इस प्रकार के तथ्य को (वेद) जानता और तदनुसार आचरण करता है।
विषय
व्रात्य की समुद्र विभूति।
भावार्थ
(यः एवं वेद) जो व्रात्य प्रजापति के इस स्वरूप को जानता है (एनं) उसको (श्रद्धा आगच्छति) श्रद्धा प्राप्त होती है। (एनं यज्ञः आगच्छति) उसको यज्ञ प्राप्त होता है। (एनं लोकः आगच्छति) उसको लोक प्राप्त होता है (एनं अन्नम् आगच्छति) उसको अन्न प्राप्त होते हैं और (एनम् अन्नाद्यम् आगच्छति) उसको अन्न खाने की शक्ति भी प्राप्त होती है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१ त्रिपदानिचृद गायत्री, २ एकपदा विराड् बृहती, ३ विराड् उष्णिक्, ४ एकपदा गायत्री, ५ पंक्तिः। पञ्चर्चं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Vratya-Prajapati daivatam
Meaning
To the person who knows this, faith comes, yajna comes, progeny and people come, food comes, delicacies of life come, freely.
Translation
To him, who know it thus, come faith and sacrifice; to him comes free movement; to him comes the food; to him come the edibles.
Translation
The faith comes to him, Yajna comes to him, world comes to him, grain comes to him and food comes to him who possesses the knowledge of this.
Translation
He who possesses this knowledge of God, is endowed with religious devotion, noble deeds, good society, cereals and nourishing meals.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(आ) आगत्य (एनम्) विद्वांसं पुरुषम् (गच्छति)प्राप्नोति। अन्यत् पूर्ववत्-म० ४ सुगमं च ॥
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