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अथर्ववेद के काण्ड - 16 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 6
    ऋषिः - आदित्य देवता - आर्ची उष्णिक् छन्दः - ब्रह्मा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
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    स्व॒स्त्यद्योषसो॑ दो॒षस॑श्च॒ सर्व॑ आपः॒ सर्व॑गणो अशीय ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्व॒स्ति । अ॒द्य: । उ॒षस॑: । दो॒षस॑: । च॒ । सर्व॑: । आ॒प॒: । सर्व॑ऽगण: । अ॒शी॒य॒ ॥४.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वस्त्यद्योषसो दोषसश्च सर्व आपः सर्वगणो अशीय ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्वस्ति । अद्य: । उषस: । दोषस: । च । सर्व: । आप: । सर्वऽगण: । अशीय ॥४.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 4; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आयु की वृद्धि के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (आपः) हे आप्तविद्वानो ! (सर्वगणः) अपने सब गणों के सहित (सर्वः) सम्पूर्ण में (स्वस्ति)कल्याण से (अद्य) अब (उषसः) प्रभातवेलाओं को (च) और (दोषसः) रात्रियों को (अशीय) पाता रहूँ ॥६॥

    भावार्थ

    मनुष्य आप्त विद्वानोंके सत्सङ्ग से प्रयत्न करें कि वे और उसके इष्ट मित्र प्रजागण आदि सदा रात-दिनसुखी रहें ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(स्वस्ति) कल्याणेन (अद्य) इदानीम् (उषसः) प्रभातवेलाः (दोषसः)दुष वैकृत्ये-असुन्। रात्रीः (च) (सर्वः) सम्पूर्णोऽहम् (आपः) हे आप्ताविद्वांसः (सर्वगणः) सर्वेष्टमित्रप्रजादिसहितः (अशीय) बहुलं छन्दसि। पा०२।३।७३। अश्नुतेः शपो लुकि लिङ्युत्तमैकवचने रूपम्। प्राप्नुयाम् ॥

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    विषय

    सर्वः सर्वगणाः

    पदार्थ

    १. (अद्य) = आज, हे (आपः) = शरीरस्थ रेत:कणरूप जलो! (उषसः दोषस: च) = दिनों व रात्रियों में-दिन के आरम्भ से दिन की समाप्ति तक-(सर्व:) = [whole] सब पूर्ण अङ्गोंवाला, अर्थात् स्वस्थ होता हुआ तथा (सर्वगणा:) = 'पंचभूतों के गण, पाँच प्राणों के गण, पाँच कर्मेन्द्रियों के गण, पाँच ज्ञानेन्द्रियों के गण' तथा 'मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार व हृदय' रूप अन्त:करण पञ्चकवाला मैं (स्वस्ति अशीय) = कल्याण को प्राप्त करूँ।

    भावार्थ

    गतमन्त्र के अनुसार प्राणसाधना के होने पर, वासनारूप दोषों के दूर होने से, शरीर में रेत:कणों का रक्षण होगा। इनके रक्षण से हम स्वस्थ होंगे, हमारे शरीरस्थ सब पञ्चक बड़े ठीक होंगे। तब प्रातः से सायं तक सारा दिन हम कल्याण-ही-कल्याण का अनुभव करेंगे।

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    भाषार्थ

    हे परमेश्वर ! (अद्य) आज (उषसः) उषाएं (दोषसः) और रातें (सर्वः) सब संसार (आपः) सप्त प्राण (स्वस्ति) कल्याणमय हो, (सर्वगणः) सब गणों से सम्पन्न मैं (स्वस्ति, अशीय) कल्याण को प्राप्त होऊं।

    टिप्पणी

    [आपः= "आपनानीमान्येव शरीरे षडिन्द्रियाणि विद्या सप्तमी" (निरु० १२।४।३८)। सर्वगणः= मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार का गण, पञ्चतन्मात्रागण,पञ्चज्ञानेन्द्रियगण, पञ्चकर्मेन्द्रियगण, पञ्चभूतगण आदि से सम्पन्न]

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    विषय

    रक्षा, शक्ति और सुख की प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे (आपः) प्रजाओ ! आप्त पुरुषो ! (अद्य स्वस्ति) आज, नित्य कल्याण हो (उषसः दोषसः च) दिनों और रातों का मैं (सर्वः) सर्वाङ्ग पूर्ण होकर और (सर्वप्राणः) अपने समस्त भृत्य और बन्धुजनों सहित (अशीय) सुख भोग करूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। आदित्यो देवता। १, ३ सामन्यनुष्टुभौ, २ साम्न्युष्णिक्, ४ त्रिपदाऽनुष्टुप्, ५ आसुरीगायत्री, ६ आर्च्युष्णिक्, ७त्रिपदाविराङ्गर्भाऽनुष्टुप्। सप्तर्चं चतुर्थ पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Atma-Aditya Devata

    Meaning

    Let all be good with happiness and well being day and night, today. Let all pranic energies and all activities be full of happiness and well being. Let me, with all my people and everything around, be happy, blessed with goodness and well being.

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    Translation

    May the dawns and dusks be auspicious today. May I enjoy waters with all my people hail and hearty.

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    Translation

    Let these waters be source of pleasure now and I with all and all denominations gain happiness from dawn and night.

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    Translation

    Propitious today be dawns and evenings. May I remain happy with all my people safe around me, O learned persons!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(स्वस्ति) कल्याणेन (अद्य) इदानीम् (उषसः) प्रभातवेलाः (दोषसः)दुष वैकृत्ये-असुन्। रात्रीः (च) (सर्वः) सम्पूर्णोऽहम् (आपः) हे आप्ताविद्वांसः (सर्वगणः) सर्वेष्टमित्रप्रजादिसहितः (अशीय) बहुलं छन्दसि। पा०२।३।७३। अश्नुतेः शपो लुकि लिङ्युत्तमैकवचने रूपम्। प्राप्नुयाम् ॥

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