अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 12
ऋषिः - दुःस्वप्ननासन
देवता - भुरिक् प्राजापत्या अनुष्टुप्
छन्दः - यम
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
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तं ज॑हि॒ तेन॑मन्दस्व॒ तस्य॑ पृ॒ष्टीरपि॑ शृणीहि ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । ज॒हि॒ । तेन॑ । म॒न्द॒स्य॒ । तस्य॑ । पृ॒ष्टी: । अपि॑ । शृ॒ण॒हि॒ ॥७.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
तं जहि तेनमन्दस्व तस्य पृष्टीरपि शृणीहि ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । जहि । तेन । मन्दस्य । तस्य । पृष्टी: । अपि । शृणहि ॥७.१२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शत्रु के नाश करने का उपदेश।
पदार्थ
(तम्) उस [कुमार्गी]को (जहि) नाश करदे, (तस्य) उसकी (पृष्टीः) पसलियाँ (अपि) सर्वथा (शृणीहि) तोड़डाल, (तेन) उस [शूर कर्म] से (मन्दस्व) तू चल ॥१२॥
भावार्थ
बुद्धिमान् शूर लोगदुष्टों को नाश करके सदा आगे बढ़ते रहें ॥१२॥
टिप्पणी
१२−(तम्) कुमार्गिणम् (जहि) नाशय (तेन) शूरकर्मणा (मन्दस्व) मदि स्तुतिगत्यादिषु। गच्छ (तस्य) दुष्टस्य (पृष्टीः) पार्श्वास्थीनि (अपि) सर्वथा (शृणीहि) विदारय ॥
विषय
प्रभु का आदेश
पदार्थ
१. दोषविनाश के लिए पुत्र द्वारा की गई प्रतिज्ञा को सुनकर प्रभु उसे उत्साहित करते हुए कहते हैं कि (तं जहि) = उस दोष को नष्ट कर डाल और (तेन) = उस दोषविनाश से (मन्दस्व) = आनन्द का अनुभव कर । तुझे दोषविनाश में ही आनन्द प्राप्त हो। (तस्य) = उस दोष की, (पृष्टी: अपि) = पसलियों को भी (शृणीहि) = नष्ट कर डाल। २. (स: मा जीवीत्) = वह मत जीवे। (तं प्राणो जहातु) = उसको प्राण छोड़ जाए। यहाँ दोष को पुरुषविध कल्पित करके उसे विनष्ट करने का उपदेश दिया गया है।
भावार्थ
परमपिता प्रभु उपदेश देते हैं कि हे जीव! तू दोषविनाश में ही आनन्द लेनेवाला बन। दोषरूप पुरुष को पसलियों को तोड़ दे, उसे निष्प्राण कर दे।
भाषार्थ
[हे मेरे पुत्र, मन्त्र ८] (तम्) उस दुःस्वप्न्य को तू भी (जहि) मार डाल, (तेन) और उस हनन द्वारा (मन्दस्व) मोद-प्रमोद तथा हर्ष को प्राप्त हो, (तस्य) उस दुःष्वप्न की (पृष्टीः) पृष्ठभूमि को (अपि) भी (शृणीहि) शीर्ण कर दे ॥ १२ ॥
विषय
शत्रुदमन।
भावार्थ
हे दण्डकर्त्तः ! (तं जहि) उस अपराधी को दण्ड दे। (तेन मन्दस्व) उस अपराधी, दण्डनीय पुरुष से तू क्रीड़ा कर, उसका नाक कान काट कर लीला कर। और (तस्य) अमुक अपराधी पुरुष की (पृष्टीः अपि शृणीहि) पसलियों को भी तोड़ डाल। (सः) वह अमुक अपराधी (मा जीवीत्) न जीवे। ओर (तं प्राणः जहातु) उस अपराधी को प्राण त्याग दे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
यमऋषिः। दुःस्वप्ननाशनो देवता। १ पंक्तिः। २ साम्न्यनुष्टुप्, ३ आसुरी, उष्णिक्, ४ प्राजापत्या गायत्री, ५ आर्च्युष्णिक्, ६, ९, १२ साम्नीबृहत्यः, याजुपी गायत्री, ८ प्राजापत्या बृहती, १० साम्नी गायत्री, १२ भुरिक् प्राजापत्यानुष्टुप्, १३ आसुरी त्रिष्टुप्। त्रयोदशर्चं सप्तमं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Atma-Aditya Devata
Meaning
O mind, O soul, O man, strike that off, eliminate it, be happy with that performance, cut off the very roots of it, break the very back and bones of it.
Translation
Strike him down. Rejoice in it. Crush his ribs also.
Translation
Kill that, be happy by this act, and crush the ribs of that.
Translation
Slay O King the offender, behave heroically towards him, crush his ribs.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१२−(तम्) कुमार्गिणम् (जहि) नाशय (तेन) शूरकर्मणा (मन्दस्व) मदि स्तुतिगत्यादिषु। गच्छ (तस्य) दुष्टस्य (पृष्टीः) पार्श्वास्थीनि (अपि) सर्वथा (शृणीहि) विदारय ॥
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