अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 32/ मन्त्र 10
स॑पत्न॒हा श॒तका॑ण्डः॒ सह॑स्वा॒नोष॑धीनां प्रथ॒मः सं ब॑भूव। स नो॒ऽयं द॒र्भः परि॑ पातु वि॒श्वत॒स्तेन॑ साक्षीय॒ पृत॑नाः पृतन्य॒तः ॥
स्वर सहित पद पाठस॒प॒त्न॒ऽहा॒। श॒तऽका॑ण्डः। सह॑स्वान्। ओष॑धीनाम्। प्र॒थ॒मः। सम्। ब॒भू॒व॒। सः। नः॒। अ॒यम्। द॒र्भः। परि॑। पा॒तु॒। वि॒श्वतः॑। तेन॑। सा॒क्षी॒य॒। पृत॑नाः। पृ॒त॒न्य॒तः ॥३२.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
सपत्नहा शतकाण्डः सहस्वानोषधीनां प्रथमः सं बभूव। स नोऽयं दर्भः परि पातु विश्वतस्तेन साक्षीय पृतनाः पृतन्यतः ॥
स्वर रहित पद पाठसपत्नऽहा। शतऽकाण्डः। सहस्वान्। ओषधीनाम्। प्रथमः। सम्। बभूव। सः। नः। अयम्। दर्भः। परि। पातु। विश्वतः। तेन। साक्षीय। पृतनाः। पृतन्यतः ॥३२.१०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
शत्रुओं के हराने का उपदेश।
पदार्थ
(सपत्नहा) विरोधियों का नाश करनेवाला (शतकाण्डः) सैकड़ों सहारे देनेवाला (सहस्वान्) महाबली [परमेश्वर] (ओषधीनाम्) ओषधियों [अन्न आदि] का (प्रथमः) पहिला (सम् बभूव) समर्थ हुआ है। (सः अयम्) वही (दर्भः) दर्भ [शत्रुविदारक परमेश्वर] (नः) हमें (विश्वतः) सब ओर से (परि पातु) पालता रहे, (तेन) उसी [परमेश्वर] के साथ (पृतनाः) सेनाओं को और (पृतन्यतः) सेना चढ़ा लानेवालों को (साक्षीय) मैं हरा दूँ ॥१०॥
भावार्थ
जिस परमात्मा ने सब विघ्नों को हटाकर अनन्त उपकार किये हैं, हे मनुष्यो ! उसीकी उपासना करके शत्रुओं का नाश करो ॥१०॥
टिप्पणी
१०−(सपत्नहा) विरोधिनां हन्ता (शतकाण्डः) म०१। बहुरक्षणोपेतः (सहस्वान्) बलवान् (ओषधीनाम्) अन्नादीनाम् (प्रथमः) प्रथमभाषी (सं बभूव) समर्थो बभूव (सः) तथाभूतः (नः) अस्मान् (अयम्) प्रसिद्धः (परि) परितः (पातु) रक्षतु (विश्वतः) सर्वतः (ते) परमेश्वरेण सह (साक्षीय) षह अभिभवे आशीर्लिङ्। अभिभूयासम्। अभिभवानि (पृतनाः) सेनाः (पृतन्यतः) पृतना-क्यच्-शतृ। पृतनां सेनामिच्छतः शत्रून् ॥
विषय
सर्वोत्तम औषध
पदार्थ
१. यह (दर्भ सपत्नहा) = रोगरूप शत्रुओं को नष्ट करनेवाला है। (शतकाण्ड:) = सैकड़ों बाणोंवाला है-इनके द्वारा ही यह रोगरूप शत्रुओं का वेधन करता है। (सहस्वान्) = शत्रुओं को कुचलनेवाले बल से सम्पन्न है। यह (ओषधीनां प्रथमः) = संबभूव ओषधियों में सर्वश्रेष्ठ है। वस्तुत: वीर्य के समान कोई भी औषध नहीं, इसके सुरक्षित होने पर रोगों का आक्रमण होता ही नहीं। आचार्य के शब्दों में यही 'मन्त्र, तन्त्र व यन्त्र' है। २. (स:) = वह (अयं दर्भ:) = यह दर्भ (न:) = हमें (विश्वतः) = सब ओर से (परिपातु) = सम्यक् रक्षित करे। (तेन) = उस वीर्यमणि के द्वारा (पृतन्यत:) = उपद्रव-सैन्य से हमपर आक्रमण करनेवाले रोगों की (पृतना:) = सैन्यों का (साक्षीय) = मैं पराभव करूँ।
भावार्थ
सुरक्षित वीर्य सर्वोत्तम औषध है। यह हमारा सर्वतः रक्षण करता है। रोगों के सब उपद्रव-सैन्य का यह संहार कर देता है।
भाषार्थ
(सपत्नहा) कामादि शत्रुओं का हनन करनेवाला, (शतकाण्डः) सैकड़ों द्वारा काम्य अर्थात् चाहा गया, (सहस्वान्) सहनशील, या विघ्नबाधाओं का पराभव करनेवाला, (ओषधीनाम्) अध्यात्मरोगों के निवारण करनेवाले उपायों में (प्रथमः) सर्व श्रेष्ठ उपाय (संबभूव) परमेश्वर हुआ है। (सः) वह (अयम्) यह (दर्भः) अविद्यादि का विदारक परमेश्वर (नः) हमारी (विश्वतः) सब प्रकार से (परि पातु) पूर्णतया रक्षा करे। (तेन) उसकी सहायता द्वारा (पृतन्यतः) सेनाओं द्वारा आक्रमण चाहने वाले कामादि की (पृतनाः) सेनाओं का (साक्षीय) मैं पराभव करूँ।
टिप्पणी
[शतकाण्डः=देखो (१९.३२.१)। अथवा—ज्ञानकाण्ड कर्मकाण्ड उपासनाकाण्ड भक्तिकाण्ड आदि सैकड़ों साधनों द्वारा भजनीय। पृतन्यतः=कामादि के उद्दीपक कामादि की सेनाएँ हैं।]
इंग्लिश (4)
Subject
Darbha
Meaning
He, destroyer of adversaries, of infinite manifestations, infinitely loving and loved, lord of courage and patience, all victorious, is the first and highest of all saviour sanatives. May he, Darbha, destroyer and preserver, protect and promote us all round. By him, may I win over those who stand against me and battle with negative forces.
Translation
Destroyer of rivals, having hundreds of joints, full of overwhelming power, (the darbha) was born first of all plants. So may this darbha protect us all around. With this may I defeat the armies of the invader. .
Translation
This Darbha is important in all the herbacious plants, it has thousand stems, it is conqueror or diseases and dispeller of the malignancies, Let it become the source of our protection from all sides and let us over-power all the hosts of the diseases troubling us.
Translation
This kusha-grass has been born the foremost of all the herbs, the enemy-destroyer, with hundreds of reeds, and capable of killing those who¬ ever are inimical towards us. The self-same kusha-grass may protect us from all sides. By its help I may be able to subdue all the fighting forces of the enemies.
Footnote
The energy and , power, derived from Kusha-grass for fighting against the fighting force is worth discovering. It appears to a mine of radiating energy. Let us find it out.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१०−(सपत्नहा) विरोधिनां हन्ता (शतकाण्डः) म०१। बहुरक्षणोपेतः (सहस्वान्) बलवान् (ओषधीनाम्) अन्नादीनाम् (प्रथमः) प्रथमभाषी (सं बभूव) समर्थो बभूव (सः) तथाभूतः (नः) अस्मान् (अयम्) प्रसिद्धः (परि) परितः (पातु) रक्षतु (विश्वतः) सर्वतः (ते) परमेश्वरेण सह (साक्षीय) षह अभिभवे आशीर्लिङ्। अभिभूयासम्। अभिभवानि (पृतनाः) सेनाः (पृतन्यतः) पृतना-क्यच्-शतृ। पृतनां सेनामिच्छतः शत्रून् ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal