अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 43/ मन्त्र 4
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - मन्त्रोक्ताः, ब्रह्म
छन्दः - त्र्यवसाना शङ्कुमती पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त
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यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॒ यान्ति॑ दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह। च॒न्द्रो मा॒ तत्र॑ नयतु॒ मन॑श्च॒न्द्रो द॑धातु मे। च॒न्द्राय॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयत्र॑। ब्र॒ह्म॒ऽविदः॑। यान्ति॑। दी॒क्षया॑। तप॑सा। स॒ह। च॒न्द्रः। मा॒। तत्र॑। न॒य॒तु॒। मनः॑। च॒न्द्रः। द॒धा॒तु॒। मे॒ ॥ च॒न्द्राय॑। स्वाहा॑ ॥४३.४॥
स्वर रहित मन्त्र
यत्र ब्रह्मविदो यान्ति दीक्षया तपसा सह। चन्द्रो मा तत्र नयतु मनश्चन्द्रो दधातु मे। चन्द्राय स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठयत्र। ब्रह्मऽविदः। यान्ति। दीक्षया। तपसा। सह। चन्द्रः। मा। तत्र। नयतु। मनः। चन्द्रः। दधातु। मे ॥ चन्द्राय। स्वाहा ॥४३.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(यत्र) जिस [सुख] में (ब्रह्मविदः) ब्रह्मज्ञानी....... [मन्त्र १]। (चन्द्रः) चन्द्र [चन्द्रसमान आनन्द देनेवाला परमात्मा] (मा) मुझे (तत्र) वहाँ (नयतु) पहुँचावे, (चन्द्रः) चन्द्र [परमात्मा] (मे) मुझको (मनः) मननसामर्थ्य (दधातु) देवे। (चन्द्राय) चन्द्र [परमात्मा] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] होवे ॥४॥
भावार्थ
मन्त्र १ के समान है ॥४॥
टिप्पणी
४−(चन्द्रः) चन्द्र इवाह्लादकः परमात्मा (मनः) मननसामर्थ्यम् (चन्द्रः) (चन्द्राय) आह्लादकाय परमात्मने। अन्यत् पूर्ववत् ॥
भाषार्थ
(दीक्षया) व्रतों-नियमों और (तपसा सह) तपश्चर्या के साथ वर्तमान (ब्रह्मविदः) ब्रह्मवेत्ता लोग (यत्र) जहाँ (यान्ति) जाते हैं, (तत्र) वहाँ (चन्द्रः) आह्लादकारी परमेश्वर (मा) मुझे (नयतु) पहुँचाये, ले चले। (चन्द्रः) आह्लादकारी परमेश्वर (मे) मुझ में (मनः) आह्लादसम्पन्न मन (दधातु) स्थापित करे, और परिपुष्ट करे। (चन्द्राय) आह्लादकारी परमेश्वर के प्रति (स्वाहा) मैं सर्वस्व समर्पण करता हूँ।
टिप्पणी
[चन्द्रः= चदि आह्लादने दीप्तौ च। मन्त्रसंख्या १ की व्याख्या में परमेश्वर को “चन्द्रमा” कहा है। आनन्दानुगत सम्प्रज्ञात समाधि (योग १.१७) में चित्तवृत्ति आनन्दमयी या आह्लादमयी हो जाती है। यह परमेश्वरीय कृपा और योगाभ्यास का फल है।]
विषय
चन्द्र-मन
पदार्थ
१. (यत्र) = जहाँ (ब्रह्मविदः) = ब्रह्मज्ञानी पुरुष (दीक्षया तपसा सह) = व्रतसंग्रह व तप के साथ (यान्ति) = जाते हैं, (चन्द्रः) = वह आहादमय प्रभु (मा) = मुझे (तत्र नयन्तु) = वहाँ प्रास कराएँ। २. इसी दृष्टिकोण से (चन्द्र:) = वे आनन्दमय प्रभु (मे) = मेरे लिए (मन:) = प्रसादयुक्त मन को (दधातु) = धारण करें। प्रसन्न [निर्मल] मन में प्रभु-प्रेरणा को सुनता हुआ, उसपर चलता हुआ, उत्तम लोक को प्राप्त कलै । (चन्द्राय स्वाहा) = इस आनन्दमय प्रभु के लिए मैं अपना अर्पण करता हूँ।
भावार्थ
आनन्दमय प्रभु मुझे प्रसन्न मन को प्राप्त कराएँ। इस निर्मल मन में प्रभु-प्रेरणा को सुनता हुआ मैं उत्तम मार्ग का आक्रमण करूँ। व्रती व तपस्वी बनकर उत्तम लोक को प्राप्त करूँ। इस आनन्दमय प्रभु के प्रति मैं अपना अर्पण करता हूँ।
विषय
ईश्वर से परमपद की प्रार्थना।
भावार्थ
(चन्द्रः मा तत्र नयतु) चन्द्र के समान आह्लादकारी परमेश्वर मुझे वहां ले जाय (चन्द्रः मे मनः दधातु) चन्द्र, वह आह्लादकारी प्रभु मुझे मन, मननशक्ति प्रदान करे। (चन्द्राय स्वाहा) उस चन्द्र परम आह्लादकारी की मैं स्तुति करता हूं। उसके प्रति अपने को अर्पण करता हूं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। ब्रह्म, बहवो वा देवता। त्र्यवसानाः। ककुम्मत्यः पथ्यापंक्तयः। अष्टर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Brahma Supreme
Meaning
Where men dedicated to Brahma go, with Diksha and Tapas, initiation, commitment and austere discipline, there may Chandra, lord of moon bliss, lead me. May Chandra bless me with a noble mind. Homage to Chandra, lord of bliss, in truth of word and deed.
Translation
Whither the realizers of the Divine Supreme go with consecration and austerity, may the moon lead me thither; may the moon grant me (a pleasant) mind. I dedicate it to the moon.
Translation
Let Surya, the sun...... vision of eyes and...... vow occupy. Lo. Surya
Translation
May the All-pleasing God or the moon lead .... austerity. Let God or the moon endow me with mental powers. That is my prayer to them.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(चन्द्रः) चन्द्र इवाह्लादकः परमात्मा (मनः) मननसामर्थ्यम् (चन्द्रः) (चन्द्राय) आह्लादकाय परमात्मने। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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