अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 45/ मन्त्र 10
ऋषिः - भृगुः
देवता - आञ्जनम्
छन्दः - एकावसाना निचृन्महाबृहती
सूक्तम् - आञ्जन सूक्त
1
म॒रुतो॑ मा ग॒णैर॑वन्तु प्रा॒णाया॑पा॒नायु॑षे॒ वर्च॑स॒ ओज॑से॒ तेज॑से स्व॒स्तये॑ सुभू॒तये॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठम॒रुतः॑। मा॒। ग॒णैः। अ॒व॒न्तु॒। प्रा॒णाय॑। अ॒पा॒नाय॑। आयु॑षे। वर्च॑से। ओज॑से। तेज॑से। स्व॒स्तये॑। सु॒ऽभू॒तये॑। स्वाहा॑ ॥४५.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
मरुतो मा गणैरवन्तु प्राणायापानायुषे वर्चस ओजसे तेजसे स्वस्तये सुभूतये स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठमरुतः। मा। गणैः। अवन्तु। प्राणाय। अपानाय। आयुषे। वर्चसे। ओजसे। तेजसे। स्वस्तये। सुऽभूतये। स्वाहा ॥४५.१०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(मरुतः) शूर पुरुष (मा) मुझे (गणैः) सेना दलों के साथ (अवन्तु) बचावें, (प्राणाय) प्राण के लिये, (अपानाय) अपान के लिये, (आयुषे) जीवन के लिये, (वर्चसे) प्रताप के लिये, (ओजसे) पराक्रम के लिये, (तेजसे) तेज के लिये, (स्वस्तये) स्वस्ति [सुन्दर सत्ता] के लिये और (सुभूतये) बड़े ऐश्वर्य के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥१०॥
भावार्थ
सब मनुष्य परस्पर रक्षा करके संसार में उन्नति करें ॥१०॥ इति पञ्चमोऽनुवाकः ॥
टिप्पणी
१०−(मरुतः) म०१।२०।१। शत्रुनाशकाः शूराः (गणैः) सैन्यैः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
भाषार्थ
(मरुतः) ऋत्विक् (गणैः) ऋत्विक्-समूहों द्वारा (मा) मेरी (अवन्तु) रक्षा करें। ताकि मैं (प्राणाय अपानाय....) आदि पूर्ववत्।
टिप्पणी
[मरुतः=ऋत्विङ्नाम (निघं० ३.१८)। गणैः=ऋत्विक्-समूह। भिन्न-भिन्न यज्ञों में ऋत्विक्-संख्या भिन्न-भिन्न नियत है। नियत संख्या वाले ऋत्विजों को “गण” कहा है। अथवा— मरुतः= शत्रुओं को मारने में कुशल सैनिक, “मारयीति मरुत्” (उणा० १.९४)। मरुतः अर्थात् मरुत्नामी सैनिक आक्रमण करने में महावेगी होते हैं—“मरुतः महद् द्रवन्ति वा” (निरु० ११.२.१३)। मरुतः सैनिक हैं—इसके लिए देखो (अथर्व० १९.१३.९,१०)। मन्त्र में राजा अपनी और प्रजा की रक्षा के लिए मरुद्गणों को चाहता है। मरुतः का अर्थ ऋत्विक् करने पर राजा अपनी और प्रजा की रक्षा के लिए, यज्ञानुष्ठानार्थ ऋत्विक् करने पर राजा को चाहता है। यज्ञों द्वारा रोगों का विनाश, वायु जल ओषधि अन्नों की परिपुष्टि, तथा स्वास्थ्य और दीर्घायु होती है।]
विषय
मरुतः गणैः
पदार्थ
१. (मरुत:) = प्राण (गणैः) = ज्ञानेन्द्रिय पञ्चक, अन्त:-करण पञ्चक [मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार हृदय] आदि गणों के साथ (मा अवन्तु) = मेरा रक्षण करें। २. प्राणसाधना द्वारा प्राणशक्ति का वर्धन होकर मुझे दीर्घजीवन प्रास हो।
भावार्थ
प्राणसाधना होने पर मेरी इन्द्रियों के गण उत्तम होकर मुझे प्राणापानशक्तिसम्पन्न दीर्घजीवन प्रास कराएँ। अपने जीवन में 'आयु-वर्चस-ओज व तेज' को प्राप्त करके यह प्रजाओं का रक्षण करनेवाला 'प्रजापति' बनता है। यही अगले सूक्त का ऋषि है -
इंग्लिश (4)
Subject
Anjanam
Meaning
May the Maruts, vibrant forces of nature and humanity protect and promote me with their bands of forces for prana and apana, good health and full age, honour, splendour and glory, all round well being and noble prosperity. Homage to Maruts in truth of thought, word and deed.
Translation
May the brave soldiers (cloud-bearing winds) preserve me with the troops for in-breath, for out-breath, for long life, lustre, for vigour, for majesty, for weal, for good prosperity. Svaha.
Translation
May Marutah, the forty nine cosmic forces protect me with their groups for inspiration, for expiration, for strength, for energy, for vigour, for weal and for prosperity. I hail this idea.
Translation
May the Almighty Father or the powerful air or commander protect me with numerous powers for .... said.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१०−(मरुतः) म०१।२०।१। शत्रुनाशकाः शूराः (गणैः) सैन्यैः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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