अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 19/ मन्त्र 3
ऋषिः - अथर्वा
देवता - अग्निः
छन्दः - एकावसानानिचृद्विषमात्रिपाद्गायत्री
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
1
अग्ने॒ यत्ते॒ऽर्चिस्तेन॒ तं प्रत्य॑र्च॒ यो॑३ ऽस्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः ॥
स्वर सहित पद पाठअग्ने॑ । यत् । ते॒ । अ॒र्चि: । तेन॑ । तम् । प्रति॑ । अ॒र्च॒ । य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम् । द्वि॒ष्म: ॥१९.३॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्ने यत्तेऽर्चिस्तेन तं प्रत्यर्च यो३ ऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः ॥
स्वर रहित पद पाठअग्ने । यत् । ते । अर्चि: । तेन । तम् । प्रति । अर्च । य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम् । द्विष्म: ॥१९.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
कुप्रयोग के त्याग के लिये उपदेश।
पदार्थ
(अग्ने) हे अग्नि (यत्) जो (ते) तेरी (अर्चिः) दीपनशक्ति है, (तेन) उससे (तम् प्रति) उस [दोष] पर (अर्च) प्रदीप्त हो, (यः) जो (अस्मान्) हमसे..... मन्त्र १ ॥३॥
भावार्थ
मन्त्र १ के समान ॥३॥
टिप्पणी
३–अर्चिः। अर्चिशुचिहुसृपिछादिछर्दिभ्य इसिः। उ० २।१०८। इति अर्च पूजाप्रकाशयोः–इसि। ज्वलतो नाम–निघ० १।१७। दीपनम्। ज्वाला। अर्च। ज्वलितो भव। दीप्यस्व ॥
विषय
अर्चि-ज्ञानज्वाला
पदार्थ
१. हे (अग्ने) = ज्ञान की ज्योति से दीस प्रभो! (यत्) = जो (ते) = आपकी (अर्चि:) = ज्ञान की ज्वाला है, (तेन) = उससे (तं प्रति अर्च)) = उसके अन्दर उस ज्वाला को जगाइए, जिसमें उसका सब द्वेष दग्ध हो जाए। यह ज्वाला उसमें जगाइए (य:) = जो (अस्मान् द्वेष्टि) = हमसे द्वेष करता है और परिणामत: (यम्) = जिससे (वयम्) = हम (द्विष्मः) = प्रेम नहीं कर पाते [द्विष अप्रीती] । २. गतमन्त्र में वर्णित हरण के लिए आवश्यक है कि उस द्वेष करनेवाले के हृदय में ज्ञान की ज्वाला दीप्त की जाए। द्वेष इसी ज्वाला में भस्मीभूत होगा। अज्ञान में ही द्वेष पनपता है। ज्ञान वह अग्नि है, जिसमें सब अशुभ वासनाएँ दग्ध हो जाती हैं।
भावार्थ
ज्ञान की ज्वाला में द्वेष की भावनाएँ दग्ध हो जाएँ। अग्नि हमारे हृदय में ज्ञानाग्नि को दीप्त करे और वहाँ यह ज्ञानज्वाला सब वासनामल को भस्म कर दे।
भाषार्थ
(अर्चिः की व्याख्या के लिये देखो मन्त्र ( १ ) की व्याख्या) शेष अर्थ पूर्ववत् ।
विषय
द्वेष करने वालों के सम्बन्ध में प्रार्थना ।
भावार्थ
हे अग्ने ! परमात्मन् ! (यः अस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः) जो हमें द्वेष करता और जिसको हम भी प्रेम नहीं करते (यत् ते अर्चिः) जो तेरी ज्वाला, प्रकाश, ज्ञानमय दीप्ति है (तेन तं प्रति अर्च) उस द्वारा उस पापकारी पुरुष को ज्ञान दे और अन्धकारमय तामस मार्ग से परे कर ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः । अग्निर्देवता । १-४ निचृत् सामगायत्री, २ भुरिग् विषमा । पञ्चर्चं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (4)
Subject
The Way to Purification: 19-23
Meaning
Agni, the fire and flame and the light that’s yours, with that either scorch or enlighten that who hates us and that we hate to suffer.
Translation
O fire-divine, whatever-glare (areih), you have, with that may you glare towards him who hates us and whom we hate.
Translation
Let the fire, with that of its radiance, shine against that who......... etc. etc.
Translation
O God, with Thy light of knowledge, enlighten him, who hates us, or whom we do not love!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३–अर्चिः। अर्चिशुचिहुसृपिछादिछर्दिभ्य इसिः। उ० २।१०८। इति अर्च पूजाप्रकाशयोः–इसि। ज्वलतो नाम–निघ० १।१७। दीपनम्। ज्वाला। अर्च। ज्वलितो भव। दीप्यस्व ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(অগ্নে) হে অগ্নি ! (যৎ তে অর্চি) যে তোমার জ্বলনশক্তি রয়েছে, (তেন) তা দ্বারা (তম্) তাঁকে (প্রতি অর্চঃ) জ্বালাও/দগ্ধ করো (যঃ) যাঁরা/যে (অস্মান্ দ্বেষ্টি) আমাদের সাথে দ্বেষ করে, (যম্) এবং যাঁর সাথে (বয়ম্) আমরা (দ্বিষ্মঃ) অপ্রীতি করি।
मन्त्र विषय
কুপ্রয়োগত্যাগায়োপদেশঃ
भाषार्थ
(অগ্নে) হে অগ্নি (যৎ) যে/যা (তে) তোমার (অর্চিঃ) দীপনশক্তি আছে, (তেন) তা দ্বারা (তম্ প্রতি) সেই [দোষের] ওপর (অর্চ) প্রদীপ্ত হও, (যঃ) যা (অস্মান্) আমাদের প্রতি (দ্বেষ্টি) অপ্রীতি করে, [অথবা] (যম্) যার প্রতি (বয়ম্) আমরা (দ্বিষ্মঃ) অপ্রীতি করি ॥৩॥
भावार्थ
মন্ত্র ১ এর সমান ॥৩॥
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