अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 21/ मन्त्र 5
ऋषिः - अथर्वा
देवता - सूर्यः
छन्दः - एकावसानानिचृद्विषमात्रिपाद्गायत्री
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
1
सूर्य॒ यत्ते॒ तेज॒स्तेन॒ तम॑ते॒जसं॑ कृणु॒ यो॑३ ऽस्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः ॥
स्वर सहित पद पाठसूर्य॑ । यत् । ते॒ । तेज॑: । तेन॑ । तम् । अ॒ते॒जस॑म् । कृ॒णु॒ । य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम् । द्वि॒ष्म: ॥२१.५॥
स्वर रहित मन्त्र
सूर्य यत्ते तेजस्तेन तमतेजसं कृणु यो३ ऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः ॥
स्वर रहित पद पाठसूर्य । यत् । ते । तेज: । तेन । तम् । अतेजसम् । कृणु । य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम् । द्विष्म: ॥२१.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
कुप्रयोग के त्याग के लिये उपदेश।
पदार्थ
(सूर्य) हे सूर्य [सूर्यमण्डल !] (यत्) जो (ते) तेरा (तेजः) तेज है, (तेन) उससे (तम्) उस [दोष] को (अतेजसम्) निस्तेज (कृणु) कर दे, (यः) जो (अस्मान्) हमसे (द्वेष्टि) अप्रिय करे, [अथवा] (यम्) जिससे (वयम्) हम (द्विष्मः) अप्रिय करें ॥५॥
भावार्थ
मन्त्र १ के समान ॥५॥
टिप्पणी
५–सूर्य। अ० १।३।५। हे सरणशील ! हे प्रेरणशील ! आदित्य ! अन्यदुपरिगतम् ॥ २, ३, ४, ५–उपरि व्याख्यातः ॥
विषय
५ भुरिग्विषमात्रिपाद्गायत्री।
पदार्थ
१, २, ३, ४, ५ एवं मन्त्र संख्या के केवल भावार्थ ही है |
भावार्थ
सूर्य अपने तप आदि के द्वारा द्वेषियों के द्वेष को दूर करे । राष्ट्र में राजा भी सूर्य है। राजा सूर्य की भाँति निरन्तर सरण करते हुए सब लोगों को क्रिया-प्रवृत्त करता है, जिससे न वे खाली हों और न ही व्यर्थ के द्वेष आदि में पड़ें। समाज में ज्ञानी प्रचारक को भी सूर्य की भांति निरन्तर भ्रमण करते हुए ज्ञान के प्रकाश से अज्ञान-अन्धकार को दूर करना है, जिससे लोग द्वेष आदि आसुर भावनाओं को त्याज्य ही समझें।
भाषार्थ
(तेजः) तेजप्रकाश। द्वेष्टा की आँखों से निज तेज का अपहरण करना, अथवा उसकी आंखों को चौंधिया देना।
विषय
द्वेष करने वालों के सम्बन्ध में प्रार्थना ।
भावार्थ
हे (सूर्य) सबके उत्पादक और प्रकाशक और प्रेरक परमात्मन् ! शेष सब पूर्ववत् है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिश्छन्दश्च पूर्ववत् । सूर्यो देवता । पञ्चर्चं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (4)
Subject
Vayu Devata
Meaning
O sun, the splendour and glory that is yours, with that cleanse off that which hates us and that which we hate to suffer.
Translation
O Sun, whatever lustre (tejas) you have, with that may you make him lusterless, who hates us and whom we hate.
Translation
Let the Sun with that of its heat,...etc. like the pervious Hymn. XIX.
Translation
O God, All-Creating, All-Goading like the Sun with Thy Passionate power, make him, who hates us, or whom we do not love, sober and nonviolent.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५–सूर्य। अ० १।३।५। हे सरणशील ! हे प्रेरणशील ! आदित्य ! अन्यदुपरिगतम् ॥ २, ३, ४, ५–उपरि व्याख्यातः ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(সূর্য) হে সূর্য ! (যৎ তে তেজঃ) যে তোমার তেজ রয়েছে, (তেন) তা দ্বারা (তম্) তাঁকে (অতেজসম্) নিস্তেজ (কৃণু) করে দাও/করো (যঃ) যাঁরা/যে (অস্মান্ দ্বেষ্টি) আমাদের সাথে দ্বেষ করে, (যম্) এবং যাঁর সাথে (বয়ম্) আমরা (দ্বিষ্মঃ) অপ্রীতি করি।
टिप्पणी
[দ্বেষ্টার চোখ থেকে নিজ তেজের অপহরণ করা, অথবা তাঁর চোখকে ঝলসানি দেওয়া।]
मन्त्र विषय
কুপ্রয়োগত্যাগায়োপদেশঃ
भाषार्थ
(সূর্য) হে সূর্য [সূর্যমণ্ডল !] (যৎ) যে (তে) তোমার (তেজঃ) তেজ আছে, (তেন) তা দ্বারা (তম্) সেই [দোষ]কে (অতেজসম্) নিস্তেজ (কৃণু) করো, (যঃ) যা (অস্মান্) আমাদের প্রতি (দ্বেষ্টি) অপ্রীতি করে, [অথবা] (যম্) যার প্রতি (বয়ম্) আমরা (দ্বিষ্মঃ) অপ্রীতি করি॥৫॥
भावार्थ
মন্ত্র ১ এর সমান ॥৫॥
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