अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 30/ मन्त्र 2
ऋषिः - प्रजापतिः
देवता - अश्विनीकुमारौ
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - कामिनीमनोऽभिमुखीकरण सूक्त
0
सं चेन्नया॑थो अश्विना का॒मिना॒ सं च॒ वक्ष॑थः। सं वां॒ भगा॑सो अग्मत॒ सं चि॒त्तानि॒ समु॑ व्र॒ता ॥
स्वर सहित पद पाठसम् । च॒ । इत् । नया॑थ: । अ॒श्वि॒ना॒ । का॒मिना॑ । सम् । च॒ । वक्ष॑थ: । सम् । वा॒म् । भगा॑स: । अ॒ग्म॒त॒ । सम् । चि॒त्तानि॑ । सम् । ऊं॒ इति॑ । व्र॒ता ॥३०.२॥
स्वर रहित मन्त्र
सं चेन्नयाथो अश्विना कामिना सं च वक्षथः। सं वां भगासो अग्मत सं चित्तानि समु व्रता ॥
स्वर रहित पद पाठसम् । च । इत् । नयाथ: । अश्विना । कामिना । सम् । च । वक्षथ: । सम् । वाम् । भगास: । अग्मत । सम् । चित्तानि । सम् । ऊं इति । व्रता ॥३०.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के लिये उपदेश।
पदार्थ
(च) और (अश्विना=०–नौ) हे कार्य में व्याप्तिवाले माता और पिता, तुम दोनों, (इत्) ही (कामिना=०–नौ) कामनावाले दोनों [वर-कन्या] को (सम्) मिलकर (नयाथः) ले चलो, (च) और (सम्) मिलकर (वक्षथः) आगे बढ़ाओ। (वाम्) तुम दोनों के (भगासः=भगाः) सब ऐश्वर्य (सम् अग्मत) [हमको] मिल गये हैं, (चित्तानि) [हमारे] चित्त (सम्=सम्+अग्मत) मिल गये हैं, (उ) और भी (व्रता=व्रतानि) नियम और कर्म (सम्+अग्मत) मिल गये हैं ॥२॥
भावार्थ
वर और कन्या माता-पिता आदि बड़ों की भी सम्मति प्राप्त करें। उनके अनुग्रह से दोनों ने विद्या, धन और सुवर्ण आदि धन और परस्पर एक चित्त होने और नियमपालन की शक्ति को पाया है। यह मूल मन्त्र गृहस्थाश्रम में आनन्दवर्धक है ॥२॥
टिप्पणी
२–सम्। मिलित्वा। संगत्य। च। समुच्चये। इत्। अवश्यम्। नयाथः। नयतेलेर्टि आडागमः। प्रापयतम्। अश्विना। अ० २।२९।६। हे कार्येषु व्यापनशीलौ मातापितरौ। कामिना। म० १। कम–णिच्–इनि। कामयमानौ। कन्यावरौ। वक्षथः। वहेर्लेटि अडागमः, सिप् च। युवां वहतम्। संयोजयतम्। वाम्। युवयोः। भगासः। आज्जसेरसुक्। पा० ७।१।५०। इति जसि असुक्। भगाः। भजनीयानि, ऐश्वर्याणि। सम्+अग्मत। समोगम्यृच्छि०। पा० १।३।२९। आत्मनेपदम्। लुङि च्लेर्लुक् सम्यग् अगमन्। चित्तानि। चिती ज्ञाने–क्त। मनांसि। व्रतानि। पृषिरञ्जिभ्यां कित्। उ० ३।१११। इति वृञ्–अतच्। कित्त्वाद् गुणाभावः, यणादेशः। व्रतमिति कर्मनाम वृणोतीति सत इदमपीतरद् व्रतमेतस्मादेव निवृत्तिकर्म वारयतीति सतोऽन्नमपि व्रतमुच्यते यदावृणोति शरीरम्–निरुक्ते–२।१३। कर्माणि। नियमान् ॥
विषय
सब-कुछ सम्मिलित
पदार्थ
१.हे (आश्विना) = कर्मों में व्याप्त होनेवाले पति-पत्नी! तुम इस बात का ध्यान करो कि (इत्) = निश्चय से (सन्नयाथा) = तुम एक-दूसरे की आवश्यकताओं को सम्यक् प्राप्त करानेवाले होते हो (च) = और (कामिना) = एक दूसरे को चाहनेवाले तुम (संवक्षथः) = कार्यों को सम्यक् धारण करते हो। २. (च) = तथा (वां भगास:) = आपके ऐश्वर्य (सम् अगमत्) = संगत ही होते हैं, (चित्तानि सं) = [अगमत्] आपके चित्त मिले हुए होते हैं (उ) = और (व्रता) = आपके व्रत (सम्) = मिले हुए होते हैं। इन सबका मिलकर होना आपको एक बनाये रखता है। एकता के परिणामस्वरूप आपके चित्तों में शान्ति बनी रहती है। यह शान्ति दीर्घजीवन का कारण बनती है।
भावार्थ
पति-पत्नी का सब-कुछ सम्मिलित होना चाहिए। यह मेल ही उन्हें दीर्घजीवी बनाता है।
भाषार्थ
(अश्विना) हे सूर्य और चन्द्रमाः के सदृश वर्तमान माता-पिता ! तुम दोनों (कामिना=कामिनौ) परस्पर कामनावाले वर-वधू को (सम् च इत् नयाथः) परस्पर समीप प्राप्त करते हो, (सं च वक्षथः) और संवहन करते हो, उन्हें परस्पर मिलाते हो। (वां) तुम दोनों के (भगास:) ऐश्वर्यादि (सम् अग्मत) परस्पर संगत हो गये हैं, परस्पर मिल गये हैं, एक हो गये हैं, (चित्तानि) चित्तों के संकल्प (सम्) परस्पर मिल गये हैं, एक हो गए हैं, (व्रता सम् उ) व्रतकर्म निश्चय से (सम्) परस्पर मिल गए हैं, एक हो गए हैं। मन्त्र में वर-वधू के प्रति कथन हुआ है।
टिप्पणी
[माता-पिता को सूर्य और चन्द्रमा कहा है। पिता है सूर्य और माता है चन्द्रमा। निरुक्त-सूर्याचन्द्रमसावित्येके (१२।१।१)। चन्द्रमा सूर्य से शक्ति प्राप्त कर चमकता है। पत्नी भी पति से उत्पादक शक्ति प्राप्त कर पुत्रवती नाम से प्रसिद्ध होती है। सं नयाथः= सम् णीञ् प्रापणे। सं वक्षथः = सम् + वह अर्थात् परस्पर विवाहकर्म करते हो। वक्षथः= वह्+ सिप् (सिप् बहुलं लेटि) (अष्टा० ३।१।३४), वहेर्लेटि अडागम: (सायण)। वर के विवाह के लिए वर के माता-पिता अश्विनौ अर्थात् घुड़सवार होकर बरात के आगे-आगे चलते हैं, यथा "सूर्याया अश्विना वरा, अश्विनास्तामुभा वरा" (अथर्व० १।८, ९), तथा "यदश्विना पृच्छमाना वयातम्" (अथर्व० १।१४)। अधिक स्पष्टता के लिए देखो मत्कृत अथर्ववेदभाष्य।
विषय
प्रेमपूर्वक स्वयंवर-विधान ।
भावार्थ
हे (अश्विनौ) आत्मवान्, जितेन्द्रिय कुमार और कुमारी ! तुम दोनों (चेत्) यदि गृहस्थ रथ में अश्वी = आत्मवान् होकर, स्वतः कर्त्ता होकर गृहस्थ के कार्य (नयाथः) उठाने में समर्थ होओ, (च) और (कामिना) एक दूसरे के प्रति प्रेम, अभिलाषा वाले होकर एक दूसरे के भार को (सं वक्षथः) मिल कर उठाने में समर्थ होओं, तब (वां) तुम दोनों के (भगासः) समस्त ऐश्वर्य भी (सं अग्मत) समानरूप से तुम्हें प्राप्त हों, (चित्तानि) तुम्हारे हृदय के सब संकल्प (सं) एक होकर रहें। (व्रता उ) और सब शास्त्र प्रतिपादित धर्मकार्य, यम नियम आदि व्रत भी (सम्) समानरूप से रहें और तुम दोनों मिल कर गृहस्थ होकर रहो, अन्यथा नहीं। विवाह होने के लिये युवक युवति के आत्मा एक, मनोरथ एक, चित्त और व्रत भी एक होने उचित हैं।
टिप्पणी
(तृ०) ‘सं नौ भगासो’ इति ह्विटनिकामितः पाठः। (प्र०) ‘ सं चेन्निषितौ’, (तृ० च०) ‘सर्वाङ्गनस्याग्मत सं चक्षूंषि समु व्रता’ इति पेप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रजापतिर्ऋषिः। अश्विनौ देवता। १ पथ्यापंक्तिः। ३ भुरिक् अनुष्टुभः। २, ४, ५ अनुष्टुभः । पञ्चर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
The Wedded Couple
Meaning
Ashvins, mutually loving couple, since you join together in love and marriage, win each other and move on together in life, may all good fortunes of the world come to you, may your mind and soul be together, and may your vows of discipline and life’s values in covenant be alike in unison.
Subject
Asvinau
Translation
O Ašvins, the twins divine, may you both lead together and unite her with him, with love and affection. O couple, the future target of both of you has become one and so are your plans, paths and intents also now one.
Translation
O marriageable girl and youth; if you desire to lead the life of household and have love with each other to assume the helm of affairs unitedly let all fortunes visit you, let your mind be concordant and let your actions be disciplined.
Translation
O mutually loving young man and girl, walk together, progress together. May ye both acquire supremacy together, may your hearts work in unison, may your resolves be one and the same.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२–सम्। मिलित्वा। संगत्य। च। समुच्चये। इत्। अवश्यम्। नयाथः। नयतेलेर्टि आडागमः। प्रापयतम्। अश्विना। अ० २।२९।६। हे कार्येषु व्यापनशीलौ मातापितरौ। कामिना। म० १। कम–णिच्–इनि। कामयमानौ। कन्यावरौ। वक्षथः। वहेर्लेटि अडागमः, सिप् च। युवां वहतम्। संयोजयतम्। वाम्। युवयोः। भगासः। आज्जसेरसुक्। पा० ७।१।५०। इति जसि असुक्। भगाः। भजनीयानि, ऐश्वर्याणि। सम्+अग्मत। समोगम्यृच्छि०। पा० १।३।२९। आत्मनेपदम्। लुङि च्लेर्लुक् सम्यग् अगमन्। चित्तानि। चिती ज्ञाने–क्त। मनांसि। व्रतानि। पृषिरञ्जिभ्यां कित्। उ० ३।१११। इति वृञ्–अतच्। कित्त्वाद् गुणाभावः, यणादेशः। व्रतमिति कर्मनाम वृणोतीति सत इदमपीतरद् व्रतमेतस्मादेव निवृत्तिकर्म वारयतीति सतोऽन्नमपि व्रतमुच्यते यदावृणोति शरीरम्–निरुक्ते–२।१३। कर्माणि। नियमान् ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(অশ্বিনা) হে সূর্য ও চন্দ্রের সদৃশ বর্তমান মাতা-পিতা ! তোমরা দুজন (কামিনা=কামিনৌ) পরস্পর অভিলাষী/কামনাকারী বর-বধূকে (সম্ চ ইৎ নয়াথঃ) পরস্পর সন্নিকটে প্রাপ্ত করাও, (সং চ বক্ষথঃ) এবং সংবহন করো, তাঁদের পরস্পর মিলিত করাও। (বাম্) তোমাদের দুজনের (ভগাসঃ) ঐশ্বর্যাদি (সম্ অগ্মত) পরস্পর সংগত হয়েছে, পরস্পর মিশে গেছে, এক হয়েছে, (চিত্তানি) চিত্তের সংকল্প (সম্) পরস্পর মিলিত হয়েছে, এক হয়েছে, (ব্রতা সম্ উ) ব্রতকর্ম নিশ্চিতরূপে (সম্) পরস্পর মিলিত হয়েছে, এক হয়েছে। মন্ত্রে বর-বধূ এর প্রতি কথন হয়েছে।
टिप्पणी
[মাতা-পিতাকে সূর্য ও চন্দ্র বলা হয়েছে। পিতা হল সূর্য এবং মাতা হল চন্দ্র। নিরুক্ত-সূর্যাচন্দ্রমসাবিত্যেকে (১২।২১)। চন্দ্র সূর্য থেকে শক্তি প্রাপ্ত করে চমকিত/প্রদীপ্ত হয়। পত্নীও পতি থেকে উৎপাদক শক্তি প্রাপ্ত করে পুত্রবতী নামে প্রসিদ্ধ হয়। সং নয়াথঃ= সম্ ণীঞ্ প্রাপণে। সং বক্ষথঃ= সম্ + বহ অর্থাৎ পরস্পর বিবাহ কর্ম করো। বক্ষথঃ = বহ, + সিপ্ (সিপ্ বহুলং লেটি) (অষ্টা০ ৩।১।৩৪), বহের্লেটী অডাগমঃ (সায়ণ)। বরের বিবাহের জন্য বরের মাতা-পিতা অশ্বিনৌ অর্থাৎ অশ্বারোহণ করে বরযাত্রীর সামনে-সামনে গমন করে, যথা "সূর্যায়া অশ্বিনা বরা, (১৪।১।৮), অশ্বিনাস্তামুভা বরা" (অথর্ব০ ১৪।১।৯), এবং "যদশ্বিনা পৃচ্ছমানা বয়াতম্" (অথর্ব০ ১৪।১৪।১৪)। অধিক স্পষ্টিতার জন্য দেখো মৎকৃত অথর্ববেদ ভাষ্য।]
मन्त्र विषय
গৃহস্থাশ্রমপ্রবেশায়োপদেশঃ
भाषार्थ
(চ) এবং (অশ্বিনা=০–নৌ) হে কার্যে প্রবৃত্ত মাতা ও পিতা, তোমরা দুজন, (ইৎ) ই (কামিনা=০–নৌ) কামনাকারী দুজন [বর-কন্যা]কে (সম্) একসাথে (নয়াথঃ) নিয়ে চলো, (চ) এবং (সম্) একসাথে (বক্ষথঃ) অগ্ৰগামী করাও। (বাম্) তোমাদের দুজনের (ভগাসঃ=ভগাঃ) সকল ঐশ্বর্য (সম্ অগ্মত) [আমরা] প্রাপ্ত করেছি, (চিত্তানি) [আমাদের] চিত্ত (সম্=সম্+অগ্মত) মিলিত হয়েছে, (উ) এবং (ব্রতা=ব্রতানি) নিয়ম ও কর্ম (সম্+অগ্মত) মিলিত হয়েছে ॥২॥
भावार्थ
বর ও কন্যা মাতা-পিতা আদি গুরুজনদের সম্মতি প্রাপ্ত করুক। তাঁদের অনুগ্রহে/কৃপায় দুজন বিদ্যা, ধন ও সুবর্ণ আদি ধন-সম্পদ, পরস্পর এক চিত্ত হওয়ার এবং নিয়মপালনের শক্তি প্রাপ্ত করেছে। এই মূল মন্ত্র গৃহস্থাশ্রমে আনন্দবর্ধক ॥২॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal