अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 103/ मन्त्र 3
अच्छा॒ हि त्वा॑ सहसः सूनो अङ्गिरः॒ स्रुच॒श्चर॑न्त्यध्व॒रे। ऊ॒र्जो नपा॑तं घृ॒तके॑शमीमहे॒ऽग्निं य॒ज्ञेषु॑ पू॒र्व्यम् ॥
स्वर सहित पद पाठअच्छ॑ । हि । त्वा॒ । स॒ह॒स॒: । सू॒नो॒ इति॑ । अ॒ङ्गि॒र॒: । स्रुच॑: । चर॑न्ति । अ॒ध्व॒रे ॥ ऊ॒र्ज: । नपा॑तम् । घृ॒तऽके॑शम् । ई॒म॒हे॒ । अ॒ग्निम् । य॒ज्ञेषु॑ । पू॒र्व्यम् ॥१०३.३॥
स्वर रहित मन्त्र
अच्छा हि त्वा सहसः सूनो अङ्गिरः स्रुचश्चरन्त्यध्वरे। ऊर्जो नपातं घृतकेशमीमहेऽग्निं यज्ञेषु पूर्व्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठअच्छ । हि । त्वा । सहस: । सूनो इति । अङ्गिर: । स्रुच: । चरन्ति । अध्वरे ॥ ऊर्ज: । नपातम् । घृतऽकेशम् । ईमहे । अग्निम् । यज्ञेषु । पूर्व्यम् ॥१०३.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(सहसः सूनो) हे बल के पहुँचानेवाले ! (अङ्गिरः) हे ज्ञानी परमेश्वर ! (स्रुचः) चलनेवाली प्रजाएँ। (अध्वरे) बिना हिंसावाले व्यवहार में (त्वा) तुझको (हि) ही (अच्छ) अच्छे प्रकार (चरन्ति) प्राप्त होती हैं। (ऊर्जः) बल के (नपातम्) न गिरानेवाले [रक्षक] (यज्ञेषु) यज्ञों [संयोग-वियोग व्यवहारों] में (पूर्व्यम्) पुराने (अग्निम्) अग्नि [प्रकाशस्वरूप परमेश्वर] से (घृतकेशम्) जल और प्रकाश को (ईमहे) हम माँगते हैं ॥३॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिये कि परमेश्वर के बनाये पदार्थों से उपकार लेकर उन्नति करें ॥३॥
टिप्पणी
३−(अच्छ) सुष्ठु प्रकारेण (हि) एव (त्वा) (सहसः) बलस्य (सूनो) प्रेरक (अङ्गिरः) हे ज्ञानिन् परमेश्वर। (स्रुचः) चिक् च। उ० २।६२। स्रु गतौ-क्विप् चिगागमः। गतिशीलाः प्रजाः (चरन्ति) गच्छन्ति। प्राप्नुवन्ति (अध्वरे) हिंसारहिते व्यवहारे (ऊर्जः) बलस्य (नपातम्) नपातयितारम्। रक्षकम् (घृतकेशम्) घृतं जलं केशं प्रकाशं च (ईमहे) याचामहे (अग्निम्) प्रकाशस्वरूपं परमेश्वरम् (यज्ञेषु) संयोगवियोगव्यवहारेषु (पूर्व्यम्) पुरातनम् ॥
विषय
'ऊर्जान पातं-घृतकेशम् ईमहे
पदार्थ
१. हे (सहसः सूनो) = बल के पुजीप्रभो! हे (अंगिरः) = सर्वत्र गतिवाले प्रभो! इस अध्वरे-जीवन यज्ञ में त्रुच:-[वाग वै सुक् श० ६.३.१.८] ज्ञान की वाणियाँ हि-निश्चय से त्वा अच्छा-आप की ओर चरन्ति-गतिवाली हैं। ये ज्ञान की वाणियाँ हमें आपके समीप प्राप्त कराती हैं । २. हम (यज्ञेषु) = यज्ञों में उस प्रभु को ईमहे-आराधित करते हैं-स्तुत करते हैं, जो ऊर्ज: नपातम्-शक्ति को न गिरने देनेवाले हैं, घृतकेशम्-दीस ज्ञान की रश्मियोंवाले हैं। अग्निम्-अग्रणी हैं और पूर्व्यम्-पालन व पूरण करनेवालों में उत्तम हैं।
भावार्थ
इस जीवन-यज्ञ में हम ज्ञान प्राप्त करते हुए प्रभु का उपासन करें। प्रभु हमें शक्ति प्राप्त कराएँगे और ज्ञानदीति देंगे। पवित्र प्रभु का अतिथि बननेवाला 'मेध्यातिथि' अगले सक्त के १-२ मन्त्रों का ऋषि है तथा 'नृमेध' [सबके साथ मिलकर चलनेवाला] ३-४ का।
भाषार्थ
(सहसः सूनो) हे शक्ति हे प्रेरक! (अङ्गिरः) हे हमारे अङ्ग-अङ्ग के प्राण! (अध्वरे) द्रव्य-साध्य यज्ञों में भी (त्वा हि अच्छ) आपको लक्ष्य करके ही (स्रुचः) घृताहुति के यज्ञिय-पात्र (चरन्ति) गतिमान् होते हैं, विचरते हैं। (ऊर्जः) बल और प्राण को (न पातम्) न गिरने देनेवाले अर्थात् उनके अवष्टम्भक, तथा (यज्ञेषु घृतकेशम्) यज्ञों में घृताहुति द्वारा ज्वालारूपी केशोंवाले यज्ञियाग्नि के समान ज्योतिःस्वरूप, (पूर्व्यम्) तथा पूर्वकाल से विद्यमान अनादि परमेश्वर से (ईमहे) हम याचनाएँ करते हैं, या उसे हम प्राप्त होते हैं।
टिप्पणी
[सूनो=सू प्रेरणे। अङ्गिरः=अङ्गों के रसरूप प्राण। ईमहे=याच्ञाकर्मा (निघं০ ३.१९); अथवा “ई” गतौ।]
इंग्लिश (4)
Subject
Agni Devata
Meaning
Agni, creator of energy and power, dear as breath of life omnipresent, the ladles of ghrta feed you well in the holy fire of yajna. We honour and adore the divine fire, prime power, infallible product of cosmic energy and rising in flames in yajnas.
Translation
In the grand performance of Yajnas the ladles (full of ghee) move frequently to offer oblations to this fire which is present in all the world and is the producer of flames. We praise in our, Yajnas this fire which is the maintainor of force, the centre of light and full of powers.
Translation
In the grand performance of Yajnas the ladies (full of ghee) move frequently to offer oblations to this fire which is present in all the world and is the producer of flames. We praise in our, Yajnas this fire which is the maintainor of force, the centre of light and full of powers.
Translation
O Lord of Plenteous wealth, may these Vedic songs of mine extoll Thee! Let the brilliant, pious and wise persons; well-versed in the Vedic lore, thoroughly applaud Thee with Vedic verses.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(अच्छ) सुष्ठु प्रकारेण (हि) एव (त्वा) (सहसः) बलस्य (सूनो) प्रेरक (अङ्गिरः) हे ज्ञानिन् परमेश्वर। (स्रुचः) चिक् च। उ० २।६२। स्रु गतौ-क्विप् चिगागमः। गतिशीलाः प्रजाः (चरन्ति) गच्छन्ति। प्राप्नुवन्ति (अध्वरे) हिंसारहिते व्यवहारे (ऊर्जः) बलस्य (नपातम्) नपातयितारम्। रक्षकम् (घृतकेशम्) घृतं जलं केशं प्रकाशं च (ईमहे) याचामहे (अग्निम्) प्रकाशस्वरूपं परमेश्वरम् (यज्ञेषु) संयोगवियोगव्यवहारेषु (पूर्व्यम्) पुरातनम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(সহসঃ সূনো) হে বলপ্রেরক! (অঙ্গিরঃ) হে জ্ঞানী পরমেশ্বর! (স্রুচঃ) গতিশীল প্রজাগণ। (অধ্বরে) হিংসারহিত/অহিংসক আচরণের/ব্যবহারের দ্বারা (ত্বা) তোমাকে (হি) ই (অচ্ছ) সুষ্ঠুভাবে/উত্তমরূপে (চরন্তি) প্রাপ্ত হয়। (ঊর্জঃ) বলের (নপাতম্) পতন রোধকারী [রক্ষক] (যজ্ঞেষু) যজ্ঞে [সংযোগ-বিয়োগ ব্যবহারে] (পূর্ব্যম্) প্রাচীন (অগ্নিম্) অগ্নির [প্রকাশস্বরূপ পরমেশ্বরের] নিকট (ঘৃতকেশম্) জল এবং আলো (ঈমহে) আমরা যাচনা করি।।৩॥
भावार्थ
মনুষ্যের উচিৎ, পরমেশ্বরের নির্মিত পদার্থসমূহ থেকে উপকার গ্রহণ করে উন্নতি করা ॥৩॥
भाषार्थ
(সহসঃ সূনো) হে শক্তি হে প্রেরক! (অঙ্গিরঃ) হে আমাদের প্রত্যেক-অঙ্গের প্রাণ! (অধ্বরে) দ্রব্য-সাধ্য যজ্ঞেও (ত্বা হি অচ্ছ) আপনাকে লক্ষ্য করেই (স্রুচঃ) ঘৃতাহুতির যজ্ঞিয়-পাত্র (চরন্তি) গতিমান্ হয়, বিচরণ করে। (ঊর্জঃ) বল এবং প্রাণের (ন পাতম্) রক্ষক, তথা (যজ্ঞেষু ঘৃতকেশম্) যজ্ঞে ঘৃতাহুতি দ্বারা শিখারূপী কেশযুক্ত যজ্ঞিয়াগ্নির সমান জ্যোতিঃস্বরূপ, (পূর্ব্যম্) তথা পূর্বকাল থেকে বিদ্যমান অনাদি পরমেশ্বরের প্রতি (ঈমহে) আমরা যাচনা করি, বা উনাকে আমরা প্রাপ্ত হই।
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