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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 11 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 11/ मन्त्र 8
    ऋषिः - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-११
    2

    स॑त्रा॒साहं॒ वरे॑ण्यं सहो॒दां स॑स॒वांसं॒ स्वर॒पश्च॑ दे॒वीः। स॒सान॒ यः पृ॑थि॒वीं द्यामु॒तेमामिन्द्रं॑ मद॒न्त्यनु॒ धीर॑णासः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒त्रा॒ऽसह॑म् । वरे॑ण्यम् । स॒ह॒:ऽदाम् । स॒स॒ऽवांस॑म् । स्व॑:। अ॒प: । च॒ । दे॒वी: ॥ स॒सान॑ । य: । पृ॒थि॒वीम् । द्याम् । उ॒त । इ॒माम् । इन्द्र॑म् । म॒द॒न्ति॒ । अनु॑ । धीऽर॑णास: ॥११.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सत्रासाहं वरेण्यं सहोदां ससवांसं स्वरपश्च देवीः। ससान यः पृथिवीं द्यामुतेमामिन्द्रं मदन्त्यनु धीरणासः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सत्राऽसहम् । वरेण्यम् । सह:ऽदाम् । ससऽवांसम् । स्व:। अप: । च । देवी: ॥ ससान । य: । पृथिवीम् । द्याम् । उत । इमाम् । इन्द्रम् । मदन्ति । अनु । धीऽरणास: ॥११.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 11; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (यः) जिस [वीर] ने (इमाम्) इस (पृथिवीम्) पृथिवी (उत) और (द्याम्) आकाश को (ससान) सेवा है, [उस] (सत्रासाहम्) सत्यों के सहनेवाले, (वरेण्यम्) स्वीकार करने योग्य, (सहोदाम्) बल के देनेवाले, (स्वः) सुख (च) और (देवीः) उत्तम (अपः) प्राणों के (ससवांसम्) दान करनेवाले, (इन्द्रम्) इन्द्र [महाप्रतापी वीर] के (अनु) पीछे (धीरणासः) उत्तम बुद्धियों के लिये युद्ध करनेवाले लोग (मदन्ति) सुख पाते हैं ॥८॥

    भावार्थ

    जो विद्वान् पुरुष पृथिवी और आकाश के पदार्थों से विद्या द्वारा उपयोग लेता है, उसी सत्यवादी के पीछे चलकर सब सत्यकर्मी वीर लोग आनन्द पाते हैं ॥८॥

    टिप्पणी

    ८−(सत्रासाहम्) यः सत्रा सत्यानि सहते तम् (वरेण्यम्) स्वीकरणीयम् (सहोदाम्) बलस्य दातारम् (ससवांसम्) षणु दाने-क्वसु। दत्तवन्तम् (स्वः) सुखम् (अपः) प्राणान् (च) (देवीः) दिव्याः (ससान) षण सम्भक्तौ-लिट्। सेवितवान्। उपयुक्तवान् (यः) इन्द्रः (पृथिवीम्) भूमिम्। भूमिस्थपदार्थानित्यर्थः (द्याम्) आकाशम्। आकाशस्थपदार्थानित्यर्थः (उत) अपि च (इमाम्) दृश्यमानाम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं पुरुषम् (मदन्ति) हृष्यन्ति (अनु) अनुसृत्य (धीरणासः) धीः प्रज्ञानाम-निघ० ३।९। रणः संग्रामनाम-निघ० २।१७। असुगागमः। धीभ्यः प्रशस्तप्रज्ञाभ्यो रणः सङ्ग्रामो येषां ते ॥

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    विषय

    धीरणासः इन्द्रम् अनुमदन्ति

    पदार्थ

    १. (धीरणास:) = [धीषु रमणं येषाम्] ज्ञानपूर्वक कर्मों में रमण करनेवाले स्तोता लोग (इन्द्रम् अनुमदन्ति) = उस आनन्दमय प्रभु के अनुभव के अनुपात में आनन्द का अनुभव करते हैं। जितना जितना उन्हें प्रभु का साक्षात् होता है, उतना-उतना आनन्द की अनुभूति प्राप्त करते हैं। ये उस प्रभु को अपने हदयों में हर्षित करते हैं जोकि (सत्रासाहम्) = एक प्रयत्न से ही सब शत्रु- सेनाओं का अभिभव करनेवाले हैं, (वरेण्यम्) = अतएव वरणीय हैं। (सहोदाम्) = हमें शत्रुमर्षक बल प्राप्त करानेवाले हैं। (स्व:) = प्रकाश को (च) = तथा (देवी: अप:) = दिव्य कौ को (ससवांसम) = प्राप्त करानेवाले हैं। प्रभु का उपासक सदा प्रकाश व दिव्य कर्मों को प्राप्त करता है। प्रभु से ज्ञान प्राप्त करके यह सदा उत्तम कर्मों को करनेवाला होता है। २. उस इन्द्र का ये अनुमदन करते हैं (यः) = जोकि (पृथिवीम्) = पृथिवी को विस्तृत अन्तरिक्ष को (द्याम्) = दयुलोक को (उत) = और (इमाम्) = इस पृथिवी को (ससान) = मनुष्यों के लिए देता है।

    भावार्थ

    प्रभु हमें शत्रु-मर्षक बल प्राप्त कराते हैं, प्रकाश व दिव्य कर्मों को प्राप्त कराते हैं। प्रभु हमारे लिए त्रिलोकी को देते हैं-मस्तिष्क, हदय व स्थूलशरीर को प्राप्त कराते हैं। इस प्रभु का हम बुद्धिपूर्वक कर्मों द्वारा स्तवन करते हुए आनन्द का अनुभव करें।

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    भाषार्थ

    (यः) जिसने हमारे लिए (पृथिवीम्) पृथिवी (उत) और (इमां द्याम्) यह द्युलोक (ससान) दिया है, उस (सत्रासाहम्) वस्तुतः पराक्रमशील, (वरेण्यम्) वरणीय, (सहोदाम्) बलप्रदाता, (स्वः) प्रकाश अथवा सूर्य और (देवीः अपः) दिव्यजलों के (ससवांसम्) प्रदाता (इन्द्रम्) परमेश्वर की, (धीरणासः) आध्यात्मिक-प्रज्ञा में रमण करनेवाले उपासक (अनु) निरन्तर (मदन्ति) स्तुतियाँ करते हैं।

    टिप्पणी

    [सत्रा=सत्यम् (निघं০ ३.१०)। स्वः=आदित्यः (निरु০ २.४.१४); स्वः=भासम् (निरु০ ५.३.१९)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indr a Devata

    Meaning

    People of intelligence, patience and intelligence may please and share the pleasure with Indra, lord of the world, who upholds truth and challenges untruth, who is worthy of choice, giver of strength and courage, who distinguishes between good and evil, and gives happiness, pranic energy and divine bliss, and who creates, gives and shares the gifts and beauty of this earth and heaven with us.

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    Translation

    The men of high learnings find pleasure making accordant (in their uses) this mighty fire which is always conquering, excellent, might-giving and which gives light and luminous waters and who put into order this earth and heaven.

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    Translation

    The men of high learning’s find pleasure making accordant (in their uses) this mighty fire which is always conquering, excellent, might-giving and which gives light and luminous waters and who put into order this earth and heaven.

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    Translation

    The yogis, who revel in deep meditation, enjoy the bliss after the peace showering God, Who sustains thirvast earth and the heavens, overpowers all with His lonely might, is worthy of choice by all, the Giver of all powers, and is the maintainer of the celestial bodies and the divine actions and laws for regulating them.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(सत्रासाहम्) यः सत्रा सत्यानि सहते तम् (वरेण्यम्) स्वीकरणीयम् (सहोदाम्) बलस्य दातारम् (ससवांसम्) षणु दाने-क्वसु। दत्तवन्तम् (स्वः) सुखम् (अपः) प्राणान् (च) (देवीः) दिव्याः (ससान) षण सम्भक्तौ-लिट्। सेवितवान्। उपयुक्तवान् (यः) इन्द्रः (पृथिवीम्) भूमिम्। भूमिस्थपदार्थानित्यर्थः (द्याम्) आकाशम्। आकाशस्थपदार्थानित्यर्थः (उत) अपि च (इमाम्) दृश्यमानाम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं पुरुषम् (मदन्ति) हृष्यन्ति (अनु) अनुसृत्य (धीरणासः) धीः प्रज्ञानाम-निघ० ३।९। रणः संग्रामनाम-निघ० २।१७। असुगागमः। धीभ्यः प्रशस्तप्रज्ञाभ्यो रणः सङ्ग्रामो येषां ते ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (যঃ) যে [বীর] (ইমাম্) এই (পৃথিবীম্) পৃথিবী (উত) এবং (দ্যাম্) আকাশের (সসান) উপযুক্ত/সেবা করেছে, [সেই] (সত্রাসাহম্) সত্য গ্রহণকারী, (বরেণ্যম্) স্বীকারযোগ্য, (সহোদাম্) শক্তি প্রদানকারী, (স্বঃ) সুখ (চ) এবং (দেবীঃ) উত্তম (অপঃ) প্রাণসমূহ (সসবাংসম্) প্রদানকারী, (ইন্দ্রম্) ইন্দ্র [মহাপ্রতাপী বীর] এর (অনু) অনুকরণে/অনুরূপ (ধীরণাসঃ) উত্তম বুদ্ধির জন্য যোদ্ধা (মদন্তি) সুখ লাভ/প্রাপ্ত করে ॥৮॥

    भावार्थ

    যে বিদ্বান পুরুষ পৃথিবী এবং আকাশের পদার্থ থেকে বিদ্যা দ্বারা উপকৃত হয়, সেই সত্যবাদীর অনুসরণ করে, সকল সত্যকর্মী বীরগণ আনন্দ লাভ করে ॥৮॥

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    भाषार्थ

    (যঃ) যিনি আমাদের জন্য (পৃথিবীম্) পৃথিবী (উত) এবং (ইমাং দ্যাম্) এই দ্যুলোক (সসান) প্রদান করেছেন, সেই (সত্রাসাহম্) বস্তুতঃ পরাক্রমশীল, (বরেণ্যম্) বরণীয়, (সহোদাম্) বলপ্রদাতা, (স্বঃ) প্রকাশ অথবা সূর্য এবং (দেবীঃ অপঃ) দিব্যজল (সসবাংসম্) প্রদাতা (ইন্দ্রম্) পরমেশ্বরের, (ধীরণাসঃ) আধ্যাত্মিক-প্রজ্ঞায় রমণকারী উপাসক (অনু) নিরন্তর (মদন্তি) স্তুতি করে।

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