अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 121/ मन्त्र 2
न त्वावाँ॑ अ॒न्यो दि॒व्यो न पार्थि॑वो॒ न जा॒तो न ज॑निष्यते। अ॑श्वा॒यन्तो॑ मघवन्निन्द्र वा॒जिनो॑ ग॒व्यन्त॑स्त्वा हवामहे ॥
स्वर सहित पद पाठन । त्वाऽवा॑न् । अ॒न्य: । दि॒व्य: । न । पार्थि॑व: । न । जा॒त: । न । ज॒नि॒ष्य॒ते॒ ॥ अ॒श्व॒ऽयन्त॑: । म॒घ॒ऽव॒न् । इ॒न्द्र॒ । वा॒जिन॑: । ग॒व्यन्त॑: । त्वा॒ । ह॒वा॒म॒हे॒ ॥१२१.२॥
स्वर रहित मन्त्र
न त्वावाँ अन्यो दिव्यो न पार्थिवो न जातो न जनिष्यते। अश्वायन्तो मघवन्निन्द्र वाजिनो गव्यन्तस्त्वा हवामहे ॥
स्वर रहित पद पाठन । त्वाऽवान् । अन्य: । दिव्य: । न । पार्थिव: । न । जात: । न । जनिष्यते ॥ अश्वऽयन्त: । मघऽवन् । इन्द्र । वाजिन: । गव्यन्त: । त्वा । हवामहे ॥१२१.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(मघवन्) हे महाधनी (इन्द्र) इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मन्] (त्वावान्) तेरे समान (अन्यः) दूसरा कोई (न) न तो (दिव्यः) आकाश में रहनेवाला और (न) न (पार्थिवः) पृथिवी पर रहनेवाला है, और (न) न (जातः) उत्पन्न हुआ है, और (न) न (जनिष्यते) उत्पन्न होगा। (अश्वायन्तः) घोड़े चाहते हुए, (गव्यन्तः) भूमि चाहते हुए, (वाजिनः) वेगवाले हम (त्वा) तुझको (हवामहे) पुकारते हैं ॥२॥
भावार्थ
परमेश्वर से तुल्य वा अधिक बलवान् संसार में कोई नहीं है, इस प्रकार उसकी उपासना करके मनुष्य अपना वैभव बढ़ावें ॥२॥
टिप्पणी
२−(न) निषेधे (त्वावान्) त्वया सदृशः (अन्यः) भिन्नः कश्चित् (दिव्यः) दिवि आकाशे भवः (न) (पार्थिवः) पृथिव्यां विदितः (न) (जातः) उत्पन्नः (न) (जनिष्यते) उत्पत्स्यते (अश्वायन्तः) अश्वान् कामयमानाः (मघवन्) महाधनिन् (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (वाजिनः) वेगवन्तः (गव्यन्तः) गां भूमिमिच्छन्तः (त्वा) त्वाम् (हवामहे) आह्वयामः ॥
विषय
अद्वितीय प्रभु
पदार्थ
१. हे इन्द्र-परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! त्वावान्-आपके समान न अन्यः दिव्य: न तो कोई अन्य दिव्य सत्ता, न पार्थिवः न ही पार्थिव सत्ता न जात: न तो पैदा हुई है और न-न ही जनिष्यते-पैदा होगी। आप अद्वितीय हैं। २. हे मघवन्-ऐश्वर्यशालिन् प्रभो! अश्वायन्तः-उत्तम कर्मेन्द्रियों को प्राप्त करने की कामनावाले होते हुए, गव्यन्तः उत्तम ज्ञानेन्द्रियों की कामना करते हुए वाजिनः उत्तम शक्तिवाले होते हुए हम त्वा हवामहे-आपको ही पुकारते हैं। आपका आराधन ही हमें उत्तम इन्द्रियों व शक्ति को प्रास कराएगा।
भावार्थ
हम प्रात:-सार्य अद्वितीय प्रभु को ही पुकारते हैं। वे हमें उत्तम इन्द्रियों व शक्ति प्राप्त कराएंगे। उत्तम इन्द्रियों व शक्ति को प्राप्त करके ही हम सुखों का निर्माण करनेवाले 'शुन:शेप' बन सकेंगे। यह शुन:शेप ही अगले सूक्त का ऋषि है -
भाषार्थ
हे प्रभो! (त्वावान्) आपके सदृश (अन्यः) अन्य कोई द्युलोक का पदार्थ नहीं, (न) और न (पार्थिवः) पृथिवी का पदार्थ है। आपके सदृश (न जातः) न कोई पैदा हुआ है, और (न जनिष्यते) न कोई पैदा होगा। (मघवन् इन्द्र) हे सम्पत्तिशाली परमेश्वर! (वाजिनः) आप द्वारा शक्ति पाकर हम, (अश्वायन्तः) मानसिक बल और (गव्यन्तः) ऐन्द्रियिक शक्तियाँ चाहते हुए, (त्वा हवामहे) आपका आह्वान करते हैं।
टिप्पणी
[अश्व=मन। गौः=इन्द्रियां (उणादिकोष २.६८) रामलाल कपूर ट्रस्ट, बहालगढ़।]
इंग्लिश (4)
Subject
Indi a Devata
Meaning
There is none other like you, neither heavenly nor earthly, neither born nor yet to be born. O lord of power and glory, we invoke you and pray for veteran scholars, dynamic scientists and technologists and the light of the divine Word of knowledge.
Translation
O Lord of wealth, like you or as a parellel to you none terristrial and celestial has emerged and even will emerge. O Almighty Divinity, we desiring land and possessing might call you.
Translation
O Lord of wealth, like you or as a parallel to you none terrestrial and celestial has emerged and even will emerge. O Almighty Divinity, we desiring land and possessing might call you.
Translation
Let those females or the subjects, with whom we, being well-provided with food grams, riches etc., enjoy ourselves, being fortunate, possessing strength and wealth in plenty, revel themselves along with us in this fortunate household or nation.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(न) निषेधे (त्वावान्) त्वया सदृशः (अन्यः) भिन्नः कश्चित् (दिव्यः) दिवि आकाशे भवः (न) (पार्थिवः) पृथिव्यां विदितः (न) (जातः) उत्पन्नः (न) (जनिष्यते) उत्पत्स्यते (अश्वायन्तः) अश्वान् कामयमानाः (मघवन्) महाधनिन् (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (वाजिनः) वेगवन्तः (गव्यन्तः) गां भूमिमिच्छन्तः (त्वा) त्वाम् (हवामहे) आह्वयामः ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(মঘবন্) হে মহাধনী (ইন্দ্র) ইন্দ্র! [পরম্ ঐশ্বর্যবান্ পরমাত্মা] (ত্বাবান্) তোমার সমান (অন্যঃ) দ্বিতীয়/অন্য কেউ, (ন) না (দিব্যঃ) আকাশে আছে এবং (ন) না (পার্থিবঃ) পৃথিবীতে আছে, এবং (ন) না (জাতঃ) উৎপন্ন হয়েছে, এবং (ন) না (জনিষ্যতে) উৎপন্ন হবে। (অশ্বায়ন্তঃ) অশ্বাভিলাষী, (গব্যন্তঃ) ভূমি অভিলাষী, (বাজিনঃ) বেগবান আমরা (ত্বা) তোমাকে (হবামহে) আহবান করি ॥২॥
भावार्थ
পরমেশ্বরের তুল্য বা অধিক বলবান সংসারে কেউ নেই, এইভাবে পরমেশ্বরের উপাসনা করে মনুষ্য নিজেদের বৈভব বৃদ্ধি করুক ॥২॥
भाषार्थ
হে প্রভু! (ত্বাবান্) আপনার সদৃশ (অন্যঃ) অন্য কোনো দ্যুলোকের পদার্থ নেই, (ন) এবং না (পার্থিবঃ) পৃথিবীর পদার্থ আছে। আপনার সদৃশ (ন জাতঃ) না কিছু উৎপন্ন হয়েছে, এবং (ন জনিষ্যতে) না কিছু উৎপন্ন হবে। (মঘবন্ ইন্দ্র) হে সম্পত্তিশালী পরমেশ্বর! (বাজিনঃ) আপনার দ্বারা শক্তি প্রাপ্ত করে আমরা, (অশ্বায়ন্তঃ) মানসিক বল এবং (গব্যন্তঃ) ঐন্দ্রিয়িক শক্তি কামনা করে, (ত্বা হবামহে) আপনার আহ্বান করি।
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