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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 54 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 54/ मन्त्र 3
    ऋषिः - रेभः देवता - इन्द्रः छन्दः - उपरिष्टाद्बृहती सूक्तम् - सूक्त-५४
    10

    ने॒मिं न॑मन्ति॒ चक्ष॑सा मे॒षं विप्रा॑ अभि॒स्वरा॑। सु॑दी॒तयो॑ वो अ॒द्रुहो॑ऽपि॒ कर्णे॑ तर॒स्विनः॒ समृक्व॑भिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ने॒मिम् । न॒म॒न्त‍ि॒ । चक्ष॑सा । मे॒षम् । विप्रा॑: । अ॒भि॒ऽस्वरा॑ ॥ सु॒ऽदी॒तय॑:। व॒: । अ॒द्रुह॑: । अपि॑ । कर्णे॑ । त॒र॒स्विन॑: । सम् । ऋक्व॑ऽभि: ॥५४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नेमिं नमन्ति चक्षसा मेषं विप्रा अभिस्वरा। सुदीतयो वो अद्रुहोऽपि कर्णे तरस्विनः समृक्वभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नेमिम् । नमन्त‍ि । चक्षसा । मेषम् । विप्रा: । अभिऽस्वरा ॥ सुऽदीतय:। व: । अद्रुह: । अपि । कर्णे । तरस्विन: । सम् । ऋक्वऽभि: ॥५४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 54; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे मनुष्यो !] (विप्राः) बुद्धिमान् (सुदीतयः) बहुत प्रकाशवाले, (अद्रुहः) द्रोह न करनेवाले, (तरस्विनः) बड़े उत्साहवाले पुरुष (वः) तुम्हारे लिये (कर्णे) कान में (अपि) ही (अभिस्वरा) सब प्रकार से वाणी के साथ (ऋक्वभिः) स्तुतिवाले कर्मों द्वारा (नेमिम्) नेता (मेषम्) सुख से सींचनेवाले [वीर] को (चक्षसा) दर्शन के साथ (सम्) मिलकर (नमन्ति) झुकते हैं ॥३॥

    भावार्थ

    उत्साही बुद्धिमान् लोग प्रजा के सुख के लिये राजा को सुन्दर नियमों और सत्कार के साथ धर्मपथ का निवेदन करें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(नेमिम्) नियो मिः। उ० ४।४३। णीञ् प्रापणे-मि। नेतारम् (नमन्ति) नमस्कुर्वन्ति (चक्षसा) दर्शनेन (मेषम्) मिष सेचने-अच्। सुखस्य सेक्तारम् (विप्राः) मेधाविनः (अभिस्वरा) स्वृ शब्दोपतापयोः-विट्। अभिस्वरेण। सर्वतः शब्देन (सुदीतयः) पलोपः। शोभनदीप्तयः (वः) युष्मभ्यम् (अद्रुहः) अद्रोग्धारः (अपि) (कर्णे) श्रोत्रे (तरस्विनः) उत्साहिनः (सम्) संगत्य (ऋक्वभिः) अ० १८।१।४७। ऋच स्तुतौ-क्विप्, मत्वर्थे-वनिप्। स्तुतिमद्भिः कर्मभिः ॥

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    विषय

    अद्रुहः अपि कर्णे तरस्विनः

    पदार्थ

    १. (विप्रः) = ज्ञानी लोग (चक्षसा) = ज्ञान के हेतु से (नेमिम्) = सब शत्रुओं को झुका देनेवाले उस प्रभु को (नमन्ति) = नमस्कार करते हैं। (मेषम्) = सुखों से सिक्त करनेवाले उस प्रभुको (अभिस्वरा) = प्रात: सायं स्तवन के द्वारा [स्वृ शब्दे] [नमन्ति] नमस्कार करते हैं । २. ये स्तोता ब्राह्मण (व:) = तुम्हारे (सुदीतयः) = उत्तम दीपन करनेवाले होते हैं-स्वयं ज्ञानदीस होते हुए औरों के लिए ज्ञान देनेवाले होते हैं। (अद्रुहः) = किसी का द्रोह नहीं करते। (अपि) = द्रोहशून्य होते हुए भी कर्णे [कृविक्षेपे]-शत्रुओं के विक्षेपरूप कार्य में (ऋक्वभिः सम्) = ऋचाओं से-प्रभुस्तोत्रों से संगत हुए-हुए (तरस्विन:) = अतिशयेन वेगवान् होते हैं। द्रोहशून्य होते हुए भी ये लोग वासनाशून्य शत्रुओं को विनष्ट करने में सबसे तीव्र गतिवाले होते हैं।

    भावार्थ

    हम प्रभु का स्तवन करें। दीप्त व द्रोहशून्य जीवनवाले बनकर वासनारूप शत्रुओं को विकीर्ण करनेवाले हों। अगले सूक्त का ऋषि भी रेभ' ही है -

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    भाषार्थ

    (नेमिम्) जगद्रथ के नेमिरूप, तथा (मेघम्) आनन्दरसवर्षी परमेश्वर को, (चक्षसा) अन्तर्दृष्टि द्वारा साक्षात्कार कर लेने पर, (अभिस्वराः) स्वरपूर्वक परमेश्वरीय गान गानेवाले (विप्राः) मेधावी उपासक, (नमन्ति) नमस्कार करते हैं, और उसे अपनी ओर नमा लेते हैं, झुका लेते हैं। तथा हे अभिनव उपासको!—(सुदीतयः) अपने अविद्यादि क्लेशों को उत्तम प्रकार से क्षीण किये हुए (अपि) तथा (अद्रुहः) द्रोह आदि से रहित उच्च कोटि के उपासक—(तरस्विनः) उत्साहपूर्वक—(वः) तुम्हारे (कर्णे) कानों में (ऋक्वभिः) अर्चना के साधनभूत मन्त्रों द्वारा, (सम्) सम्यक् प्रकार से दीक्षा मन्त्र देते हैं। [सुदीतयः=सु+दीङ्क्षये+क्तिन्। मेषम्=मिष सेचने।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Wise and vibrant sages greet the heroic ruler, Indra, giver of showers of peace and joy, and with vision of the future bow to him as the central power and force of the nation’s wheel. O brilliant and inspired people free from jealousy and calumny, smart and bold in action, do him honour with laudable performance.

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    Translation

    O man, the man of learning who possess splendour and are freefrom all a deceits and swift in deeds and thought, who for your good can whisper the thing in ear bow down to the ruler who is the leader of country and the pourer of happiness with praises and vision.

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    Translation

    O man, the man of learning who possess splendor and are Free from all a deceits and swift in deeds and thought, who for your good can whisper the thing in ear bow down to the ruler who is the leader of country and the pourer of happiness with praises and vision.

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    Translation

    The learned persons, singing together with vision of knowledge and realisation, bow to Him, Who is worthy to be bowed to and is the Prime Mover, like the Sun. Similarly, O people, you, shunning malice in hearing good teaching and being thus enlightened and energised to activity, should pay your homage to Him with Vedic verses.

    Footnote

    Sayana’s interpretation of Medhatithi’s story is baseless and conjectured. मेष refers to the Sun constellation the year from the constellation of that name.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(नेमिम्) नियो मिः। उ० ४।४३। णीञ् प्रापणे-मि। नेतारम् (नमन्ति) नमस्कुर्वन्ति (चक्षसा) दर्शनेन (मेषम्) मिष सेचने-अच्। सुखस्य सेक्तारम् (विप्राः) मेधाविनः (अभिस्वरा) स्वृ शब्दोपतापयोः-विट्। अभिस्वरेण। सर्वतः शब्देन (सुदीतयः) पलोपः। शोभनदीप्तयः (वः) युष्मभ्यम् (अद्रुहः) अद्रोग्धारः (अपि) (कर्णे) श्रोत्रे (तरस्विनः) उत्साहिनः (सम्) संगत्य (ऋक्वभिः) अ० १८।१।४७। ऋच स्तुतौ-क्विप्, मत्वर्थे-वनिप्। स्तुतिमद्भिः कर्मभिः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাধর্মোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে মনুষ্যগণ !] (বিপ্রাঃ) বুদ্ধিমান্ (সুদীতয়ঃ) বহু প্রকাশযুক্ত, (অদ্রুহঃ) অদ্রোহী, (তরস্বিনঃ) অতীব উৎসাহী পুরুষ (বঃ) তোমাদের জন্য (কর্ণে) কর্ণে (অপি)(অভিস্বরা) সকল প্রকার বাণীর সহিত (ঋক্বভিঃ) স্তুতিযোগ্য কর্ম দ্বারা (নেমিম্) নেতা (মেষম্) সুখপূর্বক সীঞ্চনকারী [বীর] কে (চক্ষসা) দর্শনের সহিত (সম্) একত্রে (নমন্তি) নমন/নমস্কার করে ॥৩॥

    भावार्थ

    উৎসাহী বুদ্ধিমান্ পুরুষ প্রজাদের সুখের জন্য রাজাকে উত্তম নিয়ম-নীতি এবং সৎকারপূর্বক ধর্মপথ প্রদর্শন করেন ॥৩॥

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    भाषार्थ

    (নেমিম্) জগৎ-রথের নেমিরূপ, তথা (মেঘম্) আনন্দরসবর্ষী পরমেশ্বরকে, (চক্ষসা) অন্তর্দৃষ্টি দ্বারা সাক্ষাৎকার করলে, (অভিস্বরাঃ) স্বরপূর্বক পরমেশ্বরীয় গানকারী/গানের গায়ক (বিপ্রাঃ) মেধাবী উপাসক, (নমন্তি) নমস্কার করে, এবং উহাকে নিজের দিকে নত করে। তথা হে অভিনব উপাসকগণ!—(সুদীতয়ঃ) নিজের অবিদ্যাদি ক্লেশ-সমূহ উত্তম প্রকারে ক্ষীণকারী (অপি) তথা (অদ্রুহঃ) দ্রোহাদি রহিত উচ্চ কোটির উপাসক— (তরস্বিনঃ) উৎসাহপূর্বক—(বঃ) তোমাদের (কর্ণে) কর্ণে (ঋক্বভিঃ) অর্চনার সাধনভূত মন্ত্র-সমূহ দ্বারা, (সম্) সম্যক্ প্রকারে দীক্ষা মন্ত্র দেয়। [সুদীতয়ঃ=সু+দীঙ্ক্ষয়ে+ক্তিন্। মেষম্=মিষ সেচনে।]

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