अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 80/ मन्त्र 2
त्वामु॒ग्रमव॑से चर्षणी॒सहं॒ राज॑न्दे॒वेषु॑ हूमहे। विश्वा॒ सु नो॑ विथु॒रा पि॑ब्द॒ना व॑सो॒ऽमित्रा॑न्सु॒षहा॑न्कृधि ॥
स्वर सहित पद पाठत्वाम् । उ॒ग्रम् । अव॑से । च॒र्ष॒णि॒ऽसह॑म् । राज॑न् । दे॒वेषु॑ । हू॒म॒हे॒ ॥ विश्वा॑ । सु । न॒: । वि॒थु॒रा । पि॒ब्द॒ना । व॒सो॒ इति॑ । अ॒मित्रा॑न् । सु॒ऽसहा॑न् । कृ॒धि॒ ॥८०.२॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वामुग्रमवसे चर्षणीसहं राजन्देवेषु हूमहे। विश्वा सु नो विथुरा पिब्दना वसोऽमित्रान्सुषहान्कृधि ॥
स्वर रहित पद पाठत्वाम् । उग्रम् । अवसे । चर्षणिऽसहम् । राजन् । देवेषु । हूमहे ॥ विश्वा । सु । न: । विथुरा । पिब्दना । वसो इति । अमित्रान् । सुऽसहान् । कृधि ॥८०.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(राजन्) हे राजन् ! (देवेषु) विद्वानों में (अवसे) रक्षा के लिये (उग्रम्) तेजस्वी, (चर्षणीसहम्) मनुष्यों को वश में रखनेवाले (त्वाम्) तुझको (हूमहे) हम पुकारते हैं। (वसो) हे बसानेवाले ! (नः) हमारे (विश्वा) सब (विथुरा) क्लेशों को (पिब्दना) खण्डनयोग्य और (अमित्रान्) वैरियों को (सुसहान्) सहज में हारने योग्य (सु) सर्वथा (कृधि) कर ॥२॥
भावार्थ
राजा सदा ऐसा उपाय करे कि जिससे प्रजा के सब बाहिरी और भीतरी क्लेश दूर होवें ॥२॥
टिप्पणी
२−(त्वाम्) (उग्रम्) तेजस्विनम् (अवसे) रक्षणाय (चर्षणीसहम्) मनुष्याणां सोढारम्। अभिभवितारं वशीकर्तारम् (राजन्) ऐश्वर्यवन् (देवेषु) विद्वत्सु (हूमहे) आह्वयामः (विश्वा) सर्वाणि (सु) सर्वथा (नः) अस्माकम् (विथुरा) अ० ७।९।१। व्यथ ताडने-उरच्, कित्। व्यथनानि। क्लेशान् (पिब्दना) कॄपॄवृजिमन्दिनिधाञः क्युः। उ० २।८१। अपि+दाप् लवने दो अवखण्डने वा क्यु। आतो लोप इटि च। पा० ६।४।६४। आकारलोपः, बकारोपजनः। अपिदनानि। अवखण्डनीयानि (वसो) हे वासयितः (अमित्रान्) शत्रून् (सुसहान्) सुखेन अभिभवनीयान् (कृधि) कुरु ॥
विषय
शत्रु-विजय
पदार्थ
१. हे (देवेषु राजन्) = सूर्य आदि सब देवों में दीप्त होनेवाले, अर्थात् सूर्य आदि को दीप्ति प्राप्त करानेवाले प्रभो! (उग्रम्) = तेजस्वी (चर्षणीसहम्) = शत्रुओं का अभिभव करनेवाले (त्वाम्) = आपको (अवसे) = रक्षण के लिए (हूमहे) = हम पुकारते हैं। आपकी शक्ति व दीति से ही तो हमारा रक्षण होना है। २. हे (वसो) = हमारे निवास को उत्तम बनानेवाले प्रभो! (न:) = हमारे (विश्वा पिब्दना) = सब [पेष्टुमहाणि शत्रुसैन्यानि] पीस देने योग्य शत्रुओं को (सुविथुरा) = अच्छी प्रकार व्यथित व बाधित (कृधि) = कीजिए। (अमित्रान्) = हमारे शत्रुभूत जनों को (सुषहान्) = सुगमता से जीते जाने योग्य कीजिए। हम शत्रुओं को सुगमता से जीत सकें।
भावार्थ
हम प्रभु की उपासना करते हैं। प्रभु हमारे लिए शत्रुओं को पराजित करते हैं। प्रभु की उपासना से शत्रुओं का खूब ही हनन करता हुआ यह व्यक्ति 'पुरुहन्मा' बनता है। यही अगले सूक्त का ऋषि है -
भाषार्थ
(राजन्) हे ब्रह्माण्ड के राजा! (देवेषु) सब देवों में केवल (त्वाम्) आप को ही, (अवसे) आत्मरक्षार्थ (हूमहे) हम पुकारते हैं, क्योंकि आप ही सब देवों में (उग्रम्) सर्वोच्च तथा श्रेष्ठ हैं, और (चर्षणीसहम्) मनुष्यजाति पर आप का ही प्रभाव छाया हुआ है। (वसो) हे विश्ववासीन्! (नः) हमारे लिए आप (सुकृधि) यह सुगमता कर दीजिए कि हम (विथुराः) व्यथादायी, (पिब्दनाः) हमारी शक्तियों को पी जाने में दानव-स्वरूप, (विश्वा अमित्रान्) शत्रुभूत सब कामादि का (सुषहान्) सुगमता से पराभव कर सकें।
टिप्पणी
[उग्रम् = High, noble (आप्टे)।]
इंग्लिश (4)
Subject
lndra Devata
Meaning
For our defence and protection, O ruler, of all the brilliant, generous and mighty powers, we invoke you, illustrious challenger of the enemies of humanity. O lord giver of peace and settlement in security, crush and scatter the obdurate negative forces within and outside, and turn the opponents into friends and unquestionable supporters.
Translation
O Ruling one, we among the learned men call for succour to you mighty and ruler ofthe men. O giver of room to all you turn our troubles to pieces and make our fue-men easy to win.
Translation
O Ruling one, we among the learned men call for succour to you mighty and ruler of the men. O giver of room to all you turn our troubles to pieces and make our foe-men easy to win.
Translation
O Effulgent Ruler of the World, we call Thee for our protection as the most Terrible amongst the divine forces and the Controller of all the worlds and the people. O Settlers of all, let all the trouble-creators be silenced and all enemies be easily conquered by us.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(त्वाम्) (उग्रम्) तेजस्विनम् (अवसे) रक्षणाय (चर्षणीसहम्) मनुष्याणां सोढारम्। अभिभवितारं वशीकर्तारम् (राजन्) ऐश्वर्यवन् (देवेषु) विद्वत्सु (हूमहे) आह्वयामः (विश्वा) सर्वाणि (सु) सर्वथा (नः) अस्माकम् (विथुरा) अ० ७।९।१। व्यथ ताडने-उरच्, कित्। व्यथनानि। क्लेशान् (पिब्दना) कॄपॄवृजिमन्दिनिधाञः क्युः। उ० २।८१। अपि+दाप् लवने दो अवखण्डने वा क्यु। आतो लोप इटि च। पा० ६।४।६४। आकारलोपः, बकारोपजनः। अपिदनानि। अवखण्डनीयानि (वसो) हे वासयितः (अमित्रान्) शत्रून् (सुसहान्) सुखेन अभिभवनीयान् (कृधि) कुरु ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(রাজন্) হে রাজন্ ! (দেবেষু) বিদ্বানদের মধ্যে (অবসে) রক্ষার জন্য (উগ্রম্) তেজস্বী, (চর্ষণীসহম্) মনুষ্যদের বশকারী, নিয়ন্ত্রণকারী (ত্বাম্) তোমাকে (হূমহে) আমরা আহ্বান করছি। (বসো) হে নিবাস প্রদানকারী ! (নঃ) আমাদের (বিশ্বা) সকল (বিথুরা) ক্লেশ (পিব্দনা) খণ্ডনযোগ্য এবং (অমিত্রান্) শত্রুদের (সুসহান্) সহজে দমনযোগ্য (সু) সর্বদা (কৃধি) করো ॥২॥
भावार्थ
রাজা সর্বদা এমন ব্যবস্থা করবে যেন প্রজার সকল বাহ্যিক এবং অভ্যন্তরীণ ক্লেশ দূর হয়। ॥২॥
भाषार्थ
(রাজন্) হে ব্রহ্মাণ্ডের রাজা! (দেবেষু) সব দেবতাদের মধ্যে কেবল (ত্বাম্) আপনাকেই, (অবসে) আত্মরক্ষার্থে (হূমহে) আমরা আহ্বান করি, কেননা আপনিই সকল দেবতাদের মধ্যে (উগ্রম্) সর্বোচ্চ তথা শ্রেষ্ঠ, এবং (চর্ষণীসহম্) মনুষ্যজাতির ওপর আপনারই প্রভাব বিস্তৃত। (বসো) হে বিশ্ববাসীন্! (নঃ) আমাদের জন্য আপনি (সুকৃধি) এই সুগমতা/সুব্যবস্থা করুন যাতে আমরা (বিথুরাঃ) ব্যথাদায়ী, (পিব্দনাঃ) আমাদের শক্তি পানকারী দানব-স্বরূপ, (বিশ্বা অমিত্রান্) শত্রুভূত সব কামাদিকে (সুষহান্) সুগমতাপূর্বক পরাজিত করতে পারি।
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