अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 20/ मन्त्र 7
ऋषिः - वसिष्ठः
देवता - अर्यमा, बृहस्पतिः, इन्द्रः, वातः, विष्णुः, सरस्वती, सविता, वाजी
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - रयिसंवर्धन सूक्त
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अ॑र्य॒मणं॒ बृह॒स्पति॒मिन्द्रं॒ दाना॑य चोदय। वातं॒ विष्णुं॒ सर॑स्वतीं सवि॒तारं॑ च वा॒जिन॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒र्य॒मण॑म् । बृह॒स्पति॑म् । इन्द्र॑म् । दाना॑य । चो॒द॒य॒ । वात॑म् । विष्णु॑म् । सर॑स्वतीम् । स॒वि॒तार॑म् । च॒ । वा॒जिन॑म् ॥२०.७॥
स्वर रहित मन्त्र
अर्यमणं बृहस्पतिमिन्द्रं दानाय चोदय। वातं विष्णुं सरस्वतीं सवितारं च वाजिनम् ॥
स्वर रहित पद पाठअर्यमणम् । बृहस्पतिम् । इन्द्रम् । दानाय । चोदय । वातम् । विष्णुम् । सरस्वतीम् । सवितारम् । च । वाजिनम् ॥२०.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पदार्थ
[हे ईश्वर !] (अर्यमणम्) वैरियों के रोकनेवाले राजा, (बृहस्पतिम्) बड़े बड़ों के रक्षक गुरु और (इन्द्रम्) बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष और (वातम्) पवन, (विष्णुम्) यज्ञ, (च) और (वाजिनम्) वेगवाले, वा अन्नवाले, वा बलवाले (सवितारम्) लोकों के चलानेवाले सूर्य से (सरस्वतीम्) विज्ञानों के भण्डार सरस्वती, वेदविद्या को (दानाय) दान के लिये (चोदय) प्रवृत्त कर ॥७॥
भावार्थ
ईश्वरभक्त (अर्यमा) राजा वा सेनापति, (बृहस्पति) प्रधान आचार्य और (इन्द्र) दण्डनेता वा कोषाध्यक्ष आदि अधिकारी अपने-२ पदों पर दृढ़ रहकर पवन, सूर्य, अग्नि, जल, पृथिवी आदि अद्भुत पदार्थों द्वारा वेदविज्ञान फैलावें ॥७॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद अ० ९ म० २७ में है ॥ मनु महाराज ने लिखा है−सैनापत्यं च राज्यं च दण्डनेतृत्वमेव च। सर्वलोकाधिपत्यं च वेदशास्त्रविदर्हति ॥ मनु० १२।१० ॥ वेद शास्त्र का जाननेवाला पुरुष, सेनापति के पद, राजा के पद, और दण्डदाता के पद और सब लोगों पर आधिपत्य [चक्रवर्ति राज्य] के योग्य होता है ॥७॥
टिप्पणी
७−(अर्यमणम्) म० ३। अरिनियन्तारम्। (बृहस्पतिम्) म०। बृहतां पालकम्। (इन्द्रम्) ऐश्वर्यवन्तं पुरुषम्। (दानाय) त्यागाय। (चोदय) नय। प्रवर्त्तय। अस्य धातोः-णीञ् इत्यतेन सह अर्थनिबन्धनायां द्विकर्मकत्वम्। अकथितं च। पा० १।४।५१। इति अर्यमणमादीनां सप्तपदानाम् अपादाने कर्मत्वम्। (वातम्) पवनम्। (विष्णुम्) म० ४। यज्ञम्। (सरस्वतीम्) सरोभिर्विज्ञानैर्युक्तां वेदविद्याम्। (सवितारम्) अ० १।१८।२। लोकानां प्रेरकम् (वाजिनम्) अ० १।४।४। वाज-इनि। वेगवन्तम्। अन्नवन्तम्। बलवन्तम् ॥
विषय
अर्यमा से सविता' तक
पदार्थ
१. हे प्रभो! (अर्यमणम्) = [अरीन् यच्छति] शत्रुओं के नियमन की देवता को, (बृहस्पतिम्) = ज्ञान की अधिष्ठातृदेवता को, (इन्द्रम्) = जितेन्द्रियता की देवता को (दानाय चोदय) = दान के लिए प्रेरित कीजिए। हम भी अर्यमा, बृहस्पति व इन्द्र बन जाएँ। हम काम-क्रोध का नियमन करनेवाले हों, ज्ञान का सम्पादन करें व जितेन्द्रिय बनें। २. (वातम्) = [वा गती] क्रियाशीलता की देवता को, (विष्णम्) = [विष् व्याप्तौ] व्यापकता की देवता को, (सरस्वतीम्) = ज्ञान की देवता को (च) = और (वाजिनम्) = सब शक्तियों के अधिष्ठान (सवितारम्) = शक्तियों के जनक सूर्य को दान के लिए प्रेरित कीजिए। ये सब देव हमें भी क्रियाशील, उदार, ज्ञानी व शक्तिशाली बनाएँ।
भावार्थ
प्रभु के अनुग्रह से हम शत्रुओं को वश में करनेवाले, ज्ञानप्रधान जीवनवाले व जितेन्द्रिय बनें। हम क्रियाशील, उदार, ज्ञानी व शक्ति का संग्रह करनेवाले हों।
भाषार्थ
[हे अग्नि! मन्त्र ५], (अर्यमणम्) अरियों के नियन्ता को, (बृहस्पतिम्) राष्ट्र को बृहती-सेना के अधिपति को, (इन्द्रम्) सम्राट् को, (वातम्) वायुमंडल के अधिपति को, (विष्णुम्) वनों तथा ओषधियों के अधिपति को, (सरस्वतीम्) ज्ञानाधिपति महिला को, (च) तथा (वाजिनम् सवितारम्) अन्न के अधिष्ठाता अन्नोत्पादन के अधिपति को (दानाय चोदय) दान देने के लिए प्रेरित कर।
टिप्पणी
[राष्ट्र के सब अधिकारियों को राष्ट्रोन्नति के लिए दान देने में प्रेरणा की प्रार्थना अग्नि नामक परमेश्वर से की गई है। अर्यमा=अदीन् नियच्छतीति (निरुक्त ११।३।२३), अदिति पद की व्याख्या में। अर्यमा है सेनाध्यक्ष और बृहस्पति है राष्ट्र की वृहती-सेना-का अधिपति। विष्णु:= "ध्रुवां दिग् विष्णुरधिपतिः कल्माषग्रीवो रक्षिता वीरुध इषवः" (अथर्व० ३।२७।५)। सरस्वती= सरो विज्ञानं वा विद्यतेऽस्यां सा [वाक्] (उणा० ४।१९०; दयानन्द)। यह महिला है जो कि शिक्षा की अधिकारिणी है। वाजिनम्, सवितारम्= वाजः अन्ननाम (निघं० २।७); सविता है अन्नोत्पादन अर्थात् कृषि का अधिकारी। षु प्रसवैश्वर्ययोः (भ्वादि:)। अर्यमा आदि के आधिभौतिक स्वरूपों के प्रदर्शन में यथातथा प्रयत्न हुआ है। मन्त्र ७वाँ वाज प्रसव के सम्बन्ध में है। इस प्रकार मन्त्र १ और ७ में परस्पर सम्बन्ध दर्शाया है।]
विषय
ईश्वर से उत्तम ऐश्वर्य और सद्गुणों की प्रार्थना ।
भावार्थ
हे परमात्मन् ! आप (अर्यमणम्) न्यायकारी प्रजा के नियन्ता को, (बृहस्पतिम्) वेद के परिपालक विद्वान् को और (इन्द्रम्) ऐश्वर्यशील राजा को (दानाय) हमारे इष्ट धनादि सामर्थ्य दान करने के लिये (चोदय) प्रेरित कर । इसी प्रकार (वातम्) सब के प्रेरक प्राणरूप वायु (विष्णुम्) यज्ञ, (सरस्वतीम्) सर्व रसमय ज्ञानमय वेद वाणी और (वाजिनम्) बल, ज्ञान और अन्न के दाता (सवितारम्) सूर्य को भी प्रेरित करे कि वे हमें अपनी शक्तियों से बलवान् करें।
टिप्पणी
(तृ०) ‘वाचं विष्णु’। इति यजु०॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः । अग्निर्वा मन्त्रोक्ता नाना देवताः। १-५, ७, ९, १० अनुष्टुभः। ६ पथ्या पंक्तिः। ८ विराड्जगती। दशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Man’s Self-development
Meaning
O Agni, lord self-refulgent, inspire Aryama, powers of justice, rectitude and leadership, Brhaspati, scholars and teachers of divine knowledge about life and the world, Indra, lord ruler and controller of the nation’s powers, inspire and energise them to be moving in the direction of charity and liberality. Also inspire and energise Vata, air and pranic energy, Vishnu, the nation’s spirit of yajna, joint creativity and united action, Sarasvati, spirit of knowledge, education and enlightened motherly women, Savita, spirit of inspired productivity and enlightenment, and Vajin, those who produce and control food and other powers of society so that the nation may be one, united, powerful and generous.
Subject
Aryaman
Translation
(With your prayers) ‘urge the ordainer Lord (aryaman) the Lord supreme (brhaspati) the resplendent Lord (indra), Lord of motion (vātam), the omnipresent Lord (Visņu), the speech divine (sarasvati)' and the quick inspirer Lord (savitr vājinam) to favour us with bountiful donations. (CE. Rv. X.141.5)
Translation
O’ Divine power; please incite courage in Aryaman, the man of Justice, Brihaspati, the man of great learning, Indra, the man of majestie power, Vata, the map of inspiring initiative, Vishnu, the man of sharp understanding, Sarasvati the lady of unique dexterity, Savitar, the man of strength to give us happiness.
Translation
O God, urge a just leader, a vedic scholar a mighty king the vital breath, sacrifice (Yajna) vedic speeches, and the powerful Sun, to grant us strength!
Footnote
See Yajur, 9-27.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−(अर्यमणम्) म० ३। अरिनियन्तारम्। (बृहस्पतिम्) म०। बृहतां पालकम्। (इन्द्रम्) ऐश्वर्यवन्तं पुरुषम्। (दानाय) त्यागाय। (चोदय) नय। प्रवर्त्तय। अस्य धातोः-णीञ् इत्यतेन सह अर्थनिबन्धनायां द्विकर्मकत्वम्। अकथितं च। पा० १।४।५१। इति अर्यमणमादीनां सप्तपदानाम् अपादाने कर्मत्वम्। (वातम्) पवनम्। (विष्णुम्) म० ४। यज्ञम्। (सरस्वतीम्) सरोभिर्विज्ञानैर्युक्तां वेदविद्याम्। (सवितारम्) अ० १।१८।२। लोकानां प्रेरकम् (वाजिनम्) अ० १।४।४। वाज-इनि। वेगवन्तम्। अन्नवन्तम्। बलवन्तम् ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
[হে অগ্নি ! মন্ত্র ৫], (অর্যমণম্) শত্রুদের নিয়ন্তাকে, (বৃহস্পতিম্) রাষ্ট্রের বৃহতী-সেনার অধিপতিকে, (ইন্দ্রম্) সম্রাট্কে, (বাতম্) বায়ুমন্ডলের অধিপতিকে, (বিষ্ণুম্) অরণ্যাদি ও ঔষধির অধিপতিকে, (সরস্বতীম্) জ্ঞানাধিপতি মহিলাকে, (চ) এবং (বাজিনম্ সবিতারম্) অন্নের অধিষ্ঠাতা অন্নোৎপাদনের অধিপতিকে (দানায় চোদয়) দান দেওয়ার জন্য প্রেরিত করো।
टिप्पणी
[রাষ্ট্রের সমস্ত অধিকারীদের রাষ্ট্রোন্নতির জন্য দান দেওয়ার ক্ষেত্রে প্রেরণার প্রার্থনা অগ্নি নামক পরমেশ্বরের প্রতি করা হয়েছে। অর্যমা=অদীন্ নিযচ্ছতীতি (নিরুক্ত ১১।৩।২৩), অদিতি পদের ব্যাখ্যায়। অর্যমা হলো সেনাধ্যক্ষ এবং বৃহস্পতি হলো রাষ্ট্রের বৃহতী-সেনার অধিপতি। বিষ্ণুঃ="ধ্রুবা দিগ্ বিষ্ণুরধিপতিঃ কল্মাষগ্রীবো রক্ষিতা বীরুধ ইষবঃ” (অথর্ব০ ৩।২৭।৫)। সরস্বতী=সরো বিজ্ঞানং বা বিদ্যতেঽস্যাং সা [বাক্] (উণা০ ৪।১৯০; দয়ানন্দ)। এই মহিলা যে, শিক্ষার অধিকারিণী। বাজিনম্, সবিতারম্=বাজঃ অন্ননাম (নিঘং০ ২।৭); সবিতা হলো অন্নোৎপাদন অর্থাৎ কৃষির অধিকারী। ষু প্রসবৈশ্বর্যযোঃ (ভ্বাদিঃ)। অর্যমা আদির আধিভৌতিক স্বরূপের প্রদর্শনে যথাতথা চেষ্টা হয়েছে। মন্ত্র ৭ম বাজ-এর প্রসবের সম্বন্ধে। এইভাবে মন্ত্র ১ এবং ৭ এর মধ্যে পরস্পর সম্বন্ধ দর্শানো হয়েছে।]
मन्त्र विषय
ব্রহ্মজ্ঞানোপদেশঃ
भाषार्थ
[হে ঈশ্বর !] (অর্যমণম্) শত্রুদের প্রতিরোধকারী রাজা, (বৃহস্পতিম্) বৃহৎ-মহৎ-এর রক্ষক গুরু এবং (ইন্দ্রম্) পরম ঐশ্বর্যবান পুরুষ ও (বাতম্) পবন, (বিষ্ণুম্) যজ্ঞ, (চ) এবং (বাজিনম্) বেগবান, বা অন্নবান্, বা বলবান (সবিতারম্) লোক সঞ্চালক সূর্য দ্বারা (সরস্বতীম্) বিজ্ঞানের কোষাগার সরস্বতী, বেদ বিদ্যাকে (দানায়) দানের জন্য (চোদয়) প্রবৃত্ত করো॥৭॥
भावार्थ
ঈশ্বর ভক্ত (অর্যমা) রাজা বা সেনাপতি, (বৃহস্পতি) প্রধান আচার্য এবং (ইন্দ্র) দণ্ডনেতা বা কোষাধ্যক্ষ আদি অধিকারী নিজেদের পদে দৃঢ় থেকে পবন, সূর্য, অগ্নি, জল, পৃথিবী আদি অদ্ভুত পদার্থ দ্বারা বেদবিজ্ঞান বিস্তার করুক ॥৭॥ এই মন্ত্র কিছু ভেদে যজুর্বেদ অ০ ৯ ম০ ২৭ এ রয়েছে॥ মনু মহারাজ লিখেছেন- সৈনাপত্যং চ রাজ্যং চ দণ্ডনেতৃত্বমেব চ। সর্বলোকাধিপত্যং চ বেদশাস্ত্রবিদর্হতি ॥ মনু০ ১২।১০০ ॥ বেদ শাস্ত্রজ্ঞ পুরুষ, সেনাপতির পদ, রাজার পদ, এবং দণ্ড দাতার পদ এবং সমস্ত মনুষ্যের ওপর আধিপত্য [চক্রবর্তী রাজ্য] এর যোগ্য হন ॥৭॥
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