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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 13 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 13/ मन्त्र 3
    ऋषिः - शन्तातिः देवता - चन्द्रमाः, विश्वे देवाः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रोग निवारण सूक्त
    1

    आ वा॑त वाहि भेष॒जं वि वा॑त वाहि॒ यद्रपः॑। त्वं हि वि॑श्वभेषज दे॒वानां॑ दू॒त ईय॑से ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । वा॒त॒ । वा॒हि॒ । भे॒ष॒जम् । वि । वा॒त॒ । वा॒हि॒ । यत् । रप॑: । त्वम् । हि । वि॒श्व॒ऽभे॒ष॒ज॒ । दे॒वाना॑म् । दू॒त: । ईय॑से ॥१३.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ वात वाहि भेषजं वि वात वाहि यद्रपः। त्वं हि विश्वभेषज देवानां दूत ईयसे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । वात । वाहि । भेषजम् । वि । वात । वाहि । यत् । रप: । त्वम् । हि । विश्वऽभेषज । देवानाम् । दूत: । ईयसे ॥१३.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 13; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    स्वास्थ्यरक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (वात) हे वायु ! (भेषजम्) स्वास्थ्य को (आ वाहि) वह कर ला और, (वात) हे वायु (यत् रपः= यत् रपः तत्) जो दोष है उसे (विवाहि) बह कर निकाल दे (हि) क्योंकि (विश्वभेषज) हे सर्वरोगनाशक वायु ! (त्वम्) तू (देवानाम्) इन्द्रियों, विद्वानों और सूर्यादि लोकों के बीच (दूतः) चलनेवाला वा दूत [समान सन्देश पहुँचानेवाला] होकर (ईयसे) फिरता रहता है ॥३॥

    भावार्थ

    वायु के संचार से शरीर का मल निकल कर स्वास्थ्य मिलता है और तार, विमान, ताप, वृष्टि आदि का संचार होता है ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(वात) हे वायो ! (आ वाहि) आवह। आगमय (भेषजम्) तस्येदम्। पा० ४।३।१२०। इथि भिषज्-अण्। निपातनाद् गुणः। भिषजो वैद्यस्येदम्। स्वास्थ्यम्। (वि वाहि) विगमय। विनाशय (यत्) यत्किञ्चित् (रपः) पापम्। दोषः (हि) यस्मात् कारणात् (विश्वभेषज) भेषं भयं जयतीति। जि-ड। सर्वव्याधिनिवर्तक वायो ! (देवानाम्) इन्द्रियाणां विदुषां सूर्यादीनां च मध्ये (दूतः) दुतनिभ्यां दीर्घश्च। उ० ३।९–०। इति दु गतौ उपतापे वा-कर्त्तरि क्त। गन्ता। यद्वा दूतवत्सन्देशहरः (ईयसे) ईङ् गतौ−श्यन्। संचरसि ॥

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    विषय

    दोष-निवारण

    पदार्थ

    १. हे (वात) = प्राणवायो ! तू (भेषजम्) = सर्वव्याधिनिवर्तक औषध को (आवाहि) = प्राप्त करा। हे (वात) = अपान वायो! (यत् रपः) = जो पाप व दोष व्याधि का निदान [कारण] है, उसे (विवाहि) = दूर कर । २. हे वायो ! (त्वं हि) = तू ही (विश्वभेषज) = सब व्याधियों का निवर्तक है। तू (देवानाम्) = सब इन्द्रियों का (दूत:) = दूत की भाँति समीपवर्ती होता हुआ उनके पोषण के लिए (ईयसे) = सारे शरीर को व्याप्त करके गतिवाला होता है, अत: हे विश्वभेषज वात! तू इन इन्द्रियों को निर्दोष बना।

    भावार्थ

    हम प्राणापान की साधना करते हुए सब इन्द्रियों को निर्दोष, नीरोग व सबल बनाएँ।

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    भाषार्थ

    (वात) हे वायु ! (भेषजम्) औषध को (आ वाहि) हमारी ओर प्रवाहित कर, (यत्) जो (रप:) पापरूप अशुद्धि है उसे (वि वाहि) हमसे पृथक् बहा ले-जा। (त्वम्) तू (हि) निश्चय से (विश्वभेषज) हे सब रोगों की औषध ! (देवानाम्) इन्द्रियों का (दूतः) उपतापी हुआ (ईयसे) गति करता है।

    टिप्पणी

    [भेषजम्=ऑक्सीजन (मन्त्र २)। देवानाम्= इन्द्रियाणाम् (सायण), कर्मेन्द्रियों तथा ज्ञानेन्द्रियों का। दूतः=टुदु उपतापे (स्वादिः)। ताप द्वारा जैसे धातुओं का मल क्षीण हो जाता है वैसे उपतापी प्रश्वासों द्वारा शरीरगत मल शुद्ध होता रहता है।]

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    विषय

    पतितोद्धार, शुद्धि और रोगनाशन।

    भावार्थ

    हे (वात) प्राणवायो ! (भेषजं) रोगविनाशक रस को (आवाहि) समस्त शरीर में, चारों ओर फैला। हे (वात) अपान वायो ! (यदु रपः) जो मलिन, व्याधिजनक कष्टदायी, पापयुक्त अंश हैं उसको (विवाह) बाहिर कर। हे (विश्वभेषज) समस्त प्राणियों के समस्त रोगों की एकमात्र चिकित्सा करने हारे ! (त्वं) तू (हि) निश्चय से (देवानां) देव = विद्वानों के एवं इन्द्रियों के लिये (दूतः) दूत के समान निरन्तर सर्वत्र गति करने या उनको उपताप देकर नीरोग करने वाला होकर ( ईयसे) उन में विचरण करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शंताति र्ऋषिः। चन्द्रमा उत विश्वे देवा देवताः। १-७ अनुष्टुभः। सप्तर्चं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Save the Life

    Meaning

    O prana, blow in the sanative energy that repairs and strengthens the body system with good health. O apana, blow out and throw away what is impure and polluted. O wind, you are the universal sanative, destroyer of ill-health, and you blow as messenger of the divinities, harbinger of good health and the joy of living.

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    Translation

    O wind, may you blow in the remedy here. O wind, may you blow out what is evil in him. You are verily the panacea for all ills and you move about as an envoy of the bounties of Nature. (Cf. Rg. X.137.3)

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    Translation

    Let this first one of the two breath blow healing balm throughout the body and the second other drive away whatever remains as disease, as this wind is the all medicine for all the creatures and blows like the messenger of all organs and limbs.

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    Translation

    O wind, bring health, drive away disease. O wind, medicine for all ailments, thou blowest for the protection of mankind as an envoy of the forces of nature!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(वात) हे वायो ! (आ वाहि) आवह। आगमय (भेषजम्) तस्येदम्। पा० ४।३।१२०। इथि भिषज्-अण्। निपातनाद् गुणः। भिषजो वैद्यस्येदम्। स्वास्थ्यम्। (वि वाहि) विगमय। विनाशय (यत्) यत्किञ्चित् (रपः) पापम्। दोषः (हि) यस्मात् कारणात् (विश्वभेषज) भेषं भयं जयतीति। जि-ड। सर्वव्याधिनिवर्तक वायो ! (देवानाम्) इन्द्रियाणां विदुषां सूर्यादीनां च मध्ये (दूतः) दुतनिभ्यां दीर्घश्च। उ० ३।९–०। इति दु गतौ उपतापे वा-कर्त्तरि क्त। गन्ता। यद्वा दूतवत्सन्देशहरः (ईयसे) ईङ् गतौ−श्यन्। संचरसि ॥

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