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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 19 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 19/ मन्त्र 5
    ऋषिः - शुक्रः देवता - अपामार्गो वनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अपामार्ग सूक्त
    1

    वि॑भिन्द॒ती श॒तशा॑खा विभि॒न्दन्नाम॑ ते पि॒ता। प्र॒त्यग्वि भि॑न्धि॒ त्वं तं यो अ॒स्माँ अ॑भि॒दास॑ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒ऽभि॒न्द॒ती । श॒तऽशा॑खा । वि॒ऽभि॒न्दन् । नाम॑ । ते॒ । पि॒ता । प्र॒त्यक् । वि । भि॒न्धि॒ । त्वम् । तम् । य: । अ॒स्मान् । अ॒भि॒ऽदास॑ति ॥१९.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विभिन्दती शतशाखा विभिन्दन्नाम ते पिता। प्रत्यग्वि भिन्धि त्वं तं यो अस्माँ अभिदासति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विऽभिन्दती । शतऽशाखा । विऽभिन्दन् । नाम । ते । पिता । प्रत्यक् । वि । भिन्धि । त्वम् । तम् । य: । अस्मान् । अभिऽदासति ॥१९.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 19; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे राजन् !] (विभिन्दती) रोगों को छिन्न-भिन्न करनेवाली (शतशाखा) सैकड़ों शाखावाली [ओषधि के समान] (विभिन्दन्) शत्रुओं को छिन्न-भिन्न करनेवाला (नाम) प्रसिद्ध (ते) तेरा (पिता) पिता है। (त्वम्) तू भी (प्रत्यक्) लौटाकर (तम्) उसको (वि भिन्धि) छिन्न-भिन्न करदे, (यः) जो (अस्मान्) हमको (अभिदासति) सताता रहता है ॥५॥

    भावार्थ

    शूरवीर पिता का पुत्र भी अपने पिता के तुल्य शूरवीर होकर वैरियों का नाश करता है ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(विभिन्दती) भिदिर् विदारणे-शतृ। रोदविदारणशीला (शतशाखा) बहुशाखायुक्ता यथौषधिः (विभिन्दन्) शत्रूणां विभेदकः। विदारणशक्तिः (नाम) प्रसिद्धः (ते) तव (पिता) पालकः। जनकः (प्रत्यक्) प्रतिगमनेन प्रतिनिवार्य (वि भिन्धि) विदारय (त्वम्) हे राजन् (तम्) अस्मदीयं शत्रुम् (यः) शत्रुः (अस्मान्) धार्मिकान् (अभिदासति) दास वधे−वैदिकः। अभितो हिनस्ति ॥

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    विषय

    अपामार्ग-विभिन्दती

    पदार्थ

    १.हे अपामार्ग औषधे! (शतशाखा) = अपरिमित शाखाओंवाली होती हुई त (विभिन्दती) = विभेदनशीला है-रोगों का भेदन करनेवाली है, (ते) = तेरा (पिता) = उत्पादक भी तेरे द्वारा रोगों का भेदन करने के कारण विभिन्दन-विभेदक (नाम) = नामवाला है। २. अत: (त्वम) = तू (तम्) = उस हमारे शत्रुभूत रोग को (प्रत्यग) = उसकी और जाकर [प्रति अञ्च] उसपर आक्रमण करके (भिन्धि) = विदीर्ण कर, (य:) = जो रोग (अस्मान्) = हमें (अभिदासति) = उपक्षीण करता है। हमारा क्षय करनेवाले इन रोगों को तुझे ही नष्ट करना है।

    भावार्थ

    रोगों का भेदन करनेवाला अपामार्ग "विभिन्दती' है। यह हमारा भेदन करनेवाले रोग का भेदन करता है।

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    भाषार्थ

    (शतशाखा) हे औषधि ! तू सौ शाखाओंवाली है। (विभिन्दती) तू विविध असुरों तथा राक्षसों [मन्त्र ४, ३] का भेदन करती है, (ते पिता) तेरा पिता अर्थात् उत्पादक बीज भी (विभिन्दन् नाम) विभेदक प्रसिद्ध है, विविध असुरों तथा राक्षसों का भेदन करता है, हनन करता है। (यः) जो असुर तथा राक्षस (अस्मान् अभिदासति) हमारा उपक्षय करता है (तम्) उसे (त्वम्) तू (प्रत्यक) उसके प्रति गमन करके (वि भिन्धि) विविध रूप में छिन्न-भिन्न कर।

    टिप्पणी

    [अभि दासति=दसु उपक्षये (दिवादिः)। मन्त्र में अपामार्ग औषधि का वर्णन हुआ है (सायण)। परमेश्वर-भेषज१ पक्ष में सात्त्विक चित्तवृत्तियाँ हैं शतशाखारूपा, प्रतिदिन नानारूपों में प्रकटित अथवा सौ वर्षों की आयु तक फैली हुईं सात्त्विक वृत्तियाँ, ये विभिन्दती रूपा हैं। कामक्रोधादि असुरों की विभेदिका हैं। पिता है “तज्जपस्तदर्थभावनम्” (योग० १।२७, २८), अर्थात् प्रणव का जप तथा तदर्थ का भावन, चित्त में पुनः-पुनः उसका प्रवेश। इस द्वारा परमेश्वर-भेषज प्रकट होता है। प्रकट होकर वह असुरों और राक्षसों का छेदन-भेदन कर देता है, जोकि हमारा उपक्षय करते हैं।] [१. यजुः० ३।५९। मन्त्रोक्त असुर-राक्षस मानसिक विकार रूप हैं, विकृतियाँ हैं।]

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    विषय

    अपामार्ग-विधान का वर्णन।

    भावार्थ

    शत्रु के नाश के लिये ‘अपामार्ग-विधान’ में भेद उपाय का निरूपण करते हैं—हे अपामार्ग नाम विधान ! तू (शतशाखा) सैकड़ों शाखा वाला होकर (विभिन्दती) शत्रुओं में फोड़ डाला करता है, इसलिये (ते पिता) तेरा परिपालक राजा स्वयं (विभिन्दन्) शत्रु पक्ष में फूट डालने हारा होने से ‘भेद’ कारी है। अतः (त्वं) तू भी (तं) उसको (यः) जो (अस्मान्) हमको (अभिदासति) दास बनाना या प्रत्यक्ष रूप से या विरोध से विनाश करना चाहता है उसको (प्रत्यक्) प्रबलता से (वि भिन्धि) नाना प्रकार से फोड़ डाल।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुक्र ऋषिः। अपामार्गो वनस्पतिर्देवता। २ पथ्यापंक्तिः, १, ३-८ अनुष्टुभः। अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Apamarga:

    Meaning

    O Apamarga, hundred branched destroyer of disease, it is Nature’s force of survival and victory over negative forces in the evolutionary circuit that is your generator. So turn to those forces which seek to subdue and enslave us and destroy them in their natural course.

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    Translation

    You are a cleaver with your thousand branches, cleaver by name is your father, so, turning back, may you cleave him thoroughly who wants to enslave us.

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    Translation

    This possesses hundred branches which cleave .and destroy diseases. The seed which produces this is called as Vibhindan, the cleaver. Let this Apamarga turned backward cleave and rend that disease which attack us.

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    Translation

    O Apamarga, thou with hundred branches cleavest all diseases. Hence thy grower’s name is Cleaver. Do thou, turn backward, cleave and rend the disease that wants to make us its prey!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(विभिन्दती) भिदिर् विदारणे-शतृ। रोदविदारणशीला (शतशाखा) बहुशाखायुक्ता यथौषधिः (विभिन्दन्) शत्रूणां विभेदकः। विदारणशक्तिः (नाम) प्रसिद्धः (ते) तव (पिता) पालकः। जनकः (प्रत्यक्) प्रतिगमनेन प्रतिनिवार्य (वि भिन्धि) विदारय (त्वम्) हे राजन् (तम्) अस्मदीयं शत्रुम् (यः) शत्रुः (अस्मान्) धार्मिकान् (अभिदासति) दास वधे−वैदिकः। अभितो हिनस्ति ॥

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