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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 13 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 13/ मन्त्र 10
    ऋषिः - गरुत्मान् देवता - तक्षकः छन्दः - निचृद्गायत्री सूक्तम् - सर्पविषनाशन सूक्त
    1

    ता॒बुवं॒ न ता॒बुवं॒ न घेत्त्वम॑सि ता॒बुव॑म्। ता॒बुवे॑नार॒सं वि॒षम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ता॒बुव॑म् । न । ता॒बुव॑म् । न । घ॒ । इत् । त्वम् । अ॒सि॒ । ता॒बुव॑म् । ता॒बुवे॑न । अ॒र॒सम् । वि॒षम् ॥१३.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ताबुवं न ताबुवं न घेत्त्वमसि ताबुवम्। ताबुवेनारसं विषम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ताबुवम् । न । ताबुवम् । न । घ । इत् । त्वम् । असि । ताबुवम् । ताबुवेन । अरसम् । विषम् ॥१३.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 13; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    दोषनिवारण के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (ताबुवम्) वृद्धि करनेवाली वस्तु (ताबुवम्) पीड़ा देनेवाली वस्तु (न) नहीं होती, (त्वम्) तू [सर्प] (घ इत्) अवश्य ही (ताबुवम्) दुःखनाशक वस्तु (न) नहीं (असि) है। (ताबुवेन) हमारी वृद्धि करनेवाले कर्म से (विषम्) तेरा विष (अरसम्) निर्बल हो जावे ॥१०॥

    भावार्थ

    मनुष्य पुरुषार्थपूर्वक अपने दुष्ट भावों को नष्ट करे ॥१०॥

    टिप्पणी

    १०−(ताबुवम्) कृवापा०। उ० १।१। इति तु गतिवृद्धिहिंसासु−उण्+वा गतिगन्धनयोः−क। वृद्धिप्रापकं वस्तु (न) निषेधे (ताबुवम्) तु हिंसायाम्−उण्+वा गतौ−क। पीडाप्रापकं वस्तु (न) (घ) अवधारणे (इत्) एव (त्वम्) सर्पः (असि) (ताबुवम्) तु हिंसायाम्−उण्+वा गन्धने−क। दुःखनाशकं वस्तु (ताबुवेन) दुःखनाशकेन कर्मणा (अरसम्) निर्बलम् (विषम्) सरलम् ॥

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    विषय

    ताबुब-तस्तुव

    पदार्थ

    १. ताबुव शब्द [तु+इण, वा +क] तु तथा वा धातु से बना है। तु के अर्थ वृद्धि, गति व हिंसा है। 'वा' के गति तथा गन्धन [हिंसन]। इसप्रकार ताबुव का अर्थ है वृद्धि तथा हिंसा को प्राप्त करानेवाली। ताबुव एक ओषधि है। सर्प भी ताबुव है। वृद्धि को प्रास कराने से ओषधि 'ताबुव' है, हिंसा को प्राप्त कराने से सर्प ताबुव' है। (ताबुवम्) = यह ताबुव ओषधि (न ताबुवम्) = हिंसा को प्राप्त करानेवाली नहीं। हे सर्प! इस ओषधि के प्रयोग से (त्वम् घ इत्) = तू भी निश्चय से (न ताबुवम् असि) = हिंसा को प्राप्त करानेवाला नहीं रहता। (ताबुवेन) = इस ताबुव ओषधि से (विषम् अरसम्) = विष नि:सार हो जाता है। २. तस्तुव शब्द भी 'तस उपक्षये' तथा 'वा गतिगन्धनयोः' से बनता है। तस्तुव ओषधि उपक्षय का नाश करती है। सर्प भी तस्तुव है-यह उपक्षय को प्राप्त कराता है। (तस्तुवम्) = उपक्षय का विनाश करनेवाली यह तस्तुव ओषधि न तस्तुवम्-विनाश को पास करानेवाली नहीं। ३. हे सर्प ! इस (तस्तुवे) = तस्तुव औषधि का प्रयोग होने पर (घ इत्) = निश्चय से (त्वम्) = तू (तस्तुवं न असि) = उपक्षय को प्राप्त करानेवाला नहीं है। (तस्तुवेन) = इस तस्तुव ओषधि के प्रयोग से (विषम् अरसम्) = सर्प विष नि:सार हो जाता है।

    भावार्थ

    ताबुब व तस्तुव ओषधि के प्रयोग से सर्प-विष नि:सार हो जाता है।

    विशेष

    अपने को सर्प-विष आदि के भय से सुरक्षित करके अपने जीवन को शक्तिशाली बनानेवाला शुक्र अगले सूक्त का ऋषि है -

     

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    भाषार्थ

    [हे विषः ] (ताबुवम्) तू कर्मशक्तिप्रद तथा वृद्धिकारक है। [क्या?]; (न) नहीं है (ताबुवम्) तु कर्मशवितप्रद तथा वृद्धिकारक (घ इत्) निश्चय से ही (त्वम् ) तू (न असि) नहीं है (ताबुवम्) कमशक्तिप्रद तथा वृद्धिकारक (ताबुवेन) तुम्बे के द्वारा (अरसम्) नीरस हुआ है। (विषम्) विष ।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में सर्प के विष को सम्बोधित किया है तथा प्रश्न और उत्तर में वर्णन हुआ है । ताबुवम्='तु' गतिवृद्धिहिंसासु (अदादि:) + उ (औणादिक, णित)+ वृद्धि 'औ' को आव्; व (मतुबर्थे)। वकार को बकार (वैदिक)। ताबुवेन= "दशम्याऽलाबुनाऽऽचमयति" (कोशिक सुत्र २९, २-१४), तथा "अलाबुना अलाबुन्युदकं कृत्वा आचमयति विषव्याधितम्" (सायण)। अलाबु है कड़वा तूम्बा। उसमें जल डालकर [ जब जल कड़वा हो जाए, या कड़वे तूम्बे के रस को, पिलाने से सम्भवत: विष अरस हो जाता हो। यह परीक्षणीय है।]

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    विषय

    सर्प विष चिकित्सा।

    भावार्थ

    (ताबुवं ताबुवं न) ‘ताबुव’ नामक सर्प बस ‘ताबुव’ नाम ओषधि के समान ही है (त्वम् ताबुवं न घ इत् असि) पर तू ‘ताबुव’ भी नहीं है, क्योंकि (ताबुवेन) ‘ताबुव’ नामक ओषधि से (ते विषम् अरसम्) तेरा विष भी निर्बल होजाता है। ‘ताबुव’ ओषधि कदाचित् कड़वा तूम्बा है। कौशिक सूत्र में इस मन्त्र से उसका जल पान करना लिखा है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गरुत्मान् ऋषिः। तक्षको देवता। १-३, जगत्यौ। २ आस्तारपंक्तिः। ४, ७, ८ अनुष्टुभः। ५ त्रिष्टुप्। ६ पथ्यापंक्तिः। ९ भुरिक्। १०, ११ निचृद् गायत्र्यौ एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Cure of Snake Poison

    Meaning

    Tabuva snake is like Tabuva, the antidote of poison. O Tabuva, you are surely not the destroyer. You are the antidote that renders snake-poison ineffective.

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    Translation

    Tabuva is not (real) tabuva. And you tabuva are certainly not the genuine one. By tābuva the poison becomes powerless.

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    Translation

    The thing which causes growth and strength is not painful, the snake or its poison is certainly not the thing which destroys the troubles. With Tabuva (lOkI ka tumbaa) the poison of snake becomes ineffectual.

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    Translation

    A developing object is not the source of pain. O serpent thou art verily not an object free from pain. May thy poison be removed through the medicine named Tabuva.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(ताबुवम्) कृवापा०। उ० १।१। इति तु गतिवृद्धिहिंसासु−उण्+वा गतिगन्धनयोः−क। वृद्धिप्रापकं वस्तु (न) निषेधे (ताबुवम्) तु हिंसायाम्−उण्+वा गतौ−क। पीडाप्रापकं वस्तु (न) (घ) अवधारणे (इत्) एव (त्वम्) सर्पः (असि) (ताबुवम्) तु हिंसायाम्−उण्+वा गन्धने−क। दुःखनाशकं वस्तु (ताबुवेन) दुःखनाशकेन कर्मणा (अरसम्) निर्बलम् (विषम्) सरलम् ॥

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