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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 112 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 112/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - पाशमोचन सूक्त
    1

    येभिः॒ पाशैः॒ परि॑वित्तो॒ विब॒द्धोऽङ्गेअ॑ङ्ग॒ आर्पि॑त॒ उत्सि॑तश्च। वि ते मु॑च्यन्तं वि॒मुचो॒ हि सन्ति॑ भ्रूण॒घ्नि पू॑षन्दुरि॒तानि॑ मृक्ष्व ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    येभि॑: । पाशै॑: । परि॑ऽवित्त: । विऽब॑ध्द: । अङ्गे॑ऽअङ्गे । आर्पि॑त: । उत्सि॑त: । च॒ । वि । ते । मु॒च्य॒ता॒म्। वि॒ऽमुच॑: । हि । सन्ति॑ । भ्रू॒ण॒ऽघ्नि । पू॒ष॒न् । दु॒:ऽइ॒तानि॑ । मृ॒क्ष्व॒ ॥११२.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येभिः पाशैः परिवित्तो विबद्धोऽङ्गेअङ्ग आर्पित उत्सितश्च। वि ते मुच्यन्तं विमुचो हि सन्ति भ्रूणघ्नि पूषन्दुरितानि मृक्ष्व ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    येभि: । पाशै: । परिऽवित्त: । विऽबध्द: । अङ्गेऽअङ्गे । आर्पित: । उत्सित: । च । वि । ते । मुच्यताम्। विऽमुच: । हि । सन्ति । भ्रूणऽघ्नि । पूषन् । दु:ऽइतानि । मृक्ष्व ॥११२.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 112; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    कुल की रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (परिवित्तः) विवाहित छोटे भाई का बिना विवाहित बड़ा भाई (येभिः) जिन (पाशैः) फन्दों से (अङ्गे−अङ्गे) अङ्ग-अङ्ग में (विबद्धः) बँधा हुआ, (आर्पितः) दुखाया गया (च) और (उत्सितः) जकड़ा गया है। (ते) वे [फन्दे] (विमुच्यन्ताम्) खुल जावें, (हि) क्योंकि ये (विमुचः) खुलने योग्य (सन्ति) हैं, (पूषन्) हे पोषण करनेवाले विद्वान् ! (भ्रूणघ्नि) स्त्री के गर्भघाती रोग में [वर्तनान] (दुरितानि) कष्टों को (मृक्ष्व) दूर कर ॥३॥

    भावार्थ

    विद्वान् प्रयत्न करें कि सब सन्तान गुणी होकर अपने-अपने समय पर विवाहित होकर सुखी होवें और यथावत् ब्रह्मचर्यसेवन से कुल में गर्भपतन आदि रोग न होवें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(येभिः) यैः (पाशैः) बन्धैः (परिवित्तः) परि+विद ज्ञाने−क्त। परिविण्णः। परिवित्तिः। कृतविवाहस्यानूढज्येष्ठभ्राता (विबद्धः) विविधं बद्धः (अङ्गे अङ्गे) सर्वाङ्गे (आर्पितः) आङ्+ऋ हिंसायाम्, णिचि क्त। आर्ति पीडां प्रापितः (उत्सितः) म० २। अतिशयेन बद्धः (च) (ते) पाशा (विमुच्यन्ताम्) विसृज्यन्ताम्। (विमुचः) सम्पदादिः क्विप्। विमोचनीयाः पाशाः (हि) यस्मात्कारणात् (सन्ति) वर्तन्ते (भ्रूणघ्नि) भ्रूण आशाविशङ्कयोः−घञ्। ब्रह्मभ्रूणवृत्रेषु क्विप्। पा० ३।२।८७। इति भ्रूण+हन−क्विप्। स्त्रीगर्भघातिनि रोगे वर्तमानानि (दुरितानि) कष्टानि (मृक्ष्व) मृजू शौचालङ्कारयोः। शोधय। दुरीकुरु ॥

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    विषय

    घर के दो महान् कष्ट

    पदार्थ

    १. (परिवित्त:) = विवाहित छोटे भाई का अविवाहित बड़ा भाई (येभिः पाशै:) = जिन ग्राही आदि रोगों के फन्दों से विबद्धः-बँधा हुआ, अङ्गे-अङ्गे अर्पित:-[आर्पयितृ-one who injures or hurts] अङ्ग-अङ्ग में पीड़ित है, च-और उत्सित:-प्रबलरूप से जकड़ा हुआ है, ते वे सब पाश विमुच्यन्ताम्-छूट जाएँ। विमुचः इन पाशों से छुडानेवाली कितनी ही औषध हि-निश्चय से सन्ति-हैं। बड़े का स्वस्थ होना परिवार के हित के दृष्टिकोण से नितान्त आवश्यक है। २. हे पूषन्-पोषक प्रभो! भूणनि-जिनके सन्तान गर्भ में ही नष्ट हो जाते हैं, उस स्त्री में दुरितानि मक्ष्व-दुर्गति के कारणभूत कष्टों को दुर कीजिए। पूषा प्रभु की कृपा से सन्तान का गर्भ में ठीक से पोषण हो और माता स्वस्थ सन्तान को जन्म देनेवाली हो।

    भावार्थ

    परिवार में आनेवाले दो बड़े भारी कष्ट है-एक, अविवाहित बड़े भाई का ग्राही आदि रोग से पीड़ित हो जाना। दूसरे, पुत्रवधू का गर्भ बीच में ही गिर जाना। प्रभु इन दोनों ही कष्टों को दूर करने का अनुग्रह करें।

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    भाषार्थ

    (परिवित्तः) परिवेदना वाला (येभिः पाशै ) जिन पाशों द्वारा (विबद्धः) विशेषतया बन्धा हुआ था, और (अङ्गे अङ्गे) प्रत्येक अङ्ग में (आर्पितः) आर्ति अर्थात् कष्ट को प्राप्त हुआ-हुआ था, (उत्सितश्च) तथा बन्धा हुआ था, (ते) हे बन्धे हुए ! तेरे बन्धन (विमुच्यन्ताम्) विमुक्त हो जाय, (विमुचः हि सन्ति) क्योंकि तुझे विमुक्त करने वाले [राजनियम] हैं। (पूषन्) हे प्रजापोषक प्रधानमन्त्रिम्! (भ्रूणघ्नि) भ्रूण की हत्या करने वाली स्त्री में (दुरितानि) दुष्फल रूपी दण्डों को (मृक्ष्व) धोकर तू डाल दे।

    टिप्पणी

    [परिवेदना= अतिवेदना, अतिकष्ट। भ्रूणघ्नि= भ्रूणहनि (सायण)। सूक्त में ज्येष्ठ की हत्या के प्रकरण में भ्रूण हत्या करने वाली स्त्री का भी कथन किया है, यह दर्शाने के लिये कि राजनियमों द्वारा भ्रूणहत्यारी दण्डनीया है। भ्रूण= भ्रू+ ऊन=भरण-पोषण में जो अभी न्यून है ऐसा गर्भस्थ शिशु। छोटा भाई बन्धा हुआ था सम्भावनीय बंधक के रूप में। उसे निरपराधी जान कर विमुक्त कर दिया है।

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    विषय

    सन्तान की उत्तम शिक्षा और विजय।

    भावार्थ

    (येभिः) जिन (पाशैः) बन्धनों से (परि-वित्तः) अपने ज्येष्ठ भाई का अधिकार हड़पने वाला पुरुष (वि-बद्धः) बांधा जाय और (अंङ्गे अङ्गे) अंग अंग में (आर्पितः) जकड़ा और (उत्सितः च) बँधा रहे (ते) वे पाश (वि मुच्यन्ताम्) खोल दिये जायें (हि) यदि (विमुचः) वे खोल देने योग्य ही (सन्ति) हों। तब हे (पूषन्) राजन् ! (भ्रूणघ्नि) भ्रूणघाती पुरुष पर (दुरितानि) इन अपराधों को (मृक्ष्व) जानो। ‘भ्रूण’ का अर्थ कोषकार ‘गर्भ’ करते हैं परन्तु बोधायन ने लिखा है कि—“कल्पप्रवचनाध्यायी भ्रूणः।” कल्पप्रवचनसहित साङ्ग वेद का विद्वान् ‘भ्रूण’ कहाता है। उसको मारने वाला ‘भ्रूणहा’ कहाता है। अर्थात् उक्त दोष से अन्य सभी तब मुक्त हो सकते हैं यदि उनके कार्य के नीचे किसी और पापी हत्यारे (Outlaw) का हाथ हो तब केवल उस मुख्य को पकड़ कर ही दण्ड दिया जाय।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। अग्निर्देवता। त्रिष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Freedom from Bondage

    Meaning

    Let the bonds by which the ailing person is tied and twisted every limb, ensnared and overwhelmed, be loosed and removed off you, O man, they are removable, the man must be freed. O Pushan, lord giver of life and nourishment, cleanse the evils and negativities that destroy the fetus in the womb. (This sukta enjoins freedom of the individual with reverence to the seniors and without getting oneself alienated from the common roots. Then it prescribes integrity of the family but without the snares of infatuation. The third verse says that man must be born full and to fullness and must be free because man is born free, inalienated and un-uprooted as a child of divinity and natural piety. Sin and ailenation is un¬ natural.)

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    Translation

    With what nooses, a married man, having an elder brother unmarried, stays bound, tied up and secured each and every limb, may those nooses of you be unfastened, because there are releasers, O nourisher, may you remove the defects that destroy the embryo.

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    Translation

    O protecting physician! let those nooses whereby an unmarried man is bound, fettered in every limb and tied securely, be loosened as they are the bonds for loosing and turn the troubles away upon the babe-destroyer.

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    Translation

    The bonds with which the usurper of the rights of his elder brother is tied, fettered in every limb, and bound securely, should be loosened, if they are fit to be unloosened. O King, turn away woes upon the murderer of a Vedic scholar.

    Footnote

    भ्रूण generally means the child in the womb, but in the opinion of Bodhāyana, in means a Vedic scholar, who studies the Vedas with their branches. कल्पप्रवचनाध्यायि भ्रूण: 'They' refers to bonds. A younger brother who usurps the rights of his elder brother should be punished. He should be released only, if ho is found guiltless.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(येभिः) यैः (पाशैः) बन्धैः (परिवित्तः) परि+विद ज्ञाने−क्त। परिविण्णः। परिवित्तिः। कृतविवाहस्यानूढज्येष्ठभ्राता (विबद्धः) विविधं बद्धः (अङ्गे अङ्गे) सर्वाङ्गे (आर्पितः) आङ्+ऋ हिंसायाम्, णिचि क्त। आर्ति पीडां प्रापितः (उत्सितः) म० २। अतिशयेन बद्धः (च) (ते) पाशा (विमुच्यन्ताम्) विसृज्यन्ताम्। (विमुचः) सम्पदादिः क्विप्। विमोचनीयाः पाशाः (हि) यस्मात्कारणात् (सन्ति) वर्तन्ते (भ्रूणघ्नि) भ्रूण आशाविशङ्कयोः−घञ्। ब्रह्मभ्रूणवृत्रेषु क्विप्। पा० ३।२।८७। इति भ्रूण+हन−क्विप्। स्त्रीगर्भघातिनि रोगे वर्तमानानि (दुरितानि) कष्टानि (मृक्ष्व) मृजू शौचालङ्कारयोः। शोधय। दुरीकुरु ॥

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