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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 136 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 136/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वीतहव्य देवता - नितत्नीवनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - केशदृंहण सूक्त
    1

    यस्ते॒ केशो॑ऽव॒पद्य॑ते॒ समू॑लो॒ यश्च॑ वृ॒श्चते॑। इ॒दं तं वि॒श्वभे॑षज्या॒भि षि॑ञ्चामि वी॒रुधा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । ते॒ । केश॑: । अ॒व॒ऽपद्य॑ते । सऽमू॑ल: । य: । च॒ । वृ॒श्चते॑ । इ॒दम् । तम् । वि॒श्वऽभे॑षज्या । अ॒भि । सि॒ञ्चा॒मि॒ । वी॒रुधा॑ ॥१३६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्ते केशोऽवपद्यते समूलो यश्च वृश्चते। इदं तं विश्वभेषज्याभि षिञ्चामि वीरुधा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । ते । केश: । अवऽपद्यते । सऽमूल: । य: । च । वृश्चते । इदम् । तम् । विश्वऽभेषज्या । अभि । सिञ्चामि । वीरुधा ॥१३६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 136; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    केश के बढ़ाने का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे मनुष्य !] (यः) जो (ते) तेरा (केशः) केश (अव पद्यते) गिर जावे (च) और (यः) जो (समूलः) समूल (वृश्चते) टूट जावे। (इदम्) अब (तम्) उस को (विश्वभेषज्या) सब [केश रोगों] की ओषधि (वीरुधा) उस जड़ी-बूटी से (अभि षिञ्चामि) चुपड़ कर ठीक करता हूँ ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य नितत्नी नाम ओषधि से केशों के रोगों को दूर करें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(यः) (ते) तव (अवपद्यते) निपतति (समूलः) मूलसहितः (यः) (च) (वृश्चते) वृश्च्यते। छिद्यते (इदम्) इदानीम् (तम्) केशम् (विश्वभेषज्या) सर्वस्य केशरोगस्य निवर्तयित्र्या (अभि) अभितः (सिञ्चामि) आर्द्रीकरोमि (वीरुधा) लतया ॥

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    विषय

    विश्वभेषजी

    पदार्थ

    १. हे कशदहणकाम पुरुष! (यः ते केशः अवपद्यते) = जो तेरा बाल बीच में ही टूटकर भूमि पर गिर पड़ता है (च) = और (यः समूल: वृश्चते) = जो जड़सहित छिन्न हो जाता है। (इदम्) = [इदानीम्] अब (तम्) = उस सब केश को (विश्वभेषज्या) = केशाश्रित सब रोगसमूह की निवर्तिका (वीरुधा) = औषधि से (अभिषिञ्चामि) = अभितः सिक्त करता हूँ। इस औषध-प्रयोग से केशाश्रित सब रोगसमूह निवृत्त हो जाता है।

    भावार्थ

    इस विश्वभेषजी [नितत्नी] के प्रयोग से केशों के समस्त रोग दूर हो जाते हैं।

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    भाषार्थ

    (ते) तेरा (यः) जो (केश) केश (अव पद्यते) टूट कर नीचे गिर जाता है, (य: च) और जो (समूलः) जड़ समेत (वृश्चते) कट जाता है, (इदम्) इसे और (तम) उसे (विश्वभेषज्या) केशों के सब रोगों की ओषधि रूप (वीरुधा) वीरुध् द्वारा (अभिषिञ्चामि) मैं सींचता हूं।

    टिप्पणी

    [विश्वभेषजी सम्भवतः ओषधि का नाम हो, जिसे कि मन्त्र (१) में देवी कहा है। अथर्व० (६।५२।३) मैं विश्वभेषजी के सम्बन्ध में सायणाचार्य ने कहा है कि शान्तौषधी" "शमीम्" वा "अभिषिञ्चामि" द्वारा "विश्वभेषजी" वीरुध् के रस द्वारा केशों को सींचने का कथन हुआ है।]

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    विषय

    केशवर्धनी नितत्नी ओषधि।

    भावार्थ

    हे केशरोगिन् ! (यः ते केशः) जो तेरा केश (अवपद्यते) झड़ता है, (यः च समूलः वृश्चते) और जो केश मूलसहित टूट भाता है, (तम्) उन सब केशों को (विश्व भेषज्या वीरुधा) केश के सब रोगों को दूर करने वाली लता के रस से (अभि-षिञ्चामि) भिगोता हूँ। इससे सब केश के रोग छूट जायेंगे। कौशिक एवं सायण ने केशों के रोग की निवृत्ति के लिए काकमाची, जीवन्ती और भृंगराज का प्रयोग लिखा है। राजनिघण्टु के अनुसार ‘देवी’ ओषधि से मूर्वा, स्पृक्का, सहदेवी, देवद्रोणी, केसर और आदित्यभक्ता, ये छः ओषधि ली जाती हैं। काकमाची से काकादनी ओषधि लेनी चाहिये क्योंकि वही राजनिघण्टु के अनुसार ‘केश्या’ है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    केशवर्धनकामो वीतहव्योऽथर्वा ऋषिः। वनस्पतिर्देवता १-२ अनुष्टुभौ। २ एकावसाना द्विपदा साम्नी बृहती। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Hair Care

    Meaning

    O man, if your hair falls off, or if it falls off from the root, all this I revitalise and strengthen with this herbal tonic for all hair problems.

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    Translation

    Your hair, which falls off, or is torn with its root-that I wet with (the sap of) this plant, a cure-all remedy (panecea). (visva- bhesajya).

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    Translation

    O man! I preserve with this plant which is the balm of all such diseases, that hair of yours, which is going to fall and which is torn away with the roots.

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    Translation

    Thy hair where it is falling off, and with the roots is torn away, I wet and sprinkle with the juice of the plant Nitatni, the sovereign remedy for all hair diseases.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(यः) (ते) तव (अवपद्यते) निपतति (समूलः) मूलसहितः (यः) (च) (वृश्चते) वृश्च्यते। छिद्यते (इदम्) इदानीम् (तम्) केशम् (विश्वभेषज्या) सर्वस्य केशरोगस्य निवर्तयित्र्या (अभि) अभितः (सिञ्चामि) आर्द्रीकरोमि (वीरुधा) लतया ॥

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