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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 20/ मन्त्र 2
    ऋषिः - भृग्वङ्गिरा देवता - यक्ष्मनाशनम् छन्दः - ककुम्मती प्रस्तारपङ्क्तिः सूक्तम् - यक्ष्मानाशन सूक्त
    1

    नमो॑ रु॒द्राय॒ नमो॑ अस्तु त॒क्मने॒ नमो॒ राज्ञे॒ वरु॑णाय॒ त्विषी॑मते। नमो॑ दि॒वे नमः॑ पृथि॒व्यै नम॒ ओष॑धीभ्यः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नम॑: । रु॒द्राय॑ । नम॑: । अ॒स्तु॒ । त॒क्मने॑ । नम॑: । राज्ञे॑ । वरु॑णाय । त्विषि॑ऽमते । नम॑: । दि॒वे । नम॑: । पृ॒थि॒व्यै । नम॑: । ओष॑धीभ्य: ॥२०.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमो रुद्राय नमो अस्तु तक्मने नमो राज्ञे वरुणाय त्विषीमते। नमो दिवे नमः पृथिव्यै नम ओषधीभ्यः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नम: । रुद्राय । नम: । अस्तु । तक्मने । नम: । राज्ञे । वरुणाय । त्विषिऽमते । नम: । दिवे । नम: । पृथिव्यै । नम: । ओषधीभ्य: ॥२०.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 20; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (4)

    विषय

    रोग के नाश के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (रुद्राय) दुःखनाशक वैद्य को (नमः) नमस्कार, (तक्मने) दुःखित जीवन करनेवाले ज्वर को (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे, (त्विषीमते) प्रकाशमान, (राज्ञे) सब के राजा, (वरुणाय) श्रेष्ठ परमेश्वर को (नमः) नमस्कार हो। (दिवे) प्रकाशमान सूर्य को (नमः) नमस्कार, (पृथिव्यै) फैली हुयी पृथिवी को (नमः) नमस्कार, और (ओषधीभ्यः) तापनाशक अन्न आदि पदार्थों को (नमः) नमस्कार हो ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य सत्पुरुषों के मेल, ईश्वरविचार और सांसारिक पदार्थों के नियमों के साक्षात् करने से स्वस्थ रहें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(नमः) नमस्कारः (रुद्राय) अ० २।२७।६। दुःखनाशकाय वैद्याय (अस्तु) (तक्मने) म० १। ज्वराय (राज्ञे) सर्वशासकाय (वरुणाय) वरणीयाय परमेश्वराय (त्विषीमते) अ० ४।१९।२। दीप्तियुक्ताय (दिवे) प्रकाशमानाय सूर्याय (पृथिव्यै) विस्तृतायै भूम्यै (ओषधीभ्यः) तापनाशिकाभ्यो व्रीह्यादिभ्यः ॥

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    विषय

    'नम: रुद्राय नमः अस्तु तक्मने'

    पदार्थ

    १. (रुद्राय) = रोगों का द्रावण करनेवाले वैद्य को (नमः) = नमस्कार हो और इस (तक्मने नमः अस्तु) = जीवन को कष्टमय बनानेवाले ज्वर के लिए भी नमस्कार हो-यह हमें दूर से ही छोड़ जाए। हम उस (त्विषीमते) = दीप्तिवाले (वरुणाय) = सब कष्टों का निवारण करनेवाले (राज्ञ) = शासक प्रभु के लिए (नमः) = नमस्कार करते हैं। यह प्रभु-स्मरण हमें व्रतमय जीवनवाला बनाकर नीरोग करता है। (दिवे नमः पृथिव्यै नम:) = हम पितृरूप धुलोक के लिए तथा मातृरूपा इस पृथिवी के लिए नमस्कार करते हैं। इनका उचित सम्पर्क अपने साथ बनाते हैं और इनके द्वारा प्रदत्त ओषधीभ्यः ओषधियों के लिए (नमः) = नमस्कार करते हैं। इनके उचित सेवन से रोगों को दूर करते हैं।

    भावार्थ

    रोग को दूर करने के लिए 'प्रभु-स्मरण, योग्य वैद्य की प्राप्ति तथा झुलोक व पृथिवीलोक से प्रदत्त ओषधियों का प्रयोग' आवश्यक है।

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    भाषार्थ

    (रुद्राय) पाप के फलरूप में रुलाने वाले परमेश्वर के लिये ( नम: ) नमस्कार हो, (तक्मने) जीवन को कष्टमय करने वाले ज्वर के लिये (नमः) पथ्यान्न तथा औषध रूपी वज्र (अस्तु) हो, (त्विषीमते) विद्युत् की दीप्तिवाले, (राज्ञे) राजा ( वरुणाय) मेघ के लिये ( नम: ) अन्नाहुतियां हों, (दिवे) द्युलोक के लिये ( नमः ) अन्नाहुतियां हों, (पृथिव्यै) पृथिवी की शुद्धि के लिये ( नम: ) अन्नाहुतियां हों, (ओषधीभ्यः) ओषधियों से (नमः) अन्न की प्राप्ति हो ।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में "नमः पर्यन्त" प्रत्येक वाक्य है जो कि स्वतन्त्र अर्थ का ज्ञापक है। प्रत्येक वाक्य अन्य वाक्य के साथ सामान्य "नमः" पद द्वारा सम्बद्ध है। अतः प्रत्येक वाक्य का अर्थ बुद्धिग्राह्य किया है। "नमः" का अर्थ अन्न भी है (निघं २।७)। अन्न का अभिप्राय केवल प्रापी द्वारा खाद्य अन्न ही नहीं अपितु यज्ञाग्नि द्वारा खाद्य अन्न भी है, अतः इस अन्न को हम यज्ञिय-सामग्री भी कह सकते हैं जो कि ओषधियों से प्राप्त होती है। वरुण का अर्थ मेघ किया है, जो कि अन्नाभाव से उत्पन्न कष्ट का वारण करता है, अतः यह सब प्राणियों का राजा है। इस में दीप्ति है मेषीय विद्युत् । वरुण है मेघ, एतदर्थ देखो निरुक्त (१०।१।५) में वरुण पद की व्याख्या१]। [१. व्याख्या के लिये निरुक्तकार ने "नीचीनवारं वरुण:" मन्त्र (ऋ० ५।८५।३) उपस्थित किया है जिस में वृष्टि का भी वर्णन है, और वरुण को राजा भी कहा है। साथ ही वरुण अन्तरिक्षस्थानी देवता भी है]

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    विषय

    ज्वर का निदान और चिकित्सा।

    भावार्थ

    (रुद्राय नमः) उस रुलानेवाले ज्वर का उपाय करो कि वह शान्त हो जाय। (तक्मने) कष्टमय जीवन के कारणभूत ज्वर का (नमः) उपाय करो। और (वरुणाय) सर्वश्रेष्ठ उस (त्विषीमते) कान्तिमान् (राज्ञे) राजाधिराज परमात्मा को नमस्कार करो। उसको सदा याद रक्खो और उससे उतर कर सुखी जीवन के बनाने के साधन (दिवे नमः) तेजो रूप सूर्य को नमस्कार अर्थात् उसका सदुपयोग करो, और उस द्वारा (ओषधीभ्यः नमः) उत्पन्न रोगहारी ओषधियों का सदुपयोग करो। इससे तुम्हारे जीवन हृष्ट पुष्ट, स्वस्थ, नीरोग रहेंगे। रोगों से रहित होने के लिये सूर्य का प्रभास्नान करो, पृथिवी पर परिभ्रमण करो और ओषधियों का सेवन करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृग्वंगिरा ऋषिः। यक्ष्मनाशनं देवता। १ अति जगती। २ ककुम्मती प्रस्तारे पंक्तिः। ३ सतः पक्तिः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Takma-Nashanam

    Meaning

    Honour and salutations to Rudra, the physician, namah, i.e., proper treatment to the fever, homage to the refulgent Vamna, the sun which provides an umbrella of light and health. Homage to the heavenly regions of light, homage to the earth, thanks and proper study and research to the health giving herb and medicaments.

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    Translation

    Our homage be to the terrible punisher; to the fever let our homage be; homage be to the brilliant sovereign venerable Lord. Homage to heaven, homage to earth, homage to medicinal herbs.

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    Translation

    We appreciate the service of the physician on such times illness, we should use all prophylactic measures for checking the fever, we appreciate the splendid sunny climate, we appreciate the utility of sun, we appreciate the Utility of soil and we use medicines, (to drive away the fever).

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    Translation

    Pay homage to the healing physician. Eradicate fever. Worship the Re-Refulgent God, the Lord of all. Take full advantage of the sun, the Earth and the medicinal plants.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(नमः) नमस्कारः (रुद्राय) अ० २।२७।६। दुःखनाशकाय वैद्याय (अस्तु) (तक्मने) म० १। ज्वराय (राज्ञे) सर्वशासकाय (वरुणाय) वरणीयाय परमेश्वराय (त्विषीमते) अ० ४।१९।२। दीप्तियुक्ताय (दिवे) प्रकाशमानाय सूर्याय (पृथिव्यै) विस्तृतायै भूम्यै (ओषधीभ्यः) तापनाशिकाभ्यो व्रीह्यादिभ्यः ॥

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