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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 26 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 26/ मन्त्र 2
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - पाप्मा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पाप्मनाशन सूक्त
    1

    यो नः॑ पाप्म॒न्न जहा॑सि॒ तमु॑ त्वा जहिमो व॒यम्। प॒थामनु॑ व्या॒वर्त॑ने॒ऽन्यं पा॒प्मानु॑ पद्यताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । न॒: । पा॒प्म॒न् । न । जहा॑सि । तम् ।ऊं॒ इति॑ । त्वा॒ । ज॒हि॒म॒: । व॒यम्। प॒थाम् । अनु॑ । वि॒ऽआ॒वर्त॑ने । अ॒न्यम् । पा॒प्मा । अनु॑ । प॒द्य॒ता॒म् ॥२६.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो नः पाप्मन्न जहासि तमु त्वा जहिमो वयम्। पथामनु व्यावर्तनेऽन्यं पाप्मानु पद्यताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । न: । पाप्मन् । न । जहासि । तम् ।ऊं इति । त्वा । जहिम: । वयम्। पथाम् । अनु । विऽआवर्तने । अन्यम् । पाप्मा । अनु । पद्यताम् ॥२६.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 26; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (4)

    विषय

    पाप के छोड़ने का दृढ़ निश्चय

    पदार्थ

    १. हे (पाप्मन्) = पापभाव! (य:) = जो तू (न:) = हमें (न जहासि) = नहीं छोड़ता है, (तं त्वा) = उस तुझे (वयम्) = हम ही (उ) = निश्चय से (जहिमः) = छोड़ देते हैं। पाप को छोड़ने का दृढ़ निश्चय ही सर्वोत्तम व्रत है। २. (पथाम् अनु व्यावर्तने) = [पथ गतौ] गतिशील इन्द्रियों को अनुकूल कर्मों में लौटा लेने पर-उचित कर्मों में लगाने के द्वारा-इन्द्रियों को निरुद्ध कर लेने पर (पाप्मा) = यह पापभाव (अन्यं अनुपद्यताम्) = इन्द्रिय-निरोध न करनेवाले दूसरे ही किसी व्यक्ति को प्राप्त हो।

    भावार्थ

    पाप हमें नहीं छोड़ जाएगा, इसे तो हमें ही छोड़ना होगा। इन्द्रियों को अनुकूल कार्यों में व्याप्त रखना ही पाप से बचने का उपाय है।

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    भाषार्थ

    (पाप्मन्) हे पाप ! (यः) जो तू ( न: ) हमें (न जहासि) न त्यागता, तो (वयम् ) हम ( तम्, उ, त्वा) उस तुझ को (जहिमः) त्याग देते हैं। (पथाम्) सत्पर्थों के (अनु) निरन्तर (व्यावर्तने) त्यागने पर, (अन्यम्) पापत्यागियों से भिन्न को ( पाप्मा) पाप ( अनु) निरन्तर (पद्यताम्) प्राप्त हो।

    टिप्पणी

    ["वयम्" द्वारा यह सूचित किया है कि हम सत्पथ पर चलते हुए, पारस्परिक सम्मिलित प्रयत्न द्वारा पाप का परित्याग कर देते हैं। जहासि, जहिमः= ओहाक् त्यागे (जुहोत्यादिः)। मन्त्र में यह दर्शाया है कि प्रयत्न करने पर व्यक्ति पाप को त्याग देता है ]।

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    भावार्थ

    हे पाप्मन् ! पाप के भाव ! (नः) हमें (यः) जो तू (न जहासि) नहीं छोड़ता तो (तम्) उस (त्वा उ) तुझको ही (वयम्) हम स्वयं (जहिमः) परित्याग करते हैं। (पथाम्) सत्पथ से (विआवर्त्तने) उल्टे अर्थात् असत्पथ में वर्त्तमान (अन्यम्) अन्य जन को ही जो कि हम सत्पथ गामियों से भिन्न मार्ग में चलनेवाला है (पाप्मा) पाप (अनुपद्यताम्) प्राप्त हुआ करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। पाम्पा देवता। १, ३ अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Freedom from Sin

    Meaning

    O sinfulness, if you do not leave us, we destroy and eliminate you. When we are on the cross roads on the way onwards, then, O man, let the sin take another way and go off, elsewhere.

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    Translation

    O wickedness (papman), surely we leave you, who does not leave us. At the turning point of the ways, may the wickedness follow some other one.

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    Translation

    we ourselves leave the intention or the tendency of sin which does leave us. Let this tendency of sin go to another sin io turning of the path (not to any other man).

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    Translation

    O sin, if thou leavest us not, we leave thee. Thou at the turning of the paths, let sin fall on someone else!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

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