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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 68 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 68/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - अदितिः, आपः, प्रजापतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - वपन सूक्त
    1

    अदि॑तिः॒ श्मश्रु॑ वप॒त्वाप॑ उन्दन्तु॒ वर्च॑सा। चिकि॑त्सतु प्र॒जाप॑तिर्दीर्घायु॒त्वाय॒ चक्ष॑से ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अदि॑ति: । श्मश्रु॑। व॒प॒तु॒ । आप॑: । उ॒न्द॒न्तु॒ । वर्च॑सा । चिकि॑त्सतु । प्र॒जाऽप॑ति: । दी॒र्घा॒यु॒ऽत्वाय॑ । चक्ष॑से ॥६८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अदितिः श्मश्रु वपत्वाप उन्दन्तु वर्चसा। चिकित्सतु प्रजापतिर्दीर्घायुत्वाय चक्षसे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अदिति: । श्मश्रु। वपतु । आप: । उन्दन्तु । वर्चसा । चिकित्सतु । प्रजाऽपति: । दीर्घायुऽत्वाय । चक्षसे ॥६८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 68; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मुण्डन संस्कार का उपदेश।

    पदार्थ

    (अदितिः) अखण्डित छुरा (श्मश्रु) केश (वपतु) काटे (आपः) जल (वर्चसा) अपनी शोभा से (उन्दन्तु) सींचे। (प्रजापतिः) सन्तान का पालन करनेवाला पिता (दीर्घायुत्वाय) दीर्घ जीवन के लिये और (चक्षसे) दृष्टि बढ़ाने के लिये (चिकित्सतु) [बालक के] रोग की निवृत्ति करे ॥२॥

    भावार्थ

    मुण्डन होने के पश्चात् स्नान करा के यथोचित ओषधि खान-पान आदि द्वारा बालक को प्रसन्न करें। इस संस्कार से बालक की आयु और दृष्टि बढ़ती है ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(अदितिः) अ० २।२८।४। दो अवखण्डने−क्तिन्। अखण्डितस्तीक्ष्णधारश्छुरः (श्मश्रु) अ० ५।१९।१४। श्म शरीरम् श्मश्रु लोम, श्मनि श्रितं भवति। निरु० ३।५। शिरः केशम् (वपतु) मुण्डतु (आपः) जलानि (उन्दन्तु) सिञ्चन्तु स्नानेन (वर्चसा) तेजसा (चिकित्सतु) कित रोगापनयने। भिषज्यतु बालकस्य रोगनिवृत्तिं करोतु (प्रजापतिः) सन्तानपालकः पिता (दीर्घायुत्वाय) चिरकालजीवनाय (चक्षसे) अ० १।५।१। दृष्टिवर्धनाय ॥

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    विषय

    स्वास्थ्य, वीर्य, उत्तम राजप्रबन्ध

    पदार्थ

    १. (अदिति:) = स्वास्थ्य का (अखण्डन श्मश्रु) = [श्मनि श्रितम्] शरीरस्थ प्रत्येक रोग को (वपतु) = उच्छिन्न कर दे। (आपः) = शरीरस्थ रेत:कण (वर्चसा उन्दन्तु) = हमें प्राणशक्ति से क्लिन्न करें। हमारा शरीर वीर्यकणों के रक्षण से प्राणशक्ति से पूर्ण हो ताकि यह रोगों का शिकार न होकर स्वस्थ बना रहे। २. (प्रजापतिः) = प्रजाओं का रक्षक राजा (चिकित्सतु) = राष्ट्र में होनेवाले सब उपद्रवों का अपनय [इलाज] करे, जिससे सब प्रजावर्ग (दीर्घायुत्वाय) = दीर्घजीवी हो तथा (चक्षसे) = ज्ञान-चक्षुओं से युक्त हो सके।

    भावार्थ

    स्वास्थ्य की देवता हमारे सब रोगों को उच्छिन्न करे। सुरक्षित रेत:कण हममें प्राणशक्ति का सञ्चार करें। राजा सब उपद्रवों को दूर करे, जिससे सुरक्षित राष्ट्र में सब प्रजाजन दीर्घजीवी व ज्ञानी हों।

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    भाषार्थ

    (अदितिः) अदीना-देव माता अर्थात् बह्मचर्याश्रमवासी गुरुदेवों की मातृ रूपा, आचार्यपत्नी (श्मश्रु) मोंछों का (वपतु) छेदन करे, (आप: उन्दन्तु) जल, मुण्डन संस्कार हो जाने पर ब्रह्मचारी को जल स्नान करा कर (वर्चसा) तेज से सम्बद्ध करें। तदनन्तर (प्रजापतिः) आश्रमवासी प्रजाजनों का अधिपति आचार्य (चिकित्सतु१) ब्रह्मचारी की चिकित्सा करे, उसके बुरे संस्कार रूपी रोगों का निवारण करे, (दीर्घायुत्वाय) ताकि वह दीर्घजीवी हो, (चक्षसे) और वह दीर्घ काल तक व्यक्त वाणो द्वारा बोल सके। अथवा उसकी चक्षु आदि इन्द्रियां दीर्घकाल तक स्वस्थ रह सकें।

    टिप्पणी

    [जैसे चूड़ाकर्म संस्कार में पिता प्रथम पुत्र के कतिपय केशों का छेदन स्वयं करता है, तदनन्तर नापित पूरा मुण्डम करता है। इस विधि को अदिति सम्पन्न करती है। "शमश्श्रु" प्रौढ़ पुरुष के होते हैं बालक के नहीं अतः मन्त्र में प्रौढ़ावस्था के भी पुरुषों के लिये, अध्ययनार्थ, उपनयन विधि द्वारा ब्रह्मचर्याश्रम में प्रविष्ट होने की विधि को सूचित किया है।] [चक्षसे =चक्षिङ् व्यक्तायां वाचि। "असनयोश्च प्रतिषेधः" (पा. वा. २।४।५४) इति स्मरणात् ख्याञादेशाभाव:" (सायण)]। [१. अथवा "ब्रह्मचारी को ज्ञान प्रदान करे"। कित ज्ञाने (सायण)।]

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    विषय

    केश-मुण्डन और नापितकर्म का उपदेश।

    भावार्थ

    (अदितिः) आदित्य = सूर्य जिस प्रकार अन्धकार को काट डालता है उसी प्रकार अदिति = अखण्ड, तीक्ष्ण छुरे की धार (श्मश्रु) सिर के बालों को (वपतु) काट दे। और ज्ञानी (आपः) आप्त पुरुष जिस प्रकार (वर्चसा) तेज से हृदय को आर्द्र कर देते हैं उसी प्रकार (आपः) ये जल केशों को गीला कर दें। (प्रजापतिः) प्रजा का स्वामी परमात्मा जिस प्रकार सबको चक्षु देता और दीर्घ-जीवन देता है उसी प्रकार (प्रजापतिः) नाई भी वैद्य के समान जरीही द्वारा, अथवा फोड़ा फुंसी के रोग से बचाये रखने के लिये (चक्षसे) चक्षु की दर्शनशक्ति की वृद्धि और (दीर्घायुत्वाय) दीर्घजीवन के लिये (चिकित्सतु) रोग से बचाये रक्खे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ता देवता। १ पुरोविराडतिशक्करीगर्भा चतुष्पदा जगती,२ अनुष्टुप्, ३ अति जगतीगर्भा त्रिष्टुप्। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Tonsure Ceremony

    Meaning

    Let the razor cut the hair. Let water consecrate the child with brilliance. Let Prajapati enlighten the child and bless him to have a long age of good health, knowledge and holy vision.

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    Translation

    Let the indivisible earth shave the beard. Let the waters moisten him. with lustre. May the Lord of creatures treat Scratches with medicines, so that this king may have a long life with good vision

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    Translation

    Let the sharp razor shave the hair and let the waters moisten with their splendor. Let the Master of the universe restore his health for sight and lengthy life.

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    Translation

    Let sharp-edged razor shave the hair and let the waters moisten them with their strength. Let father restore his health for sight and days of lengthened life.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(अदितिः) अ० २।२८।४। दो अवखण्डने−क्तिन्। अखण्डितस्तीक्ष्णधारश्छुरः (श्मश्रु) अ० ५।१९।१४। श्म शरीरम् श्मश्रु लोम, श्मनि श्रितं भवति। निरु० ३।५। शिरः केशम् (वपतु) मुण्डतु (आपः) जलानि (उन्दन्तु) सिञ्चन्तु स्नानेन (वर्चसा) तेजसा (चिकित्सतु) कित रोगापनयने। भिषज्यतु बालकस्य रोगनिवृत्तिं करोतु (प्रजापतिः) सन्तानपालकः पिता (दीर्घायुत्वाय) चिरकालजीवनाय (चक्षसे) अ० १।५।१। दृष्टिवर्धनाय ॥

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