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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 99 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 99/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - सविता छन्दः - भुरिग्बृहती सूक्तम् - कल्याण के लिए यत्न
    1

    परि॑ दद्म॒ इन्द्र॑स्य बा॒हू स॑म॒न्तं त्रा॒तुस्त्राय॑तां नः। देव॑ सवितः॒ सोम॑ राजन्सु॒मन॑सं मा कृणु स्व॒स्तये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परि॑ । द॒द्म॒: । इन्द्र॑स्य । बा॒हू इति॑ । स॒म॒न्तम् । त्रा॒तु: । त्राय॑ताम् । न॒: । देव॑ । स॒वि॒त॒: । सोम॑ । रा॒ज॒न् । सु॒ऽमन॑सम् । मा॒ । कृ॒णु॒ । स्व॒स्तये॑ ॥९९.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परि दद्म इन्द्रस्य बाहू समन्तं त्रातुस्त्रायतां नः। देव सवितः सोम राजन्सुमनसं मा कृणु स्वस्तये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परि । दद्म: । इन्द्रस्य । बाहू इति । समन्तम् । त्रातु: । त्रायताम् । न: । देव । सवित: । सोम । राजन् । सुऽमनसम् । मा । कृणु । स्वस्तये ॥९९.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 99; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    संग्राम में जय का उपदेश।

    पदार्थ

    (त्रातुः) रक्षा करनेवाले (इन्द्रस्य) महाप्रतापी इन्द्र परमात्मा के (बाहू) भुजाओं के तुल्य बल पराक्रम को (समन्तम्) सब प्रकार (परिदद्मः) हम ग्रहण करते हैं, यह (नः) हमारी (त्रायताम्) रक्षा करे। (देव) प्रकाश स्वरूप, (सवितः) सर्वप्रेरक (सोम) संपूर्ण ऐश्वर्ययुक्त (राजन्) राजन् जगदीश्वर ! (स्वस्तये) कल्याण पाने के लिये (मा) मुझे (सुमनसम्) उत्तम विचारवाला (कुरु) कर ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमात्मा की भुजाओं में शरण लेकर शुद्ध अन्तःकरण से पुरुषार्थ करके सुखी रहे ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(त्रातुः) रक्षकस्य (त्रायताम्) स रक्षतु (नः) अस्मान् (देव) हे प्रकाशस्वरूप (सवितः) सर्वप्रेरक (सोम) परमैश्वर्यवन् (राजन्) सर्वनियामक (सुमनसम्) शोभनमननयुक्तम् (मा) माम् (कृणु) कुरु (स्वस्तये) क्षेमाय ॥

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    विषय

    देव सवितः सोम राजन्

    पदार्थ

    १.(त्रातुः) = रक्षा करनेवाले (इन्द्रस्य) = शत्रु-विद्रावक राजा की (बाहु) = भुजाओं को (समन्तम्) = चारों और (परिदद्यः) = प्राकारभूत धारण करते हैं। इसप्रकार वह इन्द्र (न:) = हमें (त्रायताम्) = रक्षित करे। २. हे देव-शत्रुओं को जीतने की कामनावाले! (सवितः) = सबको राष्ट्र-रक्षा की प्रेरणा देनेवाले; (सोम) = सम्पूर्ण ऐश्वर्ययुक्त अथवा शक्तिसम्पन्न [सोम के पुञ्ज] (राजन्) = दीप्त होनेवाले राजन्! (स्वस्तये) = क्षेम [अविनाश] के लिए (मा) = मुझे (सुमनसम्) = उत्साहयुक्त मनवाला (कृणु) = कीजिए। शत्रु का आक्रमण होने पर भी हम मन में उत्साह को न खो बैठें, हम स्वस्थ व उत्साहयुक्त चित्त से संग्राम करनेवाले हों।

    भावार्थ

    राजा शत्रुओं को जीतने की कामनावाला, सबको उत्साह की प्रेरणा देनेवाला, शक्तिसम्पन्न व दीस तेजवाला हो। वह सारी प्रजाओं में उत्साह का सञ्चार करे।

    विशेष

    अगले सूक्त का ऋषि 'गरुत्मान' है-विशाल बोझ को धारण करनेवाला। राजा के सिर पर सारे राष्ट्र का बोझ होता ही है, यह शत्रुओं से राष्ट्र का रक्षण करता हुआ आन्तरिक विष को भी दूर करता है।

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    भाषार्थ

    (त्रातुः) पालक (इन्द्रस्य) परमेश्वर की (बाहू) बाहुओं अर्थात् बल और वीरता, यश और बल को (समन्तम्) अपने सब ओर (परिदद्मः) हम घेरे के रूप में धारित करते हैं (नः) हमारी (त्रायताम्) वे पालना करें। अतः (देव) हे देव ! (सवितः) हे प्रेरक ! (सोम) हे सौम्य स्वभाव वाले ! (राजन्) सब के राजा परमेश्वर ! (मा) मुझ को (सुमनसम्) सुप्रसन्नचित्त या शोभनमन वाला (कृणु) कर (स्वस्तये) कल्याण के लिये।

    टिप्पणी

    [सामूहिक उपासना में बैठ कर, प्रत्येक उपासक, परमेश्वर से पालना की याचना करता है जिस से कि आसुरी भावों द्वारा वह व्यथित न हो। आसुरी भावों से छुटकारा पा कर उपासक प्रसन्नचित्त हो जाता है, तथा शुभ मन वाला हो जाता है, और कल्याण मार्ग का पथिक हो जाता है। त्रातुः, त्रायताम् (त्रैङ् पालने (स्वादिः)]।

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    विषय

    राष्ट्ररक्षा का उपाय।

    भावार्थ

    हम प्रजागण। (इन्द्रस्य) राजा की (बाहू) भुजाएँ अर्थात् रोकने वाली सेनाएं (परि दद्मः) अपने चारों ओर खड़ी पावें। (त्रातुः) देश के पालक राजा की (बाहू) भुजाएँ अर्थात् बाधक सेनाएं (नः) हमें (समन्तम्) सब ओरों से (त्रायताम्) रक्षा करें। हे (देव) विजिगीषु ! (सवितः) सब राष्ट्र के कार्यों के संचालक ! हे (सोम) सर्व उत्तम कार्यों के प्रवर्तक ! (राजन्) राजन् ! (मा) मुझे (स्वस्तये) कल्याण के लिये (सुमनसम्) शुभ चित्त वाला (कृणु) बनाये रख।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। वनस्पतिर्देवता, ३ सोमः सविता च देवते। १, २ अनुष्टुभौ। ३ भुरिग् बृहती। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prayer for Protection

    Meaning

    We wear all round and wield Indra’s arms of defence and self-protection, which arms of the universal protector, we pray, may defend us socially and spiritually. O Savita, self-refulgent life of life, O Soma, spirit of peace and joy, and Rajan, all compassing Ruler, let us be happily secure at heart for the sake of total well being. (Total faith in Divinity, self-confident spirit with love of peace and exuberant enthusiasm for living, and a refulgent ruling order, these are pillars of security and well being.)

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    Subject

    Indrah : Somah : Savitr

    Translation

    We encompass ourselves with the two arms of the resplendent Lord, the saviour: May He save us. O impeller Lord, O blissful King, may you make me good-hearted for my well-being.

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    Translation

    We draw about us both the arms of King who is our protector and let them protect us. O mighty ruler! O learned minister! O commanding officer! make me pleasant minded for my welfare.

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    Translation

    We draw about us both the arms of God, our Deliverer. May they protect us thoroughly. O Refulgent, All-Goading, Prosperous God, make Thou me pious-minded for my welfare.

    Footnote

    Both arms: Power, patency.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(त्रातुः) रक्षकस्य (त्रायताम्) स रक्षतु (नः) अस्मान् (देव) हे प्रकाशस्वरूप (सवितः) सर्वप्रेरक (सोम) परमैश्वर्यवन् (राजन्) सर्वनियामक (सुमनसम्) शोभनमननयुक्तम् (मा) माम् (कृणु) कुरु (स्वस्तये) क्षेमाय ॥

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