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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 17 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 3
    ऋषिः - भृगुः देवता - सविता छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - द्रविणार्थप्रार्थना सूक्त
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    धा॒ता विश्वा॒ वार्या॑ दधातु प्र॒जाका॑माय दा॒शुषे॑ दुरो॒णे। तस्मै॑ दे॒वा अ॒मृतं॒ सं व्य॑यन्तु॒ विश्वे॑ दे॒वा अदि॑तिः स॒जोषाः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    धा॒ता । विश्वा॑ । वार्या॑ । द॒धा॒तु॒ । प्र॒जाऽका॑माय । दा॒शुषे॑ । दु॒रो॒णे । तस्मै॑ । दे॒वा: । अ॒मृत॑म् । सम् । व्य॒य॒न्तु॒ । विश्वे॑ । दे॒वा: । अदि॑ति: । स॒ऽजोषा॑: ॥१८.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    धाता विश्वा वार्या दधातु प्रजाकामाय दाशुषे दुरोणे। तस्मै देवा अमृतं सं व्ययन्तु विश्वे देवा अदितिः सजोषाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    धाता । विश्वा । वार्या । दधातु । प्रजाऽकामाय । दाशुषे । दुरोणे । तस्मै । देवा: । अमृतम् । सम् । व्ययन्तु । विश्वे । देवा: । अदिति: । सऽजोषा: ॥१८.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 17; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    गृहस्थ के कर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (धाता) सबका धारण करनेवाला परमेश्वर (विश्वा) सब (वार्या) उत्तम विज्ञान और धन (प्रजाकामाय) प्रजा, उत्तम सन्तान भृत्य आदि चाहनेवाले (दाशुषे) दानशील पुरुषों को (दुरोणे) उसके घर में (दधातु) देवे। (विश्वे) सब (देवाः) विद्वान् लोग और (देवाः) उत्तम गुण और (सजोषाः) समान प्रीतिवाली (अदितिः) अदीन भूमि (तस्मै) उस पुरुष को (अमृतम्) अमृत [पूर्ण सुख] (सम्) यथावत् (व्ययन्तु) पहुँचावें ॥३॥

    भावार्थ

    गृहस्थ लोग परमेश्वर की उपासना, विद्वानों की संगति, उत्तम गुणों की प्राप्ति और भूगोल विद्या की उन्नति से विज्ञानपूर्वक सुखवृद्धि करें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(धाता) (विश्वा) सर्वाणि (वार्या) उत्तमानि विज्ञानानि धनानि च (दधातु) प्रयच्छतु (प्रजाकामाय) उत्तमसन्तानभृत्यादीच्छवे (दुरोणे) अ० ५।२।६। गृहे (तस्मै) पुरुषाय (देवाः) विद्वांसः (अमृतम्) अमरणम्। पूर्णसुखम् (सम्) सम्यक् (व्ययन्तु) व्यय गतौ, वित्तसमुत्सर्गे च। गमयन्तु। ददतु (विश्वे) सर्वे (देवाः) उत्तमगुणाः (अदितिः) अदीना पृथिवी (सजोषाः) समानप्रीतिः ॥

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    विषय

    विश्वा वार्या+अमृतम्

    पदार्थ

    १. (धाता) = सबका धारक (देव:) = दिव्यगुणयुक्त, प्रकाशमय प्रभु इस (प्रजाकामाय) = उत्तम सन्तानों की कामनावाले, (दाशुषे) = हवि देनेवाले यज्ञशील पुरुष के लिए (दुरोणे) = गृह में (विश्वा) = सब (वार्या) = बरणीय बस्तुओं को (दधातु) = धारण करे। सन्तानों के निर्माण के लिए किन्ही आवश्यक साधनों की इसे कमी न रहे। २. (तस्मै) = उस प्रजाकाम दाश्वान् के लिए (देवा:) = वायु, जल आदि देव (अमृतम्) = नीरोगता को (संव्ययन्तु) = संवृत करें, प्राप्त कराएँ [संवृण्वन्तु-प्रयच्छन्तु] । (विश्वे) = सब (देवा:) =  माता-पिता, आचार्य, अतिथि' आदि देव तथा (अदिति:) = यह अदीना देवमाता वेदवाणी (सजोषा:) = समानरूप से प्रीयमाण होते हुए-प्रसन्न होते हुए इसे अमृतत्व [विषयों के पीछे न मरने की वृत्ति को] प्राप्त करानेवाले हों।

    भावार्थ

    घर में हमें आवश्यक साधनों की कमी न हो, हम सन्तानों का उत्तम निर्माण कर सकें। जल, वायु आदि देवों की अनुकूलता हमें नीरोगता प्राप्त कराए तथा माता-पिता, आचार्य आदि का सम्पर्क और वेदाध्ययन हमें विषयासक्ति से बचाये।

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    भाषार्थ

    (प्रजाकामाय) प्रजा की कामना वाले, (दाशुषे) दानवृत्तिवाले के लिये (दुरोणे) उस के गृह में (धाता) धारण-पोषण करने वाला परमेश्वर (विश्वा) सब प्रकार के (वार्या) वरणीय धन (दधातु) दे, और उन्हें परिपुष्ट करे। (तस्मै) उस के लिये (देवाः) देव, (विश्वेदेवाः) अर्थात् सब देव, तथा (सजोषाः) प्रेममयी (अदितिः) अदीना पारमेश्वरी देवमाता (अमृतम्) अविनाशी मोक्ष सुख (संव्ययन्तु) प्रदान करें।

    टिप्पणी

    [प्रजा की कामना वाले गृहस्थी को भी दान देना चाहिये। इस दान वृत्ति वाले गृहस्थी को गृहस्थ में भी मोक्षसुख प्राप्त हो जाता है, और मोक्षसुख की प्राप्ति में सब देव और परमेश्वर उसके सहायक हो जाते हैं। देव हैं दिव्यगुणी विद्वान्। संव्ययन्तु = व्येञ् संवरणे (भ्वादिः)। संवरण = ढांपना। अर्थात् ऐसे गृहस्थी को मोक्षसुख के आवरण द्वारा सब देव और अदिति मिल कर ढांप देते हैं, ढांप कर सुरक्षित कर देते हैं, जिससे लोभादि कुवृत्तियों की मार से वह बचा रहता है]।

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    विषय

    ईश्वर से ऐश्वर्य की प्रार्थना।

    भावार्थ

    (धाता) पोषक पालक प्रभु (प्रजा-कामाय दाशुषे) प्रजा की अभिलाषा करने वाले दानी गृहपति को (दुरोणे) उसके घर में (विश्वा वार्या) समस्त प्राप्त करने योग्य आवश्यक धन धान्य आदि पदार्थों का (दधातु) प्रदान करे। (विश्वे देवाः) समस्त देव, विद्वान् गण, (स-जोषाः) और प्रेम से युक्त स्नेही, (अदितिः) अखण्ड शक्तिशाली माता ये सब (देवा:) दिव्यगुणोंवाली व्यक्तियां (तस्मै) उसके लिये (अमृतं) अमृत, आत्म-शक्ति, जीवन-शक्ति का (सं व्ययन्तु) दान करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृगुर्ऋषिः। धाता सविता देवता। १ त्रिपदा आर्षी गायत्री। २ अनुष्टुप्। ३, ४ त्रिष्टुभौ। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prayer for a Happy Home

    Meaning

    May the lord sustainer of power, prosperity and perfection, Dhata, give choice gifts of life for the generous giver praying for progeny in his home. May the generous sages and scholars, all divinities of nature, inviolable mother earth, all together in love and cooperation, bring him immortal gifts of life.

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    Translation

    May the ordainer (sustainer) Lord, grant all the desirable things to him, who desirous of progeny, performs sacrifice i at his home. May the enlightened ones, and all the bounties of Nature, in accord with the creative power (aditi), bless him with immortality (amrtam).

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.18.3AS PER THE BOOK

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    Translation

    May the ordainer of the universe give all knowledge and wealth to benevolent man desirous of progeny, at his home, and let all the learned men concordant in their thoughts including Aditih. the learned mother invest him with immortal life.

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    Translation

    May God grant all the necessaries of life in the house of a charitable householder, craving for children. May all the learned persons, the harmonious forces of nature, and wise persons grant him complete happiness.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(धाता) (विश्वा) सर्वाणि (वार्या) उत्तमानि विज्ञानानि धनानि च (दधातु) प्रयच्छतु (प्रजाकामाय) उत्तमसन्तानभृत्यादीच्छवे (दुरोणे) अ० ५।२।६। गृहे (तस्मै) पुरुषाय (देवाः) विद्वांसः (अमृतम्) अमरणम्। पूर्णसुखम् (सम्) सम्यक् (व्ययन्तु) व्यय गतौ, वित्तसमुत्सर्गे च। गमयन्तु। ददतु (विश्वे) सर्वे (देवाः) उत्तमगुणाः (अदितिः) अदीना पृथिवी (सजोषाः) समानप्रीतिः ॥

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