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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 17 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 4
    ऋषिः - भृगुः देवता - सविता छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - द्रविणार्थप्रार्थना सूक्त
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    धा॒ता रा॒तिः स॑वि॒तेदं जु॑षन्तां प्र॒जाप॑तिर्नि॒धिप॑तिर्नो अ॒ग्निः। त्वष्टा॒ विष्णुः॑ प्र॒जया॑ संररा॒णो यज॑मानाय॒ द्रवि॑णं दधातु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    धा॒ता । रा॒ति: । स॒वि॒ता । इ॒दम् । जु॒ष॒न्ता॒म् । प्र॒जाऽप॑ति: । नि॒धिऽप॑ति: । न॒: । अ॒ग्नि: । त्वष्टा॑ । विष्णु॑: । प्र॒ऽजया॑ । स॒म्ऽर॒रा॒ण । यज॑मानाय । द्रवि॑णम् । द॒धा॒तु॒ ॥१८.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    धाता रातिः सवितेदं जुषन्तां प्रजापतिर्निधिपतिर्नो अग्निः। त्वष्टा विष्णुः प्रजया संरराणो यजमानाय द्रविणं दधातु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    धाता । राति: । सविता । इदम् । जुषन्ताम् । प्रजाऽपति: । निधिऽपति: । न: । अग्नि: । त्वष्टा । विष्णु: । प्रऽजया । सम्ऽरराण । यजमानाय । द्रविणम् । दधातु ॥१८.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 17; मन्त्र » 4
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    हिन्दी (4)

    विषय

    गृहस्थ के कर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (सविता) सर्वप्रेरक, (धाता) धारण करनेवाला, (रातिः) दानाध्यक्ष, (प्रजापतिः) प्रजापालक, (निधिपतिः) निधिपति [कोशाध्यक्ष] और (अग्निः) अग्निसमान [अविद्यारूपी अन्धकार का नाश करनेवाला] विद्वान् पुरुष [यह सब अधिकारी] (नः) हमारे (इदम्) इस [गृहस्थ कर्म] को (जुषन्ताम्) सेवन करें। (विष्णुः) सर्वव्यापक, (संरराणः) सम्यक् दाता, (त्वष्टा) निर्माता परमेश्वर (प्रजया) प्रजा के सहित वर्तमान (यजमानाय) पदार्थों के संयोजक-वियोजक विज्ञानी को (द्रविणम्) बल वा धन (दधातु) देवे ॥४॥

    भावार्थ

    जैसे राजा राज्य की उन्नति के लिये अनेक अधिकारी रखता है, वैसे ही गृहस्थ लोग घर का प्रबन्ध करके परमेश्वर के अनुग्रह से बल और धन बढ़ावें ॥४॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है-अ० ८।१७ ॥

    टिप्पणी

    ४−(धाता) धारकः (रातिः) कर्तरि क्तिच्। दानाध्यक्षः (सविता) नायकः (इदम्) दृश्यमानं गृहस्थकर्म (प्रजापतिः) प्रजापालकः (निधिपतिः) कोशाध्यक्षः (नः) अस्माकम् (अग्निः) अग्नितुल्योऽविद्यान्धकार-दाहको विद्वान् (त्वष्टा) अ० २।५।६। सृष्टिकर्त्ता (विष्णुः) सर्वव्यापकः (प्रजया) (संरराणः) अ० ˜२।३४।३। सम्यग् दाता (यजमानाय) पदार्थानां संयोजकवियोजकविज्ञानिने (द्रविणम्) बलं धनं वा (दधातु) ददातु ॥

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    विषय

    यज्ञमय जीवन तथा यज्ञ का साधनभूत धन

    पदार्थ

    १.(धाता) = सबका धारक, (राति:) = सब कल्याणों का दाता, (सविता) = सर्वोत्पादक व सर्वप्रेरक, (प्रजापतिः) = प्रजाओं का पालक, (निधिपतिः) = वेदज्ञान का रक्षिता [निधीयन्ते पुरुषार्था येषु] (अग्निः) = अग्रणी प्रभु (न:) = हमारी (इदं हवि: जुषन्ताम्) = इस हवि का प्रीतिपूर्वक सेवन करें। प्रभुकृपा से हम हविरूप जीवनवाले बनें। २. वह (त्वष्टा) = रूपों का निर्माता (विष्णुः) = सर्वव्यापक प्रभु (प्रजया संरराण:) = हम प्रजाओं के साथ रमण करता हुआ (यजमानाय) = यज्ञशील पुरुष के लिए (द्रविणम्) = यज्ञ के साधनभूत धन को (दधातु) = धारण करे, दे। परमपिता प्रभु की कृपा से हम प्रजाओं को यज्ञात्मक कर्मों के लिए धन की कमी न रहे।

    भावार्थ

    प्रभुकृपा से हम यज्ञमय जीवनवाले बनें और इन यज्ञों के लिए हमें आवश्यक धन की कमी न रहे। इस यज्ञमय जीवन में स्थिरता से चलनेवाला 'अथर्वा अगले सूक्त का ऋषि है। यज्ञों से होनेवाली वृष्टि का इसमें प्रतिपादन है -

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    भाषार्थ

    (धाता) कृषि विभाग, (रातिः) दान विभाग, (सविता) तथा राष्ट्र की उत्पत्तियों और उन से प्राप्त लाभों का अधिकारी, ये तीनों अधिकारी, (इदम्) प्रजा द्वारा प्राप्त इस धन का (जुषन्ताम्) प्रीतिपूर्वक सेवन करें, [निर्दय पूर्वक इस धन का उपयोग न करें]; (अग्निः) और राष्ट्र का अग्रणी अर्थात् मुखिया नेता (प्रजापतिः) प्रजाओं का रक्षक या स्वामी राजा (नः) हम प्रजाजनों का (निधिपतिः) निधि रक्षक हो; (त्वष्टा) राष्ट्र की रूप सम्पत्ति का अधिष्ठाता (विष्णु) तथा यज्ञादि धार्मिक कर्मों का अधिकारी (प्रजया संरराण ) प्रजा के साथ रममाण हुआ, (यजमानाय) राष्ट्रयज्ञ के कर्ता प्रजाजन के लिये, (द्रविणम्) धन को (दधातु) परिपुष्ट करे।

    टिप्पणी

    [धाता= जीवनकारिणी अन्न सम्पत्ति प्रदाता (अथर्व० ७।१८।१)। रातिः = रा दाने। सविता= प्रसवानामधिपतिः (अथर्व० ५।२४।१)। अग्निः= अग्रणीर्भवति (निरुक्त ७।४।१४)। विष्णुर्वे यज्ञः (मै० ४।४।७)। त्वष्टा= तस्य त्वष्टा विदधद् रूपमेति (यजु० ३१।१७) तथा (ऋ० १०।११०।९)]।

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    विषय

    ईश्वर से ऐश्वर्य की प्रार्थना।

    भावार्थ

    (धाता) वह प्रभु सब का स्त्रष्टा धारक और पालक, (रातिः) सब श्रेय कल्याणकारी पदार्थों ज्ञान और बल का देने वाला, (सविता) और सब का प्रेरक, सब का आज्ञापक है। वही (प्रजा-पतिः) प्रजा का पालक (निधि-पतिः) ज्ञान की निधि, भण्डार और धनों के भण्डारों का स्वामी और (अग्निः) प्रकाशस्वरूप है। उसी के भिन्न भिन्न गुणों और कर्त्तव्यों का पालन करने वाले अधिकारीवर्ग भी राष्ट्र में धाता, राति = दानाध्यक्ष, सविता, प्रजापति, निधिपति और अग्नि आदि पदाधिकारी नियत हों, वे अपने को राजा का स्वरूप जानकर (नः) हमारे (इदं) इस प्रजाधन की ईश्वर के समान (जुषन्तां) प्रेम से रक्षा करें। (विष्णुः) व्यापक परमेश्वर के समान राज्य का कर्त्ता धर्त्ता (त्वष्टा) राजा, (प्रजया) अपनी प्रजा के साथ (सं-रराणः) आनन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करता हुआ, (यजमानाय) ईश्वर के उपासक, दाता और शुभ कर्म के कर्त्ता उत्तम पुरुष को (द्रविणं दधातु) सब प्रकार द्रव्य रखने की शक्ति दे। जो उसके द्रव्य की रक्षा करे, उसको द्रव्य सौंपे। इन मन्त्रों के आधार पर राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि स्मृतिकारों ने कहा है। जिस प्रकार ईश्वर के निमित्त त्याग करने और उसकी पूजा करने वाला यजमान है इसी प्रकार राजा के निमित्त कर देने वाला उसको अपना राजा मानकर आदर दिखाने वाला प्रजा का प्रत्येक पुरुष यजमान है। राजा उसके धन की रक्षा करे।

    टिप्पणी

    (द्वि०) ‘निधिपावेदेवोऽग्निः’। इति यजुः। ‘वरुणो मित्रो अग्निः’ (तृ०) ‘विष्णुस्त्वष्टा’ इति मै० सं० (तृ०) ‘रराणाः’ (च०) ‘दधात’ इति यजुः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृगुर्ऋषिः। धाता सविता देवता। १ त्रिपदा आर्षी गायत्री। २ अनुष्टुप्। ३, ४ त्रिष्टुभौ। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prayer for a Happy Home

    Meaning

    May Dhata, all-sustainer, Rati, all giver, Savita, all inspirer, Prajapati, protector and ruler of living beings, Nidhipati, protector and controller of the treasure of the world, and Agni, leader and giver of enlightenment, love, guide and bless this happy home of ours. May Tvashta, divine maker of forms of existence, Vishnu, lord omnipresent and all pervasive, munificent all giver, give to the yajamana wealth, honour and excellence with noble progeny.

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    Translation

    May the ordainer (sustainer) Lord, the impeller Lord, the Lord of creatures, the Lord of treasures, the adorable Lord, accept our this offering; may the universal mechanic, the omnipresent Lord, rejoicing in His own creations, grant wealth to the sacrificer.

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.18.4AS PER THE BOOK

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    Translation

    Let the atmospheric wind; the sun, which gives light; the fire which is master of all the subjects and the protector of worldly treasure grasp the oblation offered by us. Let wordly electricity and vishnu the yajna which are the giver of prosperity give all good fortunes to the performer of yajna with his children.

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    Translation

    O priest, thou art the source of happiness to al, the begetter of prosperity, the bringer-up of children, the guardian of the treasure of knowledge, the controller of vices, the enlarger of pleasure, the pervader in all noble qualities and acts, being charitably disposed towards thy offspring, fulfill thou rightly the duties of married life, and grant stores of riches to the sacrificer!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(धाता) धारकः (रातिः) कर्तरि क्तिच्। दानाध्यक्षः (सविता) नायकः (इदम्) दृश्यमानं गृहस्थकर्म (प्रजापतिः) प्रजापालकः (निधिपतिः) कोशाध्यक्षः (नः) अस्माकम् (अग्निः) अग्नितुल्योऽविद्यान्धकार-दाहको विद्वान् (त्वष्टा) अ० २।५।६। सृष्टिकर्त्ता (विष्णुः) सर्वव्यापकः (प्रजया) (संरराणः) अ० ˜२।३४।३। सम्यग् दाता (यजमानाय) पदार्थानां संयोजकवियोजकविज्ञानिने (द्रविणम्) बलं धनं वा (दधातु) ददातु ॥

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