अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 38/ मन्त्र 4
ऋषिः - अथर्वा
देवता - आसुरी वनस्पतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - केवलपति सूक्त
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अ॒हं व॑दामि॒ नेत्त्वं स॒भाया॒मह॒ त्वं वद॑। ममेदस॒स्त्वं केव॑लो॒ नान्यासां॑ की॒र्तया॑श्च॒न ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒हम् । व॒दा॒मि॒ । न । इत् । त्वम् । स॒भाया॑म् । अह॑ । त्वम् । वद॑ । मम॑ । इत् । अस॑: । त्वम् । केव॑ल: । न । अ॒न्यासा॑म् । की॒र्तया॑: । च॒न ॥३९.४॥
स्वर रहित मन्त्र
अहं वदामि नेत्त्वं सभायामह त्वं वद। ममेदसस्त्वं केवलो नान्यासां कीर्तयाश्चन ॥
स्वर रहित पद पाठअहम् । वदामि । न । इत् । त्वम् । सभायाम् । अह । त्वम् । वद । मम । इत् । अस: । त्वम् । केवल: । न । अन्यासाम् । कीर्तया: । चन ॥३९.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
विवाह में प्रतिज्ञा का उपदेश।
पदार्थ
(अहम्) मैं (न इत्) अभी (वदामि) बोल रही हूँ, (त्वम् त्वम्) तू तू (अह) भी (सभायाम्) सभा में (वद) बोल। (त्वम्) तू (केवलः) केवल (मम इत्) मेरा ही (असः) होवे, (चन) और (अन्यासाम्) दूसरी स्त्रियों का (न कीर्तयाः) तू न ध्यान करे ॥४॥
भावार्थ
वधू और वर पञ्चों के सन्मुख दृढ़ प्रतिज्ञा करके सदाचारी रह कर धर्म पर चलते रहें ॥४॥ इस मन्त्र का उत्तरार्द्ध भेद से आ चुका है-अ० ७।३७।१ ॥
टिप्पणी
४−(अहम्) वधूः (वदामि) प्रतिजानामि (न) सम्प्रति-निरु० ७।३१। (इत्) एव (त्वम् त्वम्) वीप्सायां द्विर्वचनम् (सभायाम्) विद्वत्समाजे (अह) एव (वद) प्रतिजानीहि (मम) (इत्) एव। अन्यत्पूर्ववत् अ० ७।३७।१ ॥
विषय
घर में पत्नी, सभा में पति
पदार्थ
१. एक युवती चाहती है कि घर में वही 'सम्राज्ञी' हो. सभा में पति 'समाट' बने अत: वह कहती है कि हे पते! (अहं वदामि) = घर में मैं ही बोलती हूँ, (त्वं न इत्) = आप यहाँ न बोलिए। (अह सभायां त्वं वद) = सभा में तो आप ही बोलिए। [अह विनिग्रहार्थीयः], अर्थात् जब आप मेरे समीप प्राप्त होते हैं तब मैं ही बोलती हूँ, आप तो मदुक्त का अनुवादमात्र ही करते हैं, मेरे प्रतिकूल कभी नहीं कहते। सभा में आपका स्थान है, मैं सभा में नहीं जाती, वहाँ मैं जाती भी हूँ तो शान्त रहती हूँ। २. इसप्रकार (त्वम्) = आप (मम इत् अस:) = केवल मेरे ही होओ, (अन्यासां न कीर्तयाः चन) = औरों का नाम भी न लीजिए। आपका झुकाव किसी अन्य युवती के प्रति न हो।
भावार्थ
परिवार में यह व्यवस्था हो कि घर में पत्नी, सभा में पति। पति अपनी पत्नी से भिन्न किसी युवती का गुण-कीर्तन करनेवाला न हो।
भाषार्थ
(अहम्) मैं पत्नी (वदामि) [गृह्य व्यवहारों में] बोला करूं, (नेत् त्वम्) न कि तु; (त्वम्) तू (सभायाम् अह) राजकीय तथा सामाजिक सभा में (वद) बोला कर। (त्वम्) तू (मम इत्) मेरा ही (केवलः) केवल (असः) हो, (अन्यासाम्) अन्य नारियों का (न, कीर्तयाः चन) कीर्तन भी न किया कर।
टिप्पणी
[मन्त्र में पत्नी ने आपस में कार्यविभाग का कथन किया है। गृह्यकार्यों और गृह्य व्यवहारों में वह निज अधिकार मानती है, और सामाजिक तथा राजनैतिक कार्यों में अधिकार पति का। इस प्रकार दोनों प्रकार की व्यवस्थाएं बनी रहती हैं, और पारस्परिक प्रेम दृढ़ होता जाता है। पति को यह भी परामर्श देती है कि तूने पत्नीव्रत का ध्यान रखना है]।
विषय
स्वयंवर-विधान।
भावार्थ
स्वयंवरा कन्या पुरुष के प्रति कहती है। (अहम्) मैं (सभायाम्) विद्वानों की सभा में (वदामि) जब भाषण करूँ तब (न इत् त्वम्) तू भाषण मत कर। (अहं) और बाद मेरे बोल चुकने पर (त्वम् वद) तू भी अपनी अभिलाषा और योग्यता प्रकट कर। इस प्रकार दोनों का परस्पर अभिप्राय प्रकट हो जाने के उपरान्त यदि तुम्हारी अभिलाषा गृहस्थ में मेरे संग रहने की दृढ़ हो तो (त्वम्) तू (मम इत्) मेरा ही होकर (असः) रह, (अन्यासाम्) उसके बाद और स्त्रियों के विषय में (न चन कीर्तयः) नाम भी मत लेना।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। १, २, ४, ५ अनुष्टुप्। ३ चतुष्पादुष्णिक्। पञ्चर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Marriage Vow
Meaning
It is I who would speak here, not you. You speak and declare in the assembly: You be only mine, do not even think, much less speak, of others.
Translation
Here I shall speak and you shall not. You can speak in the assembly. You are mine and mine alone (kevalah). Do not even talk of other women.
Comments / Notes
MANTRA NO 7.39.4AS PER THE BOOK
Translation
Not only I declare in this august assembly O husband! But thou also admitted so. Thou then, be exclusively mine and should not and would not talk of other women.
Translation
I am the speaker before the assembly, not thou: speak thou after me to denote your intention. Thou shalt be mine and only mine, and never think of other dames.
Footnote
At the time of taking the vow of marriage before learned persons, the woman speaks first expressing her desire to wed the bridegroom who shall speak afterwards giving his consent to accept her as his wife.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(अहम्) वधूः (वदामि) प्रतिजानामि (न) सम्प्रति-निरु० ७।३१। (इत्) एव (त्वम् त्वम्) वीप्सायां द्विर्वचनम् (सभायाम्) विद्वत्समाजे (अह) एव (वद) प्रतिजानीहि (मम) (इत्) एव। अन्यत्पूर्ववत् अ० ७।३७।१ ॥
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