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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 61 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 61/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - अग्निः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - तपः सूक्त
    1

    अग्ने॒ तप॑स्तप्यामह॒ उप॑ तप्यामहे॒ तपः॑। श्रु॒तानि॑ शृ॒ण्वन्तो॑ व॒यमायु॑ष्मन्तः सुमे॒धसः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑ । तप॑: । त॒प्या॒म॒हे॒ । उप॑ । त॒प्या॒म॒हे॒ । तप॑: । श्रु॒तानि॑ । शृ॒ण्वन्त॑: । व॒यम् । आयु॑ष्मन्त: । सु॒ऽमे॒धस॑: ॥६३.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने तपस्तप्यामह उप तप्यामहे तपः। श्रुतानि शृण्वन्तो वयमायुष्मन्तः सुमेधसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने । तप: । तप्यामहे । उप । तप्यामहे । तप: । श्रुतानि । शृण्वन्त: । वयम् । आयुष्मन्त: । सुऽमेधस: ॥६३.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 61; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    वेदविद्या प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (अग्ने) हे विद्वन् आचार्य ! हम (तपः) तप [द्वन्द्वसहन] (तप्यामहे) करते हैं, और (तपः) ब्रह्मचर्यादि व्रत (उप तप्यामहे) यथावत् साधते हैं। (श्रुतानि) वेदशास्त्रों को (शृण्वन्तः) सुनते हुए (वयम्) हम (आयुष्मन्तः) उत्तम जीवनवाले और (सुमेधसः) तीव्र बुद्धिवाले [हो जावें] ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य द्वन्द्वसहन और ब्रह्मचर्यसेवन से वेदों का श्रवण, मनन और निदिध्यासन करके संसार में कीर्त्तिमान् होवें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(तप्यामहे) साधयामः (श्रुतानि) वेदशास्त्राणि (शृण्वन्तः) श्रवणेन स्वीकुर्वन्तः। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥

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    विषय

    तप+श्रुत

    पदार्थ

    १.हे (अग्ने) = आचार्य [अग्निराचार्यस्तव] (तपसा) = [मनसश्चेन्द्रियाणां चैकारी तप उच्यते] मन व इन्द्रियों की एकाग्रता के साथ (तपः) = [तपः क्लेशसहिष्णुत्वम्] शीतोष्णादि का सहनरूप जो तप है, उस (तपः उपतप्यामहे) = तप को हम आपके समीप तपते हैं। इस तप से हम (भूतस्य प्रिया: भूयास्म) = ज्ञान के प्रिय बनें। इसप्रकार (आयुष्मन्तः) = प्रशस्त दीर्घजीवनवाले तथा (सुमधेस:) = उत्तम मेधावाले हों, उत्तम धारणा शक्तिवाले हों। २. हे (अग्ने) = आचार्य! (तप: तप्यामहे) = हम [कृच्छ्र चान्द्रायणादि व्रत] शीतोष्णसहनरूप तप करते हैं। (तपःउपतष्यामहे) = आपके समीप रहते हुए तप करते हैं। (श्रुतानि शृण्वन्त:) = वेदज्ञानों को सुनते हुए (वयम्) = हम (आयुष्मन्त:) = प्रशस्त दीर्घजीवनवाले बनें तथा (सुमेधसः) = उत्तम मेधावाले, धारणाशक्तियुक्त हों।

    भावार्थ

    आचार्यों के समीप रहते हुए ब्रह्मचारी 'तपस्वी' हों। शास्त्रज्ञानों का श्रवण करते हुए वे प्रशस्त दीर्घजीवनवाले व समेधा बनें।

    ज्ञानी बनकर यह कश्यप होता है, तत्त्व को देखनेवाला तथा वासनारूप शत्रुओं को मारनेवाला 'मरीचि' [म] बनता है। अगले दो सूक्तों का यही ऋषि है -

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    भाषार्थ

    (अग्ने) हे ज्ञानाग्निसम्पन्न आचार्य ! (वयम् तपः तप्यामहे) हम तप करते हैं, (उप) तेरे समीप रह कर (तपः तप्यामहे) तप करते हैं, ताकि (श्रुतानि, शृण्वन्तः) वेदों को सुनते हुए, (आयुष्मन्तः) दीर्घ और स्वस्थ आयु वाले, और (सुमेधसः) उत्तभ मेधा वाले हम हों।

    टिप्पणी

    [मेधा= धारणाशक्तिः (सायण); मेधा आशुग्रहणे (कण्ड्वादिः)]।

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    विषय

    तपस्या का व्रत।

    भावार्थ

    हे (अग्ने) ब्रह्मन् ! आचार्य ! ज्ञानमय, ज्ञानप्रकाशक ! हम (तपः) तप (तप्यामहे) करें, और (तपः) तपस्वरूप आत्मा और ब्रह्म की ही (उप तप्यामहे) उपासना या ज्ञान करें। हम (श्रुतानि) वेदवाक्यों का (शृण्वन्तः) श्रवण करते हुए (सु-मेधसः) उत्तम बुद्धि सम्पन्न और (आयुष्मन्तः) दीर्घायु होकर रहें।

    टिप्पणी

    ‘तप पर्यालोचने’ इति धातुपाठः। वेद का पर्यालोचन, साक्षात्कार और अनुशीलन करना ‘तप’ है। ऋत, सत्य, तप, शम, दम, यज्ञ, मनुष्यसेवा, प्रजोत्पादन, प्रजारक्षण, प्रजावर्धन और स्वाध्याय तथा प्रवचन करना यही तप है। राथीतर आचार्य सत्यपालन को तप कहते हैं। पौरुशिष्ट आचार्य ‘तप’ को ही तप कहते हैं। वास्तव में ऋत आदि सभी ‘तप’ हैं। ‘ऋतं’ तपः, सत्यं तपः, श्रुतं तपः, शान्तं तपो, दमस्तपः, शमस्तपः, दानं तपो यज्ञस्तपो, भूर्भुवः सुवर्ब्रह्मेतदुपास्वैतत्तपः। (तैत्तरीय आरण्यक प्रपा १०। अनु० ८) तैत्तिरीयारण्यक में ऋत आदि क्यों तप हैं इसकी विस्तृत व्याख्या देखने योग्य है। ‘मनसश्चेन्द्रियाणां चैकाग्रयं तप उच्यते’। मन और इन्द्रियों का दमन ही तप है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। अग्निर्देवता। अनुष्टुभौ। द्वयृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Intelligence by Tapas

    Meaning

    Agni, lord of light and Vedic wisdom, we undertake and pursue the discipline of tapas and austerity. We maintain and sustain the discipline with close watch without relent or reservation. Listening constantly to the words of Shruti, blest and beatified, let us grow on with good health, long age and high intelligence of the order of genius.

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    Translation

    O adorable Lord, we are practicing austerities: with determination’ we practice austerities. Listening the sacred texts, may we be long-living and goodly wise.

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.63.2AS PER THE BOOK

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    Translation

    O teacher! We observe and exercise that austerity which is observed with strict discipline, may we listening to the scripture become wise and live long life.

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    Translation

    O God, we practice acts austere, we undergo austerity. Listening to Holy Lore, may we grow wise and live long!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(तप्यामहे) साधयामः (श्रुतानि) वेदशास्त्राणि (शृण्वन्तः) श्रवणेन स्वीकुर्वन्तः। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥

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