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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 76 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 76/ मन्त्र 5
    ऋषिः - अथर्वा देवता - जायान्यः, इन्द्रः छन्दः - भुरिगनुष्टुप् सूक्तम् - गण्डमालाचिकित्सा सूक्त
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    वि॒द्म वै ते॑ जायान्य॒ जानं॒ यतो॑ जायान्य॒ जाय॑से। क॒थं ह॒ तत्र॒ त्वं ह॑नो॒ यस्य॑ कृ॒ण्मो ह॒विर्गृ॒हे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒द्म । वै । ते॒ । जा॒या॒न्य॒ । जान॑म् । यत॑: । जा॒या॒न्य॒ । जाय॑से । क॒थम् । ह॒ । तत्र॑ । त्वम् । ह॒न॒: । यस्य॑ । कृ॒ण्म: । ह॒वि: । गृ॒हे ॥८१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विद्म वै ते जायान्य जानं यतो जायान्य जायसे। कथं ह तत्र त्वं हनो यस्य कृण्मो हविर्गृहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विद्म । वै । ते । जायान्य । जानम् । यत: । जायान्य । जायसे । कथम् । ह । तत्र । त्वम् । हन: । यस्य । कृण्म: । हवि: । गृहे ॥८१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 76; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    १-५ रोगनाश

    पदार्थ

    (जायान्य) हे क्षयरोग ! (वै) निश्चय करके (ते) तेरा (जानम्) जन्मस्थान (विद्म) हम जानते हैं, (यतः) जहाँ से, (जायान्य) हे क्षयरोग ! (जायसे) तू उत्पन्न होता है। (त्वम्) तू (तत्र) वहाँ पर (कथम् ह) किस प्रकार से ही [मनुष्य को] (हनः) मार सकता है, (यस्य) जिसके (गृहे) घर में (हविः) ग्राह्य कर्म को (कृण्मः) हम करते हैं ॥५॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य रोगों का कारण जानकर पथ्य का सेवन और कुपथ्य का त्याग करते हैं, वे सदा स्वस्थ रहते हैं ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(विद्म) जानीमः (वै) अवश्यम् (ते) तव (जायान्य) म० ३। हे क्षयरोग (जानम्) जन-घञ्। जन्मस्थानम् (यतः) यस्मात् (जायान्य) (जायसे) उत्पद्यसे (कथम्) केन प्रकारेण (ह) अवश्यम् (तत्र) (त्वम्) (हनः) हन्तेर्लेटि अडागमः। हन्याः पुरुषम् (यस्य) पुरुषस्य (कृण्मः) कुर्मः (हविः) ग्राह्यं पथ्यं कर्म (गृहे) ॥

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    विषय

    अग्निहोत्र से राजयक्ष्मा का विनाश

    पदार्थ

    १. हे (जायान्य) = जाया-संभोग से उत्पन्न राजयक्ष्मा रोग! हम (ते जानम्) = तेरे उत्पत्ति-निदान [कारण] को (वै) = निश्चय से (विझ्) = जानते हैं। हे (जायान्य) = जाया-संभोगजनित रोग! (यतः जायसे) = जिस कारण से तू उत्पन्न होता है, उसे हम जानते हैं। २. तेरे कारण को जानते हुए हम (यस्य गृहे हविः कृण्म:) = जिसके घर में हवि अग्निहोत्र करते हैं, (तत्र) = वहाँ यह यजमान को (ह) = निश्चय से (त्वं कथं हन:) = तू किस प्रकार मार सकता है, अर्थात् जहाँ अग्निहोत्र होता है, वहाँ यह रोग नहीं पनप पाता।

    भावार्थ

    राजयक्ष्मा जाया-संभोग के अतिशय से उत्पन्न होता है। अग्निहोत्र के द्वारा इसका निवारण होता है। ['अग्नहोत्रेण प्रणुदा सपलान्।', "मुञ्चामि त्वा हविषा जीवनाय कमज्ञातयक्ष्मादुत राजयक्ष्मात्॥']

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    भाषार्थ

    हे जायान्य ! इस निश्चय से तेरे जन्म को जानते हैं, जहां से हे जायान्य! तू जन्म लेता है पैदा होता है। उसे१ कैसे तू हनन करे, जिसके गृह में हम हृविः [प्रदान] करते हैं।

    टिप्पणी

    [जायान्य=जाया के अतिभोग से उत्पन्न क्षय रोग। अग्नि में यक्ष्मनिवर्तक ओषधियों की आहुतियों से उत्पन्न धूम के सूंघने से क्षय रोग या यक्ष्मा की निवृत्ति शीघ्र हो जाती है। ओषधियों से उत्पन्न धूम, सूंघने द्वारा, ओषधि-धूम फेफड़ों में जाकर रक्त को ओषधि युक्त कर शरीरस्थ रोग का शीघ्र शमन कर देता है, ओषधि के खाने से रोगशमन देर से होता है। जायान्यः= जायायाः आनेयः, अथवा जायायाः जन्यः, "जकार" का लोप, क्षयरोग, यक्ष्मरोग]। [१. अथवा उस घर में तू किसी को भी कैसे मारे जिस के कि घर में हम हवि प्रदान करते हैं।]

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    विषय

    गण्डमाला की चिकित्सा और सुसाध्य के लक्षण।

    भावार्थ

    हे (जायान्य) क्षय रोग ! ते (जानं) तेरे उत्पन्न होने के विषय में (विद्म वै) हम निश्चय से जानते हैं कि तू हे (जायान्य) क्षय ! (यतः) जहां से (जायसे) उत्पन्न होता है। (त्वं) तू (तत्र) वहां (कथं) किस प्रकार (हनः) हानि कर सकता है (यस्य) जिसके (गृहे) घर में हम विद्वान् लोग (हविः) नाना ओषधियों से या रोग नाशक हवि या चरु को बनाकर उससे (कृण्मः) अग्निहोत्र करते हैं अर्थात् रोग नाशक हवि = चरु या अन्न द्वारा इस क्षय रोग को निकाल डालने पर सब प्रकार से क्षय दूर हो जाते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। अपचित-भिषग् देवता। १ विराड् अनुष्टुप्। ३, ४ अनुष्टुप्। २ परा उष्णिक्। ५ भुरिग् अनुष्टुप्। ६ त्रिष्टुप्। षडर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Cure of Excrescences

    Meaning

    O Jay any a, sexual contagion, we know the basic cause from which you arise and infect, where and how you can kill, and of that we provide the home cure.

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    Translation

    O consumptive disease (got through wife), we know your origin, wherefrom, O consumptive disease, you are born. How could you smite there, in whose house we perform sacrifice?

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.81.1AS PER THE BOOK

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    Translation

    I, the physician know the cause of scrofula and hence does it springs out. How can it strike the man in whose house we perform yajna and offer oblation.

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    Translation

    We know thine origin, consumption, know whence thou, consumption art born. How can’st thou strike this man here, in whose house we perform Homa (sacrifice).

    Footnote

    Consumption cannot attack the inmates of a house, where Havan is daily performed as the germ-killing ingredients of the provisions of Havan, keep the disease away.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(विद्म) जानीमः (वै) अवश्यम् (ते) तव (जायान्य) म० ३। हे क्षयरोग (जानम्) जन-घञ्। जन्मस्थानम् (यतः) यस्मात् (जायान्य) (जायसे) उत्पद्यसे (कथम्) केन प्रकारेण (ह) अवश्यम् (तत्र) (त्वम्) (हनः) हन्तेर्लेटि अडागमः। हन्याः पुरुषम् (यस्य) पुरुषस्य (कृण्मः) कुर्मः (हविः) ग्राह्यं पथ्यं कर्म (गृहे) ॥

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