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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 80 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 80/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - पौर्णमासी छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पूर्णिमा सूक्त
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    वृ॑ष॒भं वा॒जिनं॑ व॒यं पौ॑र्णमा॒सं य॑जामहे। स नो॑ ददा॒त्वक्षि॑तां र॒यिमनु॑पदस्वतीम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वृ॒ष॒भम् । वा॒जिन॑म् । व॒यम् । पौ॒र्ण॒ऽमा॒सम् । य॒जा॒म॒हे॒ । स: । न॒: । द॒दा॒तु॒ । अक्षि॑ताम् । र॒यिम् । अनु॑पऽदस्वतीम् ॥८५.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वृषभं वाजिनं वयं पौर्णमासं यजामहे। स नो ददात्वक्षितां रयिमनुपदस्वतीम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वृषभम् । वाजिनम् । वयम् । पौर्णऽमासम् । यजामहे । स: । न: । ददातु । अक्षिताम् । रयिम् । अनुपऽदस्वतीम् ॥८५.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 80; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ईश्वर के गुणों का उपदेश

    पदार्थ

    (वयम्) हम लोग (वृषभम्) सर्वश्रेष्ठ, (वाजिनम्) महाबलवान् (पौर्णमासम्) पौर्णमास [सम्पूर्ण परिमेय पदार्थों के आधार परमेश्वर] को (यजामहे) पूजते हैं। (सः) वह (नः) हमें (अक्षिताम्) विना घटी हुई और (अनुपदस्वतीम्) बिना घटनेवाली (रयिम्) सम्पत्ति (ददातु) देवे ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य सर्वशक्तिमान् परमेश्वर की उपासना करके पुरुषार्थ के साथ ऐश्वर्यवान् होवें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(वृषभम्) अ० ४।५।१। सर्वश्रेष्ठम् (वाजिनम्) महाबलिनम् (वयम्) (पौर्णमासम्)-म० १। सम्पूर्णपरिमेयपदार्थाधारं परमेश्वरम् (यजामहे) पूजयामः (सः) पौर्णमासः (नः) अस्मभ्यम् (ददातु) (अक्षिताम्) अक्षीणाम् (रयिम्) सम्पत्तिम् (अनुपदस्वतीम्) उपभोगेऽपि क्षयरहिताम् ॥

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    विषय

    'वृषभ, वाजी, पौर्णमास' प्रभु का पूजन

    पदार्थ

    १. (वयम्) = हम (वृषभम) = सब सुखों का वर्षण करनेवाले, (वाजिनम) = शक्तिशाली (पौर्णमासम) = पौर्णमासी के चन्द्र के समान उस षोडशी प्रभु [प्रजापतिः प्रजया सरराणस्त्रीणि ज्योतीषी सचते स षोडशी-य० ३२॥५] को (यजामहे) = पूजित करते हैं। (सः) = वे प्रभु (न:) = हमारे लिए उस (रयिम्) = सम्पत्ति को (ददातु) = दें, जो (अक्षिताम्) = अविनाशित है-किसी से नष्ट नहीं की जा सकती तथा (अनुपदस्वतीम्) = आवश्यक उपभोगों में व्यय होती हुई भी क्षयरहित है।

    भावार्थ

    हम 'वृषभ, वाजी व पौर्णमास' प्रभु का पूजन करें। वे हमें न क्षीण होनेवाली सम्पत्ति प्राप्त कराएँ।

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    भाषार्थ

    (वृषभम्) आनन्दरस की वर्षा करने वाले, (वाजिनम्) बलशाली, (पौर्णमासम्) पूर्णमासी के चन्द्रमा के सदृश प्रकाश वाले परमेश्वर का (वयं यजामहे) हम यजन करते हैं, उसकी पूजा, उसका संग तथा उस के प्रति आत्मसमर्पण करते हैं। (सः) वह परमेश्वर (नः) हमें (अक्षिताम्) न क्षीण होने वाली, (अनुपदस्वतीम्) अविनाशिनी (रयिम्) सम्पत्ति (ददातु) दे।

    टिप्पणी

    [वाजवाजः= वाजः बलननिघंनिघं० २।९)। यजामहे= यज देवपूजा संगतिकरणदानेषु (भ्वादिः)। रयिम्= मोक्षसुख। "पौर्णमासम्" द्वारा परमेश्वर को शीतल प्रकाश वाला कहा है, और यजु० ३१।१८ में “आदित्यवर्णम्" द्वारा उग्रप्रकाशवान् कहा है। परमेश्वर के ये दोनों रूप समय-समय पर प्रकट होते रहते हैं]।

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    विषय

    परमपूर्ण ब्रह्मशक्ति।

    भावार्थ

    (पौर्णमासम्) समस्त संसार के रचयिता (वाजिनम्) सर्व शक्तिमान् (वृषभम्) सब सुखों के वर्षक, प्रभु परमेश्वर की (वयं) हम (यजामहे) उपासना करते हैं। (सः) वह (नः) हमें (अनुपदस्वतीम्) कभी किसी के प्रयत्न से भी न क्षीण होनेवाली और स्वयं भी (अक्षिताम्) अक्षय (रयिम्) शक्ति का (ददातु) प्रदान करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। पौर्णमासी प्रजापतिर्देवता। १, ३, ४ त्रिष्टुप्। ४ अनुष्टुप्।चतुर्ऋचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Purnima

    Meaning

    We honour, adore and join the virile, all conquering full moon of the night of light divine, spirit of the light of life. May the light divine give us unviolated, inviolable and imperishable wealth, honour and excellence of life.

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    Translation

    We worship the Lord of the full moon’s night. the showerer (of desired objects) and bestower of vigour (vigorous and speedy). May He grant us undecaying and never-exhausting riches.

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.85.2AS PER THE BOOK

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    Translation

    We perform the yajna which is assigned to Purnamasi, the full-moon’s night and which showers Prosperity and gives plenty of grain. May this yajna bestow upon us the unwanting and inexhaustible wealth.

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    Translation

    We-worship the Most Exalted, Omnipotent God, the Creator of the universe. May He bestow upon us wealth unwasting, inexhaustible.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(वृषभम्) अ० ४।५।१। सर्वश्रेष्ठम् (वाजिनम्) महाबलिनम् (वयम्) (पौर्णमासम्)-म० १। सम्पूर्णपरिमेयपदार्थाधारं परमेश्वरम् (यजामहे) पूजयामः (सः) पौर्णमासः (नः) अस्मभ्यम् (ददातु) (अक्षिताम्) अक्षीणाम् (रयिम्) सम्पत्तिम् (अनुपदस्वतीम्) उपभोगेऽपि क्षयरहिताम् ॥

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