Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 1 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 13
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - आयु छन्दः - त्रिपदा भुरिङ्महाबृहती सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
    1

    बो॒धश्च॑ त्वा प्रतीबो॒धश्च॑ रक्षतामस्व॒प्नश्च॑ त्वानवद्रा॒णश्च॑ रक्षताम्। गो॑पा॒यंश्च॑ त्वा॒ जागृ॑विश्च रक्षताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बो॒ध: । च॒ । त्वा॒ । प्र॒ति॒ऽबो॒ध: । च॒ । र॒क्ष॒ता॒म् । अ॒स्व॒प्न: । च॒ । त्वा॒ । अ॒न॒व॒ऽद्रा॒ण: । च॒ । र॒क्ष॒ता॒म् । गो॒पा॒यन् । च॒ । त्वा॒ । जागृ॑वि: । च॒ । र॒क्ष॒ता॒म् ॥१.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बोधश्च त्वा प्रतीबोधश्च रक्षतामस्वप्नश्च त्वानवद्राणश्च रक्षताम्। गोपायंश्च त्वा जागृविश्च रक्षताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बोध: । च । त्वा । प्रतिऽबोध: । च । रक्षताम् । अस्वप्न: । च । त्वा । अनवऽद्राण: । च । रक्षताम् । गोपायन् । च । त्वा । जागृवि: । च । रक्षताम् ॥१.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 1; मन्त्र » 13
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य कर्त्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (बोधः) बोध [विवेक] (च) और (प्रतीबोधः) प्रतिबोध [चेतनता] (च) निश्चय करके (त्वा) तेरी (रक्षताम्) रक्षा करें, (अस्वप्नः) न सोनेवाले (च) और (अनवद्राणः) न भागनेवाले [दोनों] (त्वा) तेरी (च) निश्चय करके (रक्षताम्) रक्षा करें। (गोपायन्) चौकसी करनेवाले (च) और (जागृविः) जागनेवाले [दोनों] (च) अवश्य (त्वा) तुझको (रक्षताम्) बचावें ॥१३॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को विवेक और चेतनापूर्वक सावधान रहकर रक्षा करनी चाहिये ॥१३॥ इस मन्त्र का मिलान करो-अ० ५।३०।१० ॥

    टिप्पणी

    १३−(बोधः) विवेकः (च) समुच्चये (त्वा) त्वाम् (प्रतीबोधः) चेतना (च) निश्चयेन (रक्षताम्) पालयताम् (अस्वप्नः) अनिद्रः (च) (त्वा) (अनवद्राणः) द्रा स्वप्ने पलायने च−क्र। संयोगादेर्धातोर्यण्वतः। पा० ८।२।४३। तस्य नः। पलायमानः (गोपायन्) गोपायिता (जागृविः) अ० ५।३०।१०। जागरूकः। अन्यत्सुगमम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    षड् देवाः

    पदार्थ

    १. (बोधः च प्रतिबोध: च) = बोध और प्रतिबोध (त्वा रक्षताम्) = तेरा रक्षण करें। वस्तुओं का ज्ञान 'बोध' कहाता है और प्रत्येक वस्तु में प्रभु की महिमा का ज्ञान 'प्रतिबोध' शब्द से कहा जाता है। जब हम किसी भी वस्तु का ज्ञान प्राप्त करते हैं, उस समय उसकी रचना व गुणों में विचित्रता देखते हुए हमें प्रभु की महिमा का भी स्मरण होता है। ऐसा होने पर हम उस वस्तु का ठीक ही प्रयोग करते हैं, उसका अयोग ब अतियोग न करके ठीक ही योग करनेवाले बनते हैं। यह यथायोग ही हमारा रक्षण करता है। २. (अस्वप्न: च) = न सो जाना (अनवद्राण: च) = और कुटिल गतिवाला न होना-ये भी (त्वा रक्षताम्) = तेरा रक्षण करें। हम सो न जाएँ, साथ ही गति को कुटिल भी न होने दें। 'सो जाना' तामसी बृत्ति है, 'कुटिलगति' राजसी वृत्ति है। इनसे ऊपर उठकर हम सात्त्विकी वृत्तिवाले बनें। यही वृत्ति हमारा रक्षण करती है। ३. (गोपायन् च) = शरीर का रक्षण करता हुआ यह सात्त्विकभाव (च) = तथा (जागृवि:) =  जागरित रहना-प्रमादी होकर कर्तव्य-कर्मों से विमुख नहीं होना-ये दोनों भाव भी (त्वा रक्षताम्) = तेरा रक्षण करें। हम जीवन-यात्रा में सदा अपना रक्षण करनेवाले तथा नीरोग बनें, जागते हुए रहें, जिससे कामादि शत्रुओं के शिकार न हो जाएँ।

    भावार्थ

    'बोध-प्रतिबोध', 'अस्वप्न-अनवद्राण' तथा 'गोपायन और जाग्रवि' हमारा रक्षण करें। ये क्रमश: 'प्राणापान, मन, बुद्धि और चक्षुईय' के अभिमानी देव हैं। ये हमारा रक्षण करें।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (बोधः१ च) इन्द्रियजन्य ज्ञान (प्रतीबोधः१ च) और योगसमाधिजन्य प्रातिभज्ञान (त्वा) तेरी (रक्षताम्) रक्षा करें, (अस्वप्नः च) स्वप्नों से रहित निद्रा (अनवद्राणः च) तथा [दिन में] निद्रा न करना (त्वा) तेरी (रक्षताम्) रक्षा करें। (गोपायन्) आत्मरक्षा करना (जागृविः च) और जागरूक अर्थात् सावधान रहना (त्वा रक्षताम्) तेरी रक्षा करें।

    टिप्पणी

    [गोपायन्= गुप् धातु रक्षार्थ, अथवा गो (इन्द्रियां) + पायन (रक्षा)। इन्द्रियों की रक्षा अर्थात् इन्द्रियों को विषयों में न जाने देना। मन्त्र में उपनीत माणवक को निर्देश दिये गए हैं। अनवद्राणः = निद्रारहितः (सायण)। ब्रह्मचारी के लिये कहा है कि "दिवा मा स्वाप्सीः"। कि तू दिन में न सोया कर। गोपायन्= गो (इन्द्रियां) +पा (रक्षणे) + युक् + शत; आतो युक् चिण्कृतोः (अष्टा० ७।३।३३)]। [१. "ऋषी बोधप्रतीबोधावस्वप्नो यश्च जागृवि" (अथर्व० ५।३०।१०)।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Long Life

    Meaning

    May knowledge and knowledge confirmed by experience both protect you. Let the wakeful and the steadfast guard you. Let the preserver, protector and the guardian save and protect you.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May the awake and attentive guard you; may the undrowsy and the unsleepy guard you. May the saviour and the wakeful guard you.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May the vital air called Prana and udana protect you, may they which are ever wakeful and slumber less save you and let both of them guarding you like warders keep you safe.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May the teacher, the imparter of knowledge, and the preacher, the propagator of learning protect thee. May sleepless watchman and the high charactered Acharya, who never resorts to low and mean devices, protect thee. May thy guardian and wakeful sentry protect thee.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १३−(बोधः) विवेकः (च) समुच्चये (त्वा) त्वाम् (प्रतीबोधः) चेतना (च) निश्चयेन (रक्षताम्) पालयताम् (अस्वप्नः) अनिद्रः (च) (त्वा) (अनवद्राणः) द्रा स्वप्ने पलायने च−क्र। संयोगादेर्धातोर्यण्वतः। पा० ८।२।४३। तस्य नः। पलायमानः (गोपायन्) गोपायिता (जागृविः) अ० ५।३०।१०। जागरूकः। अन्यत्सुगमम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top