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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 21
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
    1

    व्यवात्ते॒ ज्योति॑रभू॒दप॒ त्वत्तमो॑ अक्रमीत्। अप॒ त्वन्मृ॒त्युं निरृ॑ति॒मप॒ यक्ष्मं॒ नि द॑ध्मसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि । अ॒वा॒त् । ते॒ । ज्योति॑: । अ॒भू॒त् । अप॑ । त्वत् । तम॑: । अ॒क्र॒मी॒त् । अप॑ । त्वत् । मृ॒त्युम् । नि:ऽऋ॑तिम् । अप॑ । यक्ष्म॑म् । नि । द॒ध्म॒सि॒ ॥१.२१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    व्यवात्ते ज्योतिरभूदप त्वत्तमो अक्रमीत्। अप त्वन्मृत्युं निरृतिमप यक्ष्मं नि दध्मसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वि । अवात् । ते । ज्योति: । अभूत् । अप । त्वत् । तम: । अक्रमीत् । अप । त्वत् । मृत्युम् । नि:ऽऋतिम् । अप । यक्ष्मम् । नि । दध्मसि ॥१.२१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 1; मन्त्र » 21
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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य कर्त्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे मनुष्य !] (ते) तेरे लिये (ज्योतिः) ज्योति (वि) विविध प्रकार (अवात्) आई है और (अभूत्) उपस्थित हुई है, (त्वत्) तुझसे (तमः) अन्धकार (अप अक्रमीत्) चल दिया है। (त्वत्) तुझसे (मृत्युम्) मृत्यु को और (निर्ऋतिम्) अलक्ष्मी को (अप) अलग और (यक्ष्मम्) राजरोग को (अप) अलग (नि दध्मसि) हम धरते हैं ॥२१॥

    भावार्थ

    मनुष्य वेदद्वारा अज्ञान का नाश करके दुःखों और क्लेशों से छूट कर नीरोग होकर आनन्द भोगें ॥२१॥

    टिप्पणी

    २१−(वि) विविधम् (अवात्) वा गतिगन्धनयोः-लङ्। अगच्छत् (ते) तुभ्यम् (ज्योतिः) प्रकाशः (अभूत्) उपस्थितमभूत् (त्वत्) त्वत्तः (तमः) अन्धकारः। अबोधः (अप अक्रमीत्) अपक्रान्तमभूत् (अप) पृथक्-करणे (त्वत्) (मृत्युम्) प्राणनाशकं दुःखम् (निर्ऋतिम्) कृच्छ्रापत्तिम् (अप) (यक्ष्मम्) राजरोगम् (नि दध्मसि) निदध्मः। नीचैः स्थापयामः ॥

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    विषय

    "निर्ऋति, यक्ष्म व मृत्यु' का निराकरण

    पदार्थ

    १.हे संज्ञाविहीन पुरुष! (ते) = तेरे लिए (वि अवात) = यह विशिष्ट वायु का प्रवाह बहा है। तेरी मूर्छा दूर हो गई है और (ज्योतिः अभूत) = प्रकाश-ही-प्रकाश हो गया है। (त्वम्) = तुझसे (तमः अप अक्रमीत्) = अन्धकार सुदूर चला गया है। २. (त्वत्) = तुझसे (मृत्युम्) = मृत्यु को तथा (निर्ऋतिम्) = मृत्यु को कारणभूत दुर्गति को (अप निदध्मसि) = दूर स्थापित करते हैं। मृत्यु के निवारण के लिए ही (यक्ष्मम्) = सब रोगों को अप [निदध्मसि]-दूर स्थापित करते हैं।

    भावार्थ

    दुराचार में फंसने पर रोगों से आक्रान्त होकर मनुष्य मृत्यु का शिकार हो जाता है, अत: हम दुराचार व रोगों को दूर करके मृत्य को दूर करते हैं।

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    भाषार्थ

    (ते) तेरा (तमः) [मूर्च्छा सम्बन्धी] अन्धकार (व्यवात्) विगत हो गया है, (ज्योतिः अभूत्) और जीवन ज्योति प्रकट हो गई है, (त्वत्) तुझ से (तमः) अन्धकार (अप अक्रमीत) अपक्रान्त हो गया है, हट गया है। (त्वत्) तुझसे (मृत्युम्) मृत्यु को (अप) अलग (निदध्मसि) हम कर देते हैं, (निर्ऋतिम्) कष्टापत्ति को (अप) अलग कर देते हैं, (यक्ष्मम्) यक्ष्मरोग को [अप] अलग कर देते हैं।

    टिप्पणी

    [व्यवात् = वि + अवात् (अट् + वात्) वा गतिगन्धनयोः (अदादिः) = विगत हो गया है, नष्ट हो गया है]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Long Life

    Meaning

    Light is come back to you in all its variety. Darkness and delirium has gone off from you. We throw out untimely death, calamity and consumption far away from you.

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    Translation

    The life has breathed in; the light has come to you; the darkness has crept away from you. May we remove you from death, perdition and the wasting disease. (yaksmam)

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    Translation

    O ailing man! light has dawned upon you, it is present! in you and the darkness hath fled away from you. I, the physician keep the death, destruction decline away from you.

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    Translation

    Life hath breathed on thee; light hath come: darkness hath past awayfrom thee. Far from thee we have removed poverty, death and consumption.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २१−(वि) विविधम् (अवात्) वा गतिगन्धनयोः-लङ्। अगच्छत् (ते) तुभ्यम् (ज्योतिः) प्रकाशः (अभूत्) उपस्थितमभूत् (त्वत्) त्वत्तः (तमः) अन्धकारः। अबोधः (अप अक्रमीत्) अपक्रान्तमभूत् (अप) पृथक्-करणे (त्वत्) (मृत्युम्) प्राणनाशकं दुःखम् (निर्ऋतिम्) कृच्छ्रापत्तिम् (अप) (यक्ष्मम्) राजरोगम् (नि दध्मसि) निदध्मः। नीचैः स्थापयामः ॥

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