Sidebar
अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 6 के मन्त्र
1 - 1
1 - 2
1 - 3
1 - 4
1 - 5
1 - 6
1 - 7
1 - 8
1 - 9
1 - 10
1 - 11
1 - 12
1 - 13
1 - 14
1 - 15
1 - 16
1 - 17
2 - 1
2 - 2
2 - 3
2 - 4
2 - 5
2 - 6
2 - 7
2 - 8
2 - 9
2 - 10
2 - 11
2 - 12
2 - 13
3 - 1
3 - 2
3 - 3
3 - 4
3 - 5
3 - 6
3 - 7
3 - 8
3 - 9
4 - 1
4 - 2
4 - 3
4 - 4
4 - 5
4 - 6
4 - 7
4 - 8
4 - 9
4 - 10
5 - 1
5 - 2
5 - 3
5 - 4
5 - 5
5 - 6
5 - 7
5 - 8
5 - 9
5 - 10
6 - 1
6 - 2
6 - 3
6 - 4
6 - 5
6 - 6
6 - 7
6 - 8
6 - 9
6 - 10
6 - 11
6 - 12
6 - 13
6 - 14
मन्त्र चुनें
अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 7
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - अतिथिः, विद्या
छन्दः - साम्नी भुरिग्बृहती
सूक्तम् - अतिथि सत्कार
1
वि॒द्योत॑मानः॒ प्रति॑ हरति॒ वर्ष॒न्नुद्गा॑यत्युद्गृ॒ह्णन्नि॒धन॑म्। नि॒धनं॒ भूत्याः॑ प्र॒जायाः॑ पशू॒नां भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
स्वर सहित पद पाठवि॒ऽद्योत॑मान: । प्रति॑ । ह॒र॒ति॒ । वर्ष॑न् । उत् । गा॒य॒ति॒ । उ॒त्ऽगृ॒ह्णन् । नि॒ऽधन॑म् । नि॒ऽधन॑म् । भूत्या॑: । प्र॒ऽजाया॑: । प॒शू॒नाम् । भ॒व॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥१०.७॥
स्वर रहित मन्त्र
विद्योतमानः प्रति हरति वर्षन्नुद्गायत्युद्गृह्णन्निधनम्। निधनं भूत्याः प्रजायाः पशूनां भवति य एवं वेद ॥
स्वर रहित पद पाठविऽद्योतमान: । प्रति । हरति । वर्षन् । उत् । गायति । उत्ऽगृह्णन् । निऽधनम् । निऽधनम् । भूत्या: । प्रऽजाया: । पशूनाम् । भवति । य: । एवम् । वेद ॥१०.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
अतिथि के सत्कार का उपदेश।
पदार्थ
(तस्मै) उस [गृहस्थ] के लिये (भवन्) घिरा हुआ (अभ्रः) मेघ (हिङ्) तृप्ति कर्म (कृणोति) करता है, (स्तनयन्) गरजता हुआ (प्र) अच्छी भाँति (स्तौति) स्तुति करता है। और (विद्योतमानः) [बिजुली से] चमचमाता हुआ (निधनम्) निधि (प्रति) प्रत्यक्ष (हरति) प्राप्त कराता है, और (वर्षन्) बरसता हुआ [मेघ, निधि को] (उद्गृह्णन्) थाँभता हुआ (उत् गायति) उद्गीथ [वेदगान] करता है। [उसके लिये] (भूत्याः) वैभव का, (प्रजायाः) प्रजा.... म० १-३ ॥६, ७॥
भावार्थ
मनुष्य तत्त्वदर्शी अतिथियों के ज्ञान से वर्षा का तत्त्वज्ञान प्राप्त करके सुखी होता है ॥६, ७॥
टिप्पणी
६, ७−(अभ्रः) अ० ४।१५।१। मेघः (भवन्) व्याप्नुवन् (स्तनयन्)) गर्जन् सन् (विद्योतमानः) विद्युता विविधं दीप्यमानः (वर्षन्) वृष्टिं कुर्वन् (उद्गृह्णन्) उत्कर्षेण धारयन्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
मेघ द्वारा आतिथ्य करनेवाले का शंसन
पदार्थ
१. (तस्मै) = उस अतिथि-सत्कार करनेवाले के लिए (अभ्र: भवन् हिड्कृणोति) = उत्पन्न होने वाला मेघ आनन्द का सन्देश देता है। (स्तनयन् प्रस्तौति) = गर्जना करनेवाला मेघ उसकी प्रशंसा करता है। (विद्योतमानः प्रतिहरति) = विद्युत् से प्रकाशित होनेवाला मेष उसे पुष्टि देता है, (वर्षन् उद्गायति) = वृष्टि करता हुआ मेघ इसका गुणगान करता है, (उगृह्णन्) = जल को ऊपर उठाता हुआ मेघ (निधनम्) = आश्रय देता है। २. (एवम्) = इसप्रकार अतिथियज्ञ के महत्त्व को (यः वेद) = जो समझता है, वह (भूत्या: प्रजायाः पशूनाम्) = सम्पत्ति, प्रजा व पशुओं का (निधनम् भवति) = आश्रयस्थान बनता है।
भावार्थ
मेष भी अपनी पाँचों स्थितियों में उस आतिथ्य करनेवाले के यश को उज्वल करता, विस्तृत करता, गायन करता, उसे सब पदार्थ प्राप्त कराता तथा उसे सब पदार्थों से सम्पन्न करता है। इसप्रकार अतिथियज्ञ का कर्ता सम्पत्ति, प्रजा व पशुओं का आश्रयस्थान बनता है।
भाषार्थ
(तस्मै) उस अतिथिपति के लिये (अभ्रः भवन्) मेघ होता हुआ (हिङ्कृणोति) हिंङ शब्द का उच्चारण करता है, (स्तनयन प्रस्तौति) गर्जता हुआ प्रस्ताव करता है, गान आरम्भ करता है, (वर्षन उद्गायति) बरसता हुआ ऊच्चैः गान अर्थात् उद्गीथ करता है, (विद्योतमानः प्रतिहरति) विद्युत् रूप में चमकता हुआ प्रतिहार अर्थात् उपसंहार करता है, (उद्गृह्णन्१ निधनम्) वर्षा के पश्चात् अन्तरिक्ष में ऊपर चढ़ा हुआ (निधनम्) सामगान की सम्पूर्णता करता है। (यः एवं विद्वान्) जो अतिथिपति इस प्रकार जानता है वह (भूत्याः, प्रजायाः पशूनाम्) सम्पत्ति का, प्रजा का, पशुओं का (निधनम् भवति) निधिरूप हो जाता है।
टिप्पणी
[निधनम् = नितरां धनं यस्मिन् तत्। मन्त्र ७ में "उद्गायति" से पहिले "प्रतिहरति" का वर्णन या तो अथर्ववेदपाठी द्वारा या छापे खाने द्वारा हुआ प्रतीत होता है। यह स्थान विपर्यास है]। [१. मेघ में जब पानी भरा रहता है तो भारी होने से मेघ वायुमण्डल के नीचे के स्तर में हुआ वर्षा करता है, धीर वर्षा के पश्चात् हलका होकर वायुमण्डल के ऊपर के स्तरों में चढ़ जाता है।]
इंग्लिश (4)
Subject
Atithi Yajna: Hospitality
Meaning
While raining in showers, it sings the Udgitha. Flashing with lightning, it sings the Pratihara. And when it rises and floats away after rain, it sings the Nidhana. Thus does the host that knows this and the law and etiquette of holy hospitality acquire plenty of prosperity, family and friends, and the wealth of cattle.
Translation
For him the cloud, while forming chants hin; while thundering it sings the prelude; while lightning it joins in; while raining it chants loudly; while petering out (disappearing) it sings the finale; he, who knows this, becomes the abode of prosperity, of progeny, and of cattle (Abhrah formation - hiñkara; Thundering - prastoty; Lightning - pratiharty; Raining - udgaty; Peteringout. nidhana)
Translation
6+7. For him who knows the essential of this. Atithi Yajna, the cloud prtesent murmurs Hinkara, the thundering cloud sings prastava, the cloud having lightning sings the notee of Pratihara raining sings Udgatri Saman staying down Pour sings Nidhana and to him comes the planty of prosperity, progeny and cattle.
Translation
For the householder who knows how to honor a guest, the would-be cloud brings the message of joy, the thundering cloud sings praise, the lightening cloud grants nourishment, the raining cloud chants his virtues, the cloud grants shelter when it stays the downpour. He becomes the abiding place of welfare, of progeny, and of cattle.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६, ७−(अभ्रः) अ० ४।१५।१। मेघः (भवन्) व्याप्नुवन् (स्तनयन्)) गर्जन् सन् (विद्योतमानः) विद्युता विविधं दीप्यमानः (वर्षन्) वृष्टिं कुर्वन् (उद्गृह्णन्) उत्कर्षेण धारयन्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal