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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 64 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 64/ मन्त्र 12
    ऋषिः - प्रगाथः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    तम॒द्य राध॑से म॒हे चारुं॒ मदा॑य॒ घृष्व॑ये । एही॑मिन्द्र॒ द्रवा॒ पिब॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । अ॒द्य । राध॑से । म॒हे । चारु॑म् । मदा॑य । घृष्व॑ये । आ । इ॒हि॒ । ई॒म् । इ॒न्द्र॒ । द्रव॑ । पिब॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तमद्य राधसे महे चारुं मदाय घृष्वये । एहीमिन्द्र द्रवा पिब ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । अद्य । राधसे । महे । चारुम् । मदाय । घृष्वये । आ । इहि । ईम् । इन्द्र । द्रव । पिब ॥ ८.६४.१२

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 64; मन्त्र » 12
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 45; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    हम उपासक (अद्य) आज (चारुम्) परमसुन्दर (तम्) उस परमदेव की स्तुति करते हैं, (राधसे) धन और आराधना के लिये (मदाय) आनन्द के लिये और (घृष्वये) निखिल शत्रु के विनाश के लिये उसकी उपासना करते हैं । (इन्द्र) हे इन्द्र ! वह तू (ईम्) इस समय (एहि) आ, (द्रव) कृपा कर और (पिब) कृपादृष्टि से देख ॥१२ ॥

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