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अथर्ववेद > काण्ड 3 > सूक्त 16

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  • अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 16/ मन्त्र 3
    सूक्त - अथर्वा देवता - भगः, आदित्याः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - कल्याणार्थप्रार्थना

    भग॒ प्रणे॑त॒र्भग॒ सत्य॑राधो॒ भगे॒मां धिय॒मुद॑वा॒ दद॑न्नः। भग॒ प्र णो॑ जनय॒ गोभि॒रश्वै॒र्भग॒ प्र नृभि॑र्नृ॒वन्तः॑ स्याम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भग॑ । प्रऽने॑त: । भग॑ । सत्य॑ऽराध: । भग॑ । इ॒माम् । धिय॑म् । उत् । अ॒व॒ । दद॑त् । न॒: । भग॑ । प्र । न॒: । ज॒न॒य॒ । गोभि॑: । अश्वै॑: । भग॑ । प्र । नृऽभि॑: । नृ॒ऽवन्त॑: । स्या॒म॒ ॥१६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भग प्रणेतर्भग सत्यराधो भगेमां धियमुदवा ददन्नः। भग प्र णो जनय गोभिरश्वैर्भग प्र नृभिर्नृवन्तः स्याम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भग । प्रऽनेत: । भग । सत्यऽराध: । भग । इमाम् । धियम् । उत् । अव । ददत् । न: । भग । प्र । न: । जनय । गोभि: । अश्वै: । भग । प्र । नृऽभि: । नृऽवन्त: । स्याम ॥१६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 16; मन्त्र » 3

    मन्त्रार्थ -
    आध्यात्मिक दृष्टि-(प्रणेत:-भग) हे जगद्रचयिता भगवन् 'भग-इत्यकारो मत्वर्थीयः' (सत्यराघः-भग) हे सत्य धन वाले भगवन् ! (इमां धियं ददत्) इस बुद्धि को देता हुआ (नः-उदव) हमें उन्नत कर (भग गोभिः-अश्वैः-नः प्रजनय) भगवन् ! गौ आदि दुधारी पशुओं से और घोड़े आदि वाहक पशुओं के द्वारा हमें बढा (भग वृभिः- नृवन्तः स्याम) भगवन् ! प्रशस्त पारिवारिक जनों से हम जनवाले हों ॥ व्यावहारिक दृष्टि- (भग प्रणेतः) हे ऐश्वर्य ! तू सब कार्य के प्रणनय कर्ता ! (भग सत्यराधः) हे ऐश्वर्य ! तू सत्य धन है (इमां धियं ददत्) इस बुद्धि को देता हुआ (नः-उदव) हमें उन्नत कर हमारे द्वारा श्रेष्ठ कर्मों में व्यय हो (भग गोभिः-अश्वैः-नः प्रजनय) हे ऐश्वर्य तू गौ आदि दुधारी पशुओं और घोड़े आदि वाहक पशुओं के द्वारा हमें बढा - हमें गौ घोड़ों वाला बना (नृभिः-नवन्तः-स्याम ) प्रशस्त मित्र आदि जनवाले 'कार्य समर्थ हों' ॥३॥

    विशेष - अथर्ववेदानुसार ऋषि:- अथर्वा (स्थिरस्वभाव जन) देवता- लिङ्गोक्ता: (मन्त्रों में कहे गए नाम शब्द) ऋग्वेदानु सार ऋषिः- वसिष्ठ: (अत्यन्तवसने वाला उपासक) देवता- १ मन्त्रे लिङ्गोक्ताः (मन्त्रगत नाम) २–६ भग:- (भजनीय भगवान्) ७ उषाः (कमनीया या प्रकाशमाना प्रातर्वेला) आध्यात्मिक दृष्टि से सूक्त में 'भग' देव की प्रधानता है बहुत पाठ होने से तथा 'भग एव भगवान्' (५) मन्त्र में कहने से, भगवान् ही भिन्न-भिन्न नामों से भजनीय है। तथा व्यावहारिक दृष्टि से भिन्न-भिन्न पदार्थ हैं व्यवहार में भिन्न-भिन्न रूप में उपयुक्त होने से।

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