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अथर्ववेद > काण्ड 3 > सूक्त 16

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  • अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 16/ मन्त्र 4
    सूक्त - अथर्वा देवता - इन्द्रः छन्दः - भुरिक्पङ्क्तिः सूक्तम् - कल्याणार्थप्रार्थना

    उ॒तेदानीं॒ भग॑वन्तः स्यामो॒त प्र॑पि॒त्व उ॒त मध्ये॒ अह्ना॑म्। उ॒तोदि॑तौ मघव॒न्त्सूर्य॑स्य व॒यं दे॒वानां॑ सुम॒तौ स्या॑म ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त । इ॒दानी॑म् । भग॑ऽवन्त: । स्या॒म॒ । उ॒त । प्र॒ऽपि॒त्वे । उ॒त । मध्ये॑ । अह्ना॑म् । उ॒त । उत्ऽइ॑तौ । म॒घ॒ऽव॒न् । सूर्य॑स्य । व॒यम् । दे॒वाना॑म् । सु॒ऽम॒तौ । स्या॒म॒ ॥१६.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उतेदानीं भगवन्तः स्यामोत प्रपित्व उत मध्ये अह्नाम्। उतोदितौ मघवन्त्सूर्यस्य वयं देवानां सुमतौ स्याम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत । इदानीम् । भगऽवन्त: । स्याम । उत । प्रऽपित्वे । उत । मध्ये । अह्नाम् । उत । उत्ऽइतौ । मघऽवन् । सूर्यस्य । वयम् । देवानाम् । सुऽमतौ । स्याम ॥१६.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 16; मन्त्र » 4

    मन्त्रार्थ -
    आध्यात्मिक दृष्टि- (मघवन्) ऐश्वर्यवन् परमात्मन् ! (उत-इदानीम्) हां इस समय (देवानां सुमतौ) प्रथम मन्त्रोक्त अग्नि आदि से तेरे दिव्य स्वरूपों की यथार्थ स्तुति में “मन्यते चेतिकर्मा" (निघ ३।४) (वयं स्याम) हम हों तो (भगवन्तः स्याम) उस उस नाम के ऐश्वर्य वाले हो जावें यथान्यत्र-तेजोसि "तेजोमय धेहि" (यजु० १६१६) (उत प्रपित्वे) अपि सायं उनकी सुस्तुति में हो जावें तो सायं ही हम ऐश्वर्य गुणवाले होजावें (उत मध्ये-अह्नाम्) अपि दिन के मध्य में “जात्याख्यायामेकस्मिन् बहुवचनमन्यतर स्याम्' (अष्टा० १।२।५८) उनकी सुस्तुति में होवें तो दिन के मध्य में ही हम उनसे ऐश्वर्य वाले हो जावें (उत सूर्यस्य-उदिता) अपि सूर्य के 'उदितों' उदय होने पर उनकी सुस्तुति में हो जावें तो सूर्य के उदय काल में ही हम उनसे ऐश्वर्य वाले हो जावें ॥ व्यावहारिक दृष्टि- (मघवन्) ऐश्वर्यवन् परमेश्वर ! (उत-इदानीं देवानां सुमतौ स्याम भगवन्तः स्याम) अपि इस समय तेरे उपासक की श्रेष्ठ मति में हम हो जायें तो हम इस समय ही ऐश्वर्य वाले हो जावें । आगे सुगम पूर्ववत् ॥४॥

    विशेष - अथर्ववेदानुसार ऋषि:- अथर्वा (स्थिरस्वभाव जन) देवता- लिङ्गोक्ता: (मन्त्रों में कहे गए नाम शब्द) ऋग्वेदानु सार ऋषिः- वसिष्ठ: (अत्यन्तवसने वाला उपासक) देवता- १ मन्त्रे लिङ्गोक्ताः (मन्त्रगत नाम) २–६ भग:- (भजनीय भगवान्) ७ उषाः (कमनीया या प्रकाशमाना प्रातर्वेला) आध्यात्मिक दृष्टि से सूक्त में 'भग' देव की प्रधानता है बहुत पाठ होने से तथा 'भग एव भगवान्' (५) मन्त्र में कहने से, भगवान् ही भिन्न-भिन्न नामों से भजनीय है। तथा व्यावहारिक दृष्टि से भिन्न-भिन्न पदार्थ हैं व्यवहार में भिन्न-भिन्न रूप में उपयुक्त होने से।

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